ग्रंथों,वेदों,पुराणों में आदि देव, सृष्टि कर्ता भगवान विश्वकर्मा : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा

ग्रंथों,वेदों,पुराणों में आदि देव, सृष्टि कर्ता भगवान विश्वकर्मा : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सभी धर्म ग्रंथों, वेदों एवम् पुराणों में भगवान विश्वकर्मा की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। उन्हें परम पुरुष, विश्व देव, आदि देव, सृष्टि सृजक, चर अचर के उत्पन्न कर्ता,नैसर्गिक शक्ति के रूप में जाना जाता है। सभी जीवित,  सभी देवताओं मे निहित अमूर्त रचनात्मक शक्ति ही भगवान विश्वकर्मा हैं,इसीलिए भगवान विश्वकर्मा को साक्षात् परमात्मा परात्पर: कहा गया है,जो विश्व की एक मात्र सर्वोच्च शक्ति है,जिन्हें जगत कर्ता,शिल्पेश्वर,महेश्वर,देव शिल्पी,विश्व ब्रह्मांड के वास्तुकार,सभी देवताओं के नाम को धारण करने वाले,परम पुरुष,निर्गुण निराकार आदि ब्रह्म विराट विश्वकर्मा स्वयंभू विश्व देव के नाम से भी पुकारा जाता है।
सृष्टि के प्रथम कल्प की रचना उन्होंने पंचमुखी स्वरूप में प्रकट होकर किया था,जिन्हें स्वयंभू विराट विश्वकर्मा के नाम से भी जानते है।
देवी भागवत में वर्णित है क कल्पवृक्ष के समान सभी की इच्छाओं के पूर्ण करने के लिए ब्रह्मा ने महामती श्री विश्वकर्मा की आराधना की है।वेदों में ७१ बार भगवान विश्वकर्मा का नाम लिया गया है।उन्हें
“विश्वतःचक्षुरूत विश्वतोमुखो विश्वतो वाहुरुत विश्वस्यात”कहकर प्रभु विश्वकर्मा की सर्वव्यापकता,सर्वज्ञता, शक्ति सम्पन्नता और अनन्तता को दर्शाया गया है।
शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में प्रभु विश्वकर्मा को कर्ता धर्ता के रूप में वर्णित किया गया है।वह स्वयं प्रकट होने वाले,सभी का कल्याण करने वाले,एकमेव पिता,प्रजापति भगवान विश्वकर्मा ही हैं।वह गर्भ में सभी जीवों,पशु पछियों के अभिरूपों का विधायक है।उन्हें परम पुरुष विश्वकर्मा विराट व स्वराट कहकर उनका वर्णन किया गया है।
ऋगवेद में उन्हें”विश्वकर्मा विश्वदेवा महाअसि” कहकर पुकारा गया है।इसी वेद में उन्हें वो महान विश्वकर्मा जिसका समस्त जग को निर्माण करने का कार्य है और जो अनेक प्रकार के विज्ञान से युक्त, समस्त पदार्थों में व्याप्त,सबका धारण,पोषण करने वाला एवम् रचने वाला, सबको एक समान देखने वाला,सबसे उत्तम परमात्मा अद्वितीय है,वैसा कोई और नहीं है।मनीषीगण कहते हैं कि सप्तऋषियों से भी उँचे स्थान पर वह स्थापित है और सबकी अभिलाषाओं को हव्यान्न द्वारा पूर्ण करते हैं।
यही ऋग्वेद भगवान विश्वकर्मा को परम ब्रह्म,सृष्टि के अनन्त स्वरूप,विश्वदेव के रूप में संबोधित करता है,जिसे विश्व के प्राचीन शास्त्र की मान्यता है।
“यो विश्वं जंगतम करोत्यसे सह विश्वकर्मा” अर्थात् विश्व जगत में
