हे! विश्वकर्मन

हे! विश्वकर्मन
                        (कविता)
तू हो प्रतापी वंश के, विश्वकर्मा अंश के।
पुरुषार्थ कर आगे बढ़ो, सन्मार्ग पर चलते चलो।
हर पंथ में तू मुख्य हो, यांत्रिक गुणों मे
पूज्य हो।
ना हीन मानो आपको, कौशल परिश्रमी हाथ को।
संकल्प ले हर काम कर, उद्धार अपना स्वयं कर।
फिर जो विपत्ति आएगी, निश्चिंत हो टल जायेगी।
तू सृजक बचपन से हो, इंजीनियर बचपन से हो।
संसार में हो वंदनीय, हर कौम में हो पूजनीय।
तू सुख दिया संसार को, उन्नत किया औज़ार को।
अद्भुत तुम्हारी है कला, करते रहे भू पर भला।
उद्योग धंधों के जनक, व्यक्तित्व तेरा है सजग।
थामों अनुज के हाथ को, अपने सभी का साथ दो।
इतिहास उज्ज्वल है तेरा, न कर कभी तेरा मेरा।
मत ना समझ मजबूर हो, बस एकता से दूर हो।
आओ जुड़े हम संघ से, जीवन बिताएँ रंग से।
तू छोड़ कलुषित आचरण, श्रम को बस करके वरण।
शिक्षा पर अब तू ध्यान दे, बच्चों को इसका मान दे।
हर जाति में जयकार हो, जब सद्गुणी विचार हो।
सब मान देंगे ही तभी, पथ भ्रष्ट ना होना कभी।

रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
                सुन्दरपुर वाराणसी

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने