विश्वकर्मा वेदोक्त वैदिक ब्राह्मण, कुछ न्यायालयीय प्रमाण : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा

विश्वकर्मा वेदोक्त वैदिक ब्राह्मण, कुछ न्यायालयीय प्रमाण : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा
वैदिक ब्राह्मण को समझने से पहले हमे ब्राह्मण किसे कहते हैं, समझना ज़रूरी है।ब्राह्मण वह है,जो ब्रह्म व वेदों का अध्ययन करता है।वैदिक ब्राह्मण का अस्तित्व वैदिक काल से लेकर आज तक है।१५०० और ६०० ईसा पूर्व के बीच जब जाति व्यवस्था पहली बार विकसित हुई थी,तब वैदिक ब्राह्मण ज्ञान के  लिए जानकारी रखने वाले महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते रहें हैं।
प्राचीन समय में ब्राह्मण कोई जाति नहीं थी बल्कि वर्ण था, अतः कई पंथों संप्रदायों के लोग भी संत, मुनि,ऋषि,महर्षि,ब्रहमर्षि की उपाधि से नवाज़े जाते रहे।
ब्राह्मण कुल को दो भागों में बाटा गया था।पहला पौरुषेय ब्राह्मण, जो शिल्पचार्य महर्षि विश्वकर्मा के वंश में उत्पन्न हुए मनु मय त्वष्टा शिल्पी दैवज्ञ थे।इनकी संतानें पौरुषेय ब्राह्मण कहलाये,जिन्हें जन्म से ब्राह्मण कहा गया है।दूसरा आर्षेय ब्राह्मण वे ब्राह्मण कहलाये जो तपाचरण की महिमा से कर्म करके ब्राह्मणत्व को प्राप्त किए,जो आर्षेय ब्राह्मण से प्रसिद्ध हुए साक्ष्य विश्व ब्राह्मण पुराण अ २०/०४।
शिल्प शास्त्र(अथर्व वेद) एवं जाति दर्पण में वर्णित है कि विश्वकर्मा कुल में जो उत्पन्न हुए हैं उनके वंशीय गर्भ से ही ब्राह्मणत्व (श्रेष्ठत्व) को पाते हैं, इनके वंश को शूद्रत्व नहीं मिलता।शिल्प शास्त्र में लिखित निम्न श्लोक द्रष्टव्य है।
विश्वकर्मा कुलेजाता गर्भे ब्राह्मण निश्चिततः।
शूद्रत्वनास्ति तदः तु ब्राह्मणा विश्वकर्मणे ।।
विश्वकर्मा को विश्व ब्राह्मण भी कहा जाता हैऔर ब्राह्मण से भी बढ़कर हैं क्योंकि ब्राह्मण भी भगवान विश्वकर्मा द्वारा रचित भगवान की पूजा कराते हैं।यदि आप सभी मनन चिंतन करें तो पायेंगे कि चर अचर के निर्माण में जो नैसर्गिक शक्ति कार्य करती है वही विश्वकर्मा हैं।
विराट विश्वकर्मा,अजर अमर अविनाशी परम पुरुष जो सबकी उत्पत्ति और पालन करने वाला आदि देव सृष्टिकर्ता परमेश्वर जिसे वेदों में महेश्वर भी कहा जाता है।भगवान विश्वकर्मा प्रत्येक जीव को पाप पुण्य व कर्मों का फल देने वाला माना जाता है।
वैदिक शास्त्रों में बहुत जगह पर ब्राह्मण के सूचक के रूप में देवता,शिल्पी,आचार्य,विप्र,मनीषी,रथपति,रथकार,शर्मा, धीमान,पांचाल, तक्ष्वा,वर्धिकी आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।
यजुर्वेद अ १/४ के अनुसार “सा विश्वायुः सा विश्वकर्मा सा विश्वधाया” 
अर्थात् विश्वकर्मा पूर्ण आयु देने वाले वाणी और विश्व की सारी विद्याओं एवं गुणों को धारण करने वाले महेश्वर हैं।
शिल्पचार्य सृष्टिकर्ता देव शिल्पी जगदगुरु।
देवाधिदेव विश्वकर्मा नस्तुभ्यम् नमोनमः।।
ऋग्वेद मंडल ०८,सूक्त ९७ मंत्र ३ में विश्वकर्मा महान देवता कहे गये हैं।वे ही ईश्वर कहे गयें हैं।यही कारण है कि विश्वकर्मा को देवाचार्यों में जगतगुरु के नाम से पुकारा जाता रहा है।वैसे भी देखा ज़ाय तो विश्वकर्मा कुल के जितने देवता और प्रमाण वेदों ग्रंथों पुराणों में मिलते हैं वह किसी अन्य कुल में नहीं मिलता।आचार्य या जगद्ग़ुरु की उपाधि भारत में केवल विश्वकर्मा ब्राह्मण ही लगा सकते थे,तब आदि शंकराचार्य ने कहा था
आचार्य शंकरो नाम त्वष्टा पुत्र न संशयः।
विप्र कुले गुरु दीक्षा, विश्वकर्मांतु ब्राह्मणह।।