सभी कर्म जिस ब्रह्म द्वारा सम्पन्न किया जाता है वह ही परमब्रह्म विश्वकर्मा है।
गर्ग संहिता(बलभद्र खण्ड 13/52) में वर्णित है कि"विश्वकर्मा विश्वधर्मा देव शर्मा दयानिधि"
विश्वकर्मा प्रभु विश्व के धर्मों को धारणकर्त्ता देव शर्मा अर्थात देव ब्राह्मण हैं, जो दया के सागर भी कहे जाते हैं।
“सा विश्वायु सा विश्वकर्मा सा विश्वधाया” यजुर्वेद अ०1/4 में उस परम पुरुष अनन्त शक्ति विश्वकर्मा भगवान को पूर्ण आयु देने वाला वाणी का और विश्व की सारी विद्याओं / गुणों को धारण करने वाला बताया गया है।
अथर्ववेद काण्ड-२ सूक्त-35 मंत्र-१ में वर्णित है कि हम यज्ञ कार्य में धन न खर्च करके, दुर्यज्ञ करने के कारण ऊँचें लोक में अवस्थित यज्ञपति भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद नहीं प्राप्त कर सके।
भौमान्येक रूपणी यस्य शिल्पाणी मानवाह।
उपजीवन्ति तम विश्वं विश्वकर्माणी मिमही।।
(पद्म पुराण भूखण्ड-3-1-25 श्लोक-15)
भगवान विश्वकर्मा जिन्होंने इस धरा  के नाना प्रकार के चमत्कारी पदार्थों के रूप को उत्पन्न किया और जिसकी शिल्प विद्या से सम्पूर्ण मानव जाति उपजीविका अर्थात् जीवन निर्वाह करती है,ऐसे विश्वकर्मा भगवान को नमस्कार है। सभी मानव इसी विश्वकर्मा के ब्रह्म शिल्प कर्मों से निर्मित नित्य अपने जीवन के प्रारंभ से मरणोपरान्त उपभोग करते हुये उपजीविका अर्थात् जीवन निर्वाह करते हैं।इसीलिए पद्मपुराण खण्ड-6 उत्तरखण्ड श्लोक-36 में भगवान विश्वकर्मा को सभी का पालन करने वाला,उत्पन्न करने वाला सभी देवताओं के तेज व भुवनों को धारण करने वाला,सर्व द्रष्टा सर्वस्रष्टा सर्वज्ञाता कहा गया है।
नारदीय पुराण पूर्वाध श्लोक-64 में भगवान विश्वकर्मा को पशुपति की भी संज्ञा दी गयी है।वे समृद्धि के स्रोत, राक्षसों के संहारक,अंतरिक्ष व स्वर्गलोक के स्वामी भी हैं, जिन्हें दिव्य निर्गुण निराकार भी कहा जाता है।
शिव पुराणसंहिता अध्याय -6 में भगवान विश्वकर्मा को सर्वोच्च देवता के रूप में महेश्वर शब्द से परिभाषित किया गया है,यदि जन अपने हृदय में भगवान विश्वकर्मा को धारण करते हैं तो उन्हें अमृत तत्व की प्राप्ति होती है।
ब्रह्माण्ड पुराण उत्तरभाग अध्याय-9 श्लोक-2-3-4 के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को नारायण एवम् विश्वरूप कहा गया है।
महाभारत शांतिपर्व युधिष्ठिर उवाच श्लोक-5 में निम्नांकित ढंग से भगवान विश्वकर्मा को वर्णित किया गया है।
विश्वकर्मा नमस्तेस्तु, विश्वात्मा विश्व संभवः।
विष्णों,विष्णों हरे कृष्ण, बैकुण्ठ पुरूषोत्तमम।।
