छाँव की तलाश
***************************
भगवान भाष्कर की तीव्र किरणें,
इन दिनों धरती को जला रही हैं ।
पशु , पक्षी ,पादप , वृक्ष मनुज को ,
गर्मी से पागल बना रही हैं ।
जलती धरती तवा के जैसी ,
पानी जैसे बदन से निकले पसीना ।
तेज धूप से व्याकुल पथिक सब ,
घने पेड़ की छाया में चाहे जीना ।
दूर - दूर तक सड़कों पर भी ,
पहले से वृक्ष न पड़ें दिखाई ।
गर्मी अब बेतहासा बढ़ चली है ,
पुराने पेड़ों की याद सबको आई ।
संतुलन प्रकृति का खुद सभी ने ,
अपने ही हाथों जानकर बिगाड़ा है ।
कुदरत कहर अपना बरपा रही है ,
मानव की कमियों ने उसे पछाड़ा है।
आने वाली अपनी पीढी़ को हम ,
ऐसी वीरान धरती ही देंगे क्या ?
खुद तो मुशीबत में घिर गए हैं ,
हरी पृथ्वी दे अहशान न लेंगे क्या?
अंकुश लगाएं वृक्ष काटने पर ,
वृक्षारोपण की हो चहुँ ओर भरमार ।
व्यक्तिगत , संस्थागत हर प्रकार से ,
दिल खोल कर मदद करे सरकार ।
- चंद्रकांत पांडेय,
मुंबई / महाराष्ट्र
Tags:
संपादकीय