अर्थात् मेरा नाम शंकराचार्य है, मैं त्वष्टा वंश में जन्मा पुत्र हूँ।विप्र( वेद पढ़ने वाले ब्राह्मणों) को ज्ञान दीक्षा देने आया हूँ तथा मैं विश्वकर्मा ब्राह्मण हूँ-शंकर विजय पुस्तक से।
वशिष्ठ पुराण कांड ३ में विश्वकर्मा को ही जगत निर्माण का कारण बताया गया है।द्वापर व त्रेता युग में केवल तकनीकी ज्ञानधारी शिल्पी  ही यज्ञ कराता था।
दयानंद सरस्वती ने लिखा है,”यो विश्वं, सर्व कर्म क्रियमानस्य सह विश्वकर्मा”अर्थात् जो एक मात्र ब्रह्म परमात्मा जो समस्त संसार के उत्पत्तिकर्ता से लेकर समस्त कर्म करने की योग्यता रखता है,उसे परमेश्वर विश्वकर्मा कहा जाता है।
ये धीवनाह रथकाराह कर्मराह ये मनीषिणीह।
उपस्तिन पर्ण महयम् त्वम् सर्वान  कृणू अभितःजनाम।।
अथर्ववेद ३/५/६
अर्थात् सब मनुष्यों और विशेषकर राजा लोगों को चाहिए कि भूमिरथ आकाशरथ जलरथ आदि के बनाने वाले और अन्य शिल्पकर्मी विश्वकर्मा चतुर विद्वानों का सत्कार करते रहें, जिनसे अनेक व्यापारों से संसार में उन्नति होवे।
विश्वकर्मा को शिल्पज्ञ, विश्वकर्मा ब्राह्मण, रथकार,वर्धक़ी
एतबकवि, मोयावी, पांचाल,रथपति,सुहस्तसौर,परासर आदि शब्दों से भी संबोधित किया जाता है।
स्कन्द पुराण के ब्राह्मण खण्ड के एक श्लोकानुसार
शूद्रकोटि सहस्त्रणाम एक विप्र प्रतिष्ठित:।
विप्र कोटि सहस्त्रणाम विप्र शिल्पी प्रतिष्ठित:।।
अर्थात् एक करोड़ शूद्र में एक विप्र सम्मानित होता है,जब कि एक करोड़ विप्र में एक शिल्पी ब्राह्मण प्रतिष्ठा पाता है।
आनन्द कुमार स्वामी ने अपनी किताब” भारतीय शिल्पी” में पृष्ठ ५५-५६ में लिखा है कि विश्व या देव ब्राह्मण ही विश्वकर्मा ब्राह्मण है।ये पांडित्य कर्मकांड स्वयं करते हैं।मैसूर में इन्हें पांचाल ब्राह्मण कहते हैं।
पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र ने अपनी किताब “जाति भाष्कर” में पृष्ठ २०२-२०७ पर लिखा है शिल्प कर्म को ब्राह्मण कर्म मानते हुए विश्वकर्मा या पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुए षट् कर्म अर्थात् यज्ञ करना, यज्ञ कराना,वेद पढ़ना,वेद पढ़ाना,दान देना, दान लेना,के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
वेदों में भी वर्णित है कि विश्वकर्मा कुल में जन्मा,गर्भ से ही ब्राह्मण होता है।
यजुर्वेद में यह भी वर्णित है कि जिसने विश्व को जीवन दिया है,वही विश्वकर्मा विश्व में पूजनीय है।
ऋग्वेद दशम मंडल सूक्त ८१,८२ के ७+७=१४ मंत्रों में वर्णित है कि जल, थल,वायु,आकाश एवं सभी जीवों को भगवान विश्वकर्मा ने बनाया है। वही सबका रक्षक है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनकी आज्ञा से सृजन, पालन, संहार का दायित्व निर्वहन करते हैं।
वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि राम ने पर्ण कुटी में वास्तुदेव अर्थात् भगवान विश्वकर्मा का पूजन किया था।
भगवान कृष्ण ने गीता में भगवान विश्वकर्मा की भार्या कृति को नारियों में उत्तम कहा है।
ब्राह्मणोत्पत मार्तण्ड में उपाध्याय, त्रिवेदी,विश्वकर्मा,ओझा,झा को ब्राह्मण कहा गया है।विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मण विषयक सारे प्रमाण वैदिक साहित्य मनुस्मृति पुराणों रामायण महाभारत से लगायत राजा विक्रमादित्य व राजा अशोक के कार्यकाल में विज्ञानेश्वर की मितानक्षरा व राजाभोज की पुस्तक समरांगण सूत्रधार,साथ ही कौटिल्य के अर्थशास्त्र वारहमीहीर व दयानंद सरस्वती द्वारा रचित ग्रंथों में पाये जाते है,तो मिलावटी पुस्तकों ग्रंथों की क्या मान्यता?