हे !विश्वकर्मा जी तुम्हीं विष्णु हो,तुम्हीं हरे कृष्ण हो, तुम्हीं बैकुण्ठ हो,तुम्हीं पुरूषोत्तम हो, तुम ही विश्वात्मा हो और जगत को उत्पन्न करने वाले हो।हे !विश्वकर्मा तुम्हें नमस्कार है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने लिखा है “यो विश्वं सर्व कर्म क्रियमानस्य सह विश्वकर्मा” वह विश्वकर्मा जो एक मात्र ब्रह्म परमात्मा जो समस्त संसार के उत्पत्ति से लेकर समस्त कर्म करने की योग्यता रखते हैं ,उन्हें ही परमेश्वर विश्वकर्मा कहते हैं।इसीलिए उन्हें देवयतनों का सृष्टा भी कहा जाता है। वारहमीहीर ने भी अपनी कृतियों में विश्वकर्मा जी के मतों का उल्लेख किया है।
विश्व ब्रह्म महापुराण अ-2 में वर्णित है कि
 न भूमि, न जलम चैव न तेजो न च वायवह।
 न चाकाश न चित्तम च न बुद्धदया घ्राण गोचरा।
 न ब्रह्मा न विष्णुश्च न रूद्रो न च देवता।।
 एक एव भवद्वीश्वकर्मा विश्वाधि देवता।।
 अर्थात् जब पृथ्वी नहीं थी, न वायु ही था, न अग्नि ही थी, न आकाश था, न मन था ,न बुद्धि थी और न घ्राण आदि इंद्रियाँ ही थी, न ब्रह्मा थे न विष्णु थे, न शिव थे तथा अन्य कोई देवता भी नहीं थे ।उस शून्य काल में समस्त ब्रह्माण्ड को अपने में ही आवृत्त अर्थात् समाये हुए, सबका पूज्य ,केवल एक ही विश्वकर्मा परमेश्वर परम ब्रह्म विद्यमान थे।
 श्री विश्वकर्मा महापुराण अ० 2-12 में भगवान विश्वकर्मा को निर्गुण और सगुण स्वरूपों में भी वर्णित किया गया है आइए! इस श्लोक पर दृष्टिपात करें।
 निर्गुणाह सगुणश्चेती द्विविधो विश्वकर्मनाह।
 मूर्तिभेदो महद गूढ़ह सर्वेषाम सशयावह।।
 अर्थात् उस परम ब्रह्म विश्वकर्मा के निर्गुण और सगुण दो स्वरुप हैं, उनका मूर्ति भेद पाना बहुत कठिन और सभी के लिए संशय कारी है।वास्तव में ,भगवान विश्वकर्मा ज्ञान को विज्ञान में,सिद्धांत को प्रयोग में,विचार को मूर्त रूप देने वाले देवाधिदेव कहे जाते हैं।
 शिल्पाचार्य सृष्टिकर्ता, देव शिल्पी जगत गुरु
 देवाधिदेव विश्वकर्मा, नामस्तुभ्यम् नमो नमः।।
 वैसे भी, श्रुति का वचन है कि विवाह यज्ञ गृहप्रवेश आदि कार्यों में अनिवार्य रूप से भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जानी चाहिए।
 विवाहदिशु यज्ञेषु,गृहराम्भ विधायके।
 सर्व कर्मसु  सम्पूज्यो विश्वकर्मा इति श्रुतम्।।  -वाराह पुराण
 देवी और सज्जनों! वैसे भी रचनाकार के बिना रचना नहीं हो सकती, नियामक के बिना सुन्दर नियम नहीं बनाए जा सकते,बिना प्रबंधक के सुंदर प्रबंधन नहीं किया जा सकता वैसे ही, यह सृष्टि भी बिना सृष्टिकर्ता के संभव नहीं,इसीलिए सृष्टि का नियामक नियंता भगवान विश्वकर्मा को ही माना गया है।
 उपर्युक्त विवेचन से ,स्पष्ट है कि भगवान विश्वकर्मा प्रत्येक प्राणियों के जनक एवम् चर अचर के उत्पन्नकर्ता,ब्रह्माण्ड के वास्तुकार,शिल्प कालाधिपति,शिल्पाचार्य,विज्ञान अभियान्त्रिकी, प्रौद्योगिकी,इंजीनियरिंग के जनक हैं।इनकी पूजा जन कल्याणकारी है।तो आइए! भगवान विश्वकर्मा की प्रति दिवस पूजा कर स्वयं,परिवार,समाज, देश व सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करने के योग्य बनें।

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