गौरव की अनुभूति जगाएं, विश्वकर्मा संस्कृति अपनाएं : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
कोई भी जन्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य व शूद्र नहीं होता,बल्कि जन्म से सभी शूद्र ही होते हैं।कहते भी हैं कि “जन्मने सर्वे शूद्राह,संस्कारयते द्विजो भवति।संस्कार से ही हम सभी योग्य बनतें हैं।तो हम सभी विश्वकर्मा वंशियों में गर्व की अनुभूति कैसे जगे,इसके लिए हम सबको मिलकर एक सामूहिक विश्वकर्मा उप संस्कृति का विकास करना होगा,तभी हम अपने बिखरे हुए कुनबों को एकता के सूत्र में पिरो सकने में कामयाब हो सकते हैं।इसके लिए हमे अपने सांस्कृतिक एकता पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करना होगा,जिससे हम विश्व के कोने कोने में फैले अपने विश्वकर्मा वंशियों को एक करने में समर्थ हो सकें।
आइए!पहले समझें कि संस्कार व संस्कृति क्या है?मानव के लौकिक और पारलौकिक विकास के लिए किए जाने वाला आचार विचार ही संस्कृति है।कुछ विद्वान संस्कारों से संस्कारित जीवन को ही संस्कृति मानतें हैं।कुछ भूषण भूत सम्यक् कृति को संस्कृति कहते हैं।सरल शब्दों में, संस्कृति का मतलब होता है माँजकर चमकाना,सुधारना, सिद्ध व सुनिर्मित करना,अलंकृत करना।कुछ मनीषी प्रकृति के परिष्कृत रूप को ही संस्कृति कहते हैं।वैसे देंखें तो धर्म अर्थ काम मोक्ष ही भारतीय संस्कृति के आधार हैं। सद विचार सद व्यवहार का मूल सिद्धांत ही हमारी संस्कृति में समाया हुआ है।संस्कृति का कार्य संशोधन करना,सुधारना,सवाँरना,शुद्ध करना,परिष्कृत करना,परिमार्जित करना ही है।
आइये! जरा संस्कार पर ध्यान दें।अतिरिक्त गुणों का आधान करा देना ही संस्कार कहा जाता है।गुणाधानः संस्कारह।किसी वस्तु व्यक्ति में अतिरिक्त गुणों व योग्यताओं का आधान करा देना ही संस्कार कहलाता है।
संस्कार व्यक्ति को दया करुणा मनवाता अहिंसा आदर्श आस्था सत्य दान प्रेम भावना उदारता त्याग बंधुत्व आदि गुणों से संपृक्त करता है।मानव हृदय संस्कारों से ही विशाल व उदार बनता है।
संस्कृति मानव में संस्कार पैदा कर उसे सुसंस्कृत बनाती है। मानव उत्तम संस्कारों से ही आत्मबल प्राप्त करता है। संस्कारित व्यक्ति अपने आचरण वाणी रहन सहन आचार विचार हाव भाव से पहचाना जाता है।
हमारे ऊपर घर परिवार समुदाय देश का भी उत्तरदायित्व होता है उसके समुचित निर्वाह के लिए हमें ख़ुद और आनेवाली पीढ़ियों के लिए हर तरह से संस्कारवान बनाना ज़रूरी है,जो सभ्य समाज का प्रतिनिधित्व कर सकें।हमारी संस्कृति व्यक्ति मात्र से ऊपर उठकर समष्टि के लिए सोचने का संदेश देती है।इसीलिए हमारे आर्षृषियों
ने “आत्मवत् सर्वभूतेषु”का पहला संदेश दिया है।हमे अपने समान सभी जीवधारियों को अपने समान देखने की भावना विकसित करनी चाहिये,कहते भी हैं कि” सर्वानी भूतानी आत्मननेव पश्यंति”हमारी भारतीय संस्कृति पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में मानती है,तभी तो हम “वसुधैव कुटुंबकम्” की चर्चा सदैव करते रहें हैं।हमारी भारतीय संस्कृति” सर्वे भवन्तु सुखीनः,सर्वे सन्तु निरामया”का भी संदेश देती आयी है।इतना ही नहीं,सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय की परिकल्पना हमारी भारतीय
संस्कृति की ही देन है।