अब आइये कुछ न्यायलयीय प्रमाणों पर चर्चा करें,इस सन्दर्भ में वर्ष १८१८ का चित्तूर ज़िला अदालत का फ़ैसला जो विश्वकर्मा को असली ब्राह्मण माना है।१८४० का सलेम कोर्ट केस नंबर १८६२,तथा १८५७ में सलेम कोर्ट केस नंबर१४ भी विश्वकर्मा को ब्राह्मण माना है।१८८५ में मद्रास कोर्ट ने फ़ैसला दिया है कि विश्वकर्मा किसी भी मंदिर के गर्भ गृह में पूजा व अभिषेक करने के लिए प्रवेश कर सकता है,उन्हें कोई रोक नहीं सकता।
वर्ष १९१२,३०मार्च गुंटूर अतिरिक्त ज़िला मुनसब अदालत के फ़ैसले में कहा है कि विश्वकर्मा किसी प्रकार की प्रतिष्ठा( गर्भालय में मुख्य देवता की स्थापना कर सकते हैं,यह उनका अधिकार है।
१९३४ में डायरेक्टर ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस ने विश्वकर्मा को ब्राह्मण लिखने का सर्कुलर जारी किया है।
हरियाणा सरकार ने भी २०२३ में बढ़ई को धीमापन ब्राह्मण,व लोहार को पांचाल ब्राह्मण लिखने का राज्यपाल महोदय ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान की है।
उक्त विवेचन के आलोक में कहा जा सकता है कि विश्वकर्मा वेदोक्त वैदिक ब्राह्मण हैं,और अदालतों ने भी खूब छानबीन कर अकाट्य फ़ैसले दिए हैं कि विश्वकर्मा ब्राह्मण हैं और उन्हें पौरहित्य कार्य करने,प्राण प्रतिष्ठा करने तथा षट् कर्म करने से नहीं रोका जा सकता वे असल में विश्वकर्मा ब्राह्मण हैं।

विश्वकर्मा को ब्राह्मण माना है। १८८५ में मद्रास कोर्ट ने फ़ैसला दिया है कि विश्वकर्मा किसी भी मंदिर के गर्भ गृह में पूजा व अभिषेक करने के लिए प्रवेश कर सकता है,उन्हें कोई रोक नहीं सकता।
वर्ष १९१२,३०मार्च गुंटूर अतिरिक्त ज़िला मुनसब अदालत के फ़ैसले में कहा है कि विश्वकर्मा किसी प्रकार की प्रतिष्ठा( गर्भालय में मुख्य देवता की स्थापना कर सकते हैं,यह उनका अधिकार है।
१९३४ में डायरेक्टर ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस ने विश्वकर्मा को ब्राह्मण लिखने का सर्कुलर जारी किया है।
हरियाणा सरकार ने भी २०२३ में बढ़ई को धीमापन ब्राह्मण,व लोहार को पांचाल ब्राह्मण लिखने का राज्यपाल महोदय ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान की है।
उक्त विवेचन के आलोक में कहा जा सकता है कि विश्वकर्मा वेदोक्त वैदिक ब्राह्मण हैं,और अदालतों ने भी खूब छानबीन कर अकाट्य फ़ैसले दिए हैं कि विश्वकर्मा ब्राह्मण हैं और उन्हें पौरहित्य कार्य करने,प्राण प्रतिष्ठा करने तथा षट् कर्म करने से नहीं रोका जा सकता वे असल में विश्वकर्मा ब्राह्मण हैं।

लेखक पूर्व ज़िला विकास अधिकारी
कई राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित, वरिष्ठ साहित्यकार, राज्य चुनाव प्रशिक्षक, मोटिवेशनल स्पीकर, आल इंडिया रेडियो के नियमित वार्ताकार हैं।

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