बसंत ऋतु के आगमन पर काव्य गोष्ठी एवं सम्मान समारोह सम्पन्न
लखनऊ :
अखिल भारतीय काव्यधारा, रामपुर (उ०प्र०) की इकाई लखनऊ के तत्वावधान में इक्षुपुरी काॅलोनी, ओल्ड जेल रोड में कवि गोष्ठी और और सम्मान समारोह का आयोजन बसंत पंचमी के आगमन पर किया गया ।
अध्यक्ष डाॅ शिवभजन कमलेश ,मुख्य अतिथि भूपेन्द्र सिंह 'होश', विशिष्ट अतिथि विनोद 'भावुक' ,आदरणीय कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास' द्वारा माँ शारदे के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्जवलन करके कवि गोष्ठी का श्रीगणेश किया गया । सरस्वती वंदना कवयित्री सुस्मिता सिंह 'काव्यमय' ने प्रस्तुत की।
इस अवसर पर हिंदी की उत्कृष्ट सेवाओ के लिए सुष्मिता सिंह 'काव्यमय', उपमा आर्य सहर, जितेंदरपाल सिंह 'दीप' ,सुरेखा अग्रवाल 'स्वरा', श्यामजीत सिंह , प्रेम शंकर शास्त्री आदि को सम्मानित किया गया ।
कार्यक्रम का सफल संचालन सुप्रसिद्ध कवि श्री जितेंदरपाल सिंह 'दीप' ने किया। कार्यक्रम के संयोजक लखनऊ इकाई की सचिव रश्मि 'लहर', संस्था के आजीवन सदस्य संजय 'सागर' तथा संस्था के महासचिव शैलेन्द्र सक्सेना रहे। अमर उजाला के अभिषेक जी ने अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज की तथा लाजवाब काव्यपाठ किया।
गोष्ठी में संजय 'सागर' ने कहा-
"अब क्या वफ़ा लिखेगी नये दौर की ज़ुबां ।
रहमो-करम पे इश्क़ का बाज़ार चल रहा ॥"
वहीं रश्मि लहर ने -
"हृदय ठान लो हे वैदेही एक नया इतिहास लिखो।
जितना तुमने झेला मन में, वह अपना संत्रास लिखो।।
श्याम जीत सिंह ने यह सुनाकर रौनक बिखराई-
"कोसिये आप मत दुश्मनों को दोस्तों का भरोसा नहीं है ।
छोड देते हैं कभी साथ साये सायों का भी भरोसा नहीं है।"
विशिष्ट अतिथि कृपाशंकर श्रीवास्तव ने अपनी ग़ज़ल सुनाकर महफ़िल में रंग जमाया -
"इतना न आंखों में खटक जाते ज़माने की
झुकाया भी न सर इतना कि खुद्दारी बिखर जाये"
जीतेंदरपाल सिंह दीप ने ग़ज़ल-
"मिलती है जो सच बोल के सौगात पता थी,
हाक़िम की गिरेगी कहाँ तक ज़ात पता थी।"
वाहवाही लूटी।
सुस्मिता सिंह ने -
"हर पल संग चले हैं यादें
बन कर के अपना साया।
हमको ये अहसास कराती
इक ऐसा पल भी था आया।"
सुनाया।
सुरेखा अग्रवाल स्वरा ने -
"बाहर प्रशंसा पाने वाली स्त्रियां आकर अपने घरों में उपेक्षित होती रहती है।" तथा
"बेवज़ह बौना करते है ख़्याल केंचुली मानिंद"
तथा उपमा आर्य सहर ने -
"किया एलान जारी है सितारों तुम तो सो जाओ
कि हम पर वक्त भारी है सितारों तुम तो सो जाओ"।
मुख्य अतिथि भूपेन्द्र सिंह 'होश' ने यह सुना कर बहुत वाहवाही बटोरी -
"इक झलक भर दिखी थी तुम्हारी मगर,
मुझको सारे जहाॅं की खुशी मिल गई "
अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डाॅ शिवभजन कमलेश ने सभी की रचनाओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए "जीवनसाथी बनकर हम-तुम जब थे मिले गले" नामक गीत को सुनाकर सबकी ऑंखें नम कर दीं।
सुनाकर महफ़िल का दिल जीत लिया। विभिन्न विषयों पर लाजवाब रचनाओं की प्रस्तुति ने गोष्ठी को ऊॅंचाई प्रदान की।
Tags:
संपादकीय