अब विश्वकर्मा उप संस्कृति का विकास कैसे करें,आइए इस पर गंभीर चिंतन करें।हमे अपने कुल में सांस्कृतिक एकता बढ़ाने हेतु अपने पूजा पाठ रीति रिवाज परंपराओं त्योहारों को सजगता के साथ मनाने हेतु कटिबद्ध होना पड़ेगा।जैसे सभी मज़हबों संप्रदायों में अभिवादन हेतु एक सुनिश्चित वाक्य होता है,उसी प्रकार हमे भी अपनी विश्वकर्मा उप संस्कृति में अभिवादन हेतु भी एक वाक्य चुनना होगा।जैसे सिख समुदाय में “सत श्री अकाल” हिंदू धर्म में “जय राम या राम राम “कहते है उसी प्रकार इस्लाम धर्म में अभिवादन हेतु “असलामाअलेकुम “कहते है।हम भी अपनी उप संस्कृति में सभी का अभिवादन करने हेतु “ॐ विश्वकर्मा”रूपी अभिवादन वाक्य का प्रयोग करने की परिपाटी दृढ़ता से शुरू करें।धार्मिक अनुष्ठानों आयोजनों में भगवान विश्वकर्मा का झंडारोहण करें,जिससे विश्वकर्मा कुल की पहचान बने।बताते चले कि अपने कुल के देवता भगवान विश्वकर्मा वास्तव में आदि देव सृष्टि कर्ता परम ब्रह्म,परम पुरुष हैं,जिसकी महिमा का,बखान प्राचीन वेद ऋग्वेद में ११ ऋचाओं में किया गया है।कुछ नासमझ लोगों की कुत्सित मानसिकता के ग़लत लेखन के कारण भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का अनुचर शिल्पचार्य अस्त्र शस्त्र निर्माता तक सीमित किया गया है,जो आधारहीन,सत्य से परे,तथ्य से परे भ्रामक है।यदि आप ग्रंथों वेदों पुराणों उपनिषदों का गंभीरता से अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि भगवान विश्वकर्मा ही आदि देव,विश्व देव है, जिन्होंने सृष्टि की संरचना की है।सृष्टि के प्रथम कल्प की रचना भगवान विश्वकर्मा ने पंचमुखी स्वरूप धारण कर किया था।तो हे मेरे कुल के भ्राता श्री व शक्ति स्वरूपा बहनों! आईए हम सभी अपने कुल के आराध्य देव भगवान विश्वकर्मा जो परम पुरुष हैं की पूजा अर्चना आराधना प्रतिदिन करे।यदि समयाभाव है तो हर रविवार को यदि यह भी संभव न हो सके तो प्रतिमाह अमावस्या के दिन सपरिवार बच्चों के साथ आस पास के विश्वकर्मा मंदिर में या घर में ही सामूहिक प्रार्थना करें,कहते हैं कि सामूहिक प्रार्थना करने से मनोकामनाएँ जल्द पूर्ण होती हैं।यह भी मान्यता है कि उनकी पूजा से व्यक्ति के बंद कल कारख़ाने चलने लगते हैं और जल्द ही सुख समृद्धि लौट आती है।भगवान विश्वकर्मा की आराधना से रोज़ी रोज़गार और बिज़नेस में तरक़्क़ी होती है,यदि विश्वास न हो तो करके देख लें।
अपने बाल गोपाल को समय समय से भगवान विश्वकर्मा के महात्म्य को बतायें, जिससे उनमें बचपन से ही भगवान विश्वकर्मा के प्रति लगाव हो।आमवास्या के दिन विश्वकर्मा मंदिरों में सामूहिक रूप से यज्ञ का विधान करे और सभी लोग आहुतियाँ डालें।आप देखेंगें की चमत्कारिक लाभ होगा।
अपनी उप संस्कृति को मज़बूती प्रदान करने हेतु शादी विवाह, गृहप्रवेश,यज्ञ हवन पूजन पाठ कथा या अन्य कोई अनुष्ठान आयोजन में अपने कुल के आचार्यों को आमंत्रित करें। वाराणसी में अपने कुल के दो आचार्य श्री राजेश्वराचार्य और श्री रामावतार जी, आज़मगढ़ में श्री अमरनाथ गुरु जी एवं कानपुर में अपने कुल के तमाम आचार्य कर्मकांड विधि विधान से संपन्न कराते हैं।किसी बड़े आयोजन हेतु आप पंडित संतोष आचार्य मुम्बई,राजेश्वराचार्य काशी व पंडित राम आशीष वैद्य जी गोरखपुर व अमरनाथ गुरुजी आज़मगढ़ को आमंत्रित कर सकते हैं।
सुहृदवर !आप सभी विश्वकर्मा उप संस्कृति को अपनाकर अपने कुल की खोयी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने में सफलता हाशिल कर सकते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ शासन/प्रशासन तो विश्वकर्मा जी के माहात्म्य को जान चुका है ।हम कब उनकी महिमा में चार चाँद लगाएंगें। भारत देश में लगभग ११ करोड़ की जनसंख्या वाला यह विशाल कुल अपने कुल की गरिमा कब वापस लाएगा, विचारणीय प्रश्न है।
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संपादकीय