हैं, विश्वकर्मा प्रभु !नियंता।
( कविता)
हुनर भी आती,उसी शक्ति से,जो रहा आदि अभियंता,,,,,हैं, विश्वकर्मा प्रभु! नियंता।
उनकी अनुकम्पा से ही जन,
रोज़ी,रोटी कमाते।
सभी तरह के दुःख दारिद्र से,
मुक्ति,वही दिलाते।।
श्रम से नाता जो जोड़ें हैं,वही सृजन अनुमