उड़ान समूह द्वारा आयोजित त्रैमासिक काव्य गोष्ठी संपन्न

उड़ान समूह द्वारा आयोजित त्रैमासिक काव्य गोष्ठी संपन्न 
दिनांक 17.04.2024 को उड़ान समूह द्वारा आयोजित त्रैमासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन श्री संजय 'सागर' (संस्था के उपाध्यक्ष) के आवास में किया गया। संस्था के संरक्षक श्री मनोज शुक्ला 'मनुज'  के द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर माॅं शारदे को नमन किया गया। डाॅ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव 'प्रेम' ने मधुर वाणी में वंदना प्रस्तुत कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में आदरणीय दीनबंधु आर्य, उपमा आर्य, सुरेखा अग्रवाल, मनोरमा , संजय 'सागर', रश्मि 'लहर' आदि शामिल हुए। विभिन्न विषयों से सजी रचनाओं के पाठ ने माहौल को एक नयी ताजगी प्रदान की। 

डाॅ प्रवीण ने 

"यशोधरा के प्रश्नों को, क्या गौतम पढ़ पाएंगे.
अश्रु पूरित व्यथा कथा को,बुद्ध कभी गढ़ पाएंगे.

 गौतम भामिनी होकर तुमने, क्या पाया पति को खो कर
 हुए तथागत वह गौतम से, तुमने क्यों पायी ठोकर.
जन्म जन्म के इस बंधन को,अपना कर क्यों तोड़ दिया.
 मां की ममता ठुकरा करके राहुल को क्यों छोड़ दिया.
हठयोगी बनाकर स्वामी, ज्ञान योग पढ़ पाएंगे.
 अश्रुपूरित व्यथा कथा को, बुद्ध कभी गढ़ पाएंगे" 

रचना का पाठ कर सभी को नव चिंतन हेतु प्रेरित किया। 

डाॅ मनोज शुक्ला 'मनुज' ने

"राम नाम ही नहीं है मंत्र है अमोघ दिव्य ,
              पाप हर लेता मेट देता मन से है काम। 
कामना रहित कर्म की ही सीख देता सदा ,
           भक्ति,यश,वैभव का देता है मनोज्ञ धाम।
क्षण मात्र में संवारता है छवि जीवन की,
          तृण के समान छूट जाता सब ताम-झाम।
काम,क्रोध,लोभ,मोह, मद से बचाता और ,
              पावन बनाता मन मंदिर को राम नाम।" 

सुनाकर सभी को भाव-विभोर कर दिया।

श्रीमती सुरेखा अग्रवाल 'स्वरा' ने अपनी विशिष्ट रचना- 

#कब्रगाह

 कब्रगाहों पर झूठी
संवेदनाओं का  बसा शहर
 देख  बड़ा अजीब लगता है...!

 फिर भी बेवज़ह  की
 इबारत करते
 इश्क  की पोथी पड़ते 
 संवेदहीन लोगों को देख
 बड़ा अजीब लगता है...!

  सुनो ना ...
उस मृत पड़ी देह में
ना जाने क्यों ढूँढ़ते  हैं?
उसमें फिर एक जीवंत
कोशिका  को 
तलाशते
 सवांद करने
के ख़ातिर खुद से
 देख बड़ा अज़ीब लगता है..!

कैसे बताऊँ
मरी हुई संवेदनाएं
 ठहरी हुई साँसे
कब्र में दफ़न जिस्म
  कभी संवाद नही करते
    मौन जब कराहता है
तो सुनो....
 बड़ा अज़ीब लगता है....!!" सुनाकर कार्यक्रम को नई ऊंचाई प्रदान की।

रश्मि 'लहर' ने

"सुनो बच्चों!

यदि अकस्मात्
निष्प्राण हो जाएगी
मेरी देह

तो अचानक 
मुझे पुकारने लगेगा
मेरी आहट को टटोलता
मेरे पाॅंवों की छुवन पर थिरकता 
मेरा ऑंगन!"

मुझे मत ले जाना वहाॅं
जहाॅं टकटकी लगाकर
पथ निहारती होगी
स्वास्तिक सजे गमले की तुलसी!"

सुना कर सभी को भावुक कर दिया। 

संजय 'सागर' ने-

 "उनको दी है पायल, सोने की चूड़ियाँ ।
हाथों में हथकड़ी, औ पैरों की बेड़ियाँ ॥"

सुनाकर आज के हालात पर व्यंग्य कसा।

श्रीमती रश्मि 'लहर' के संचालन में चल रही काव्य गोष्ठी में संजय 'सागर'  , दीनबंधु आर्य, उपमा आर्य 'सहर', मनोरमा ने विभिन्न विषय पर लाजवाब रचनाऍं सुनाकर कार्यक्रम को सफल बनाया। संजय 'सागर' के आभार के साथ कार्यक्रम के समापन की घोषणा की गई।



                               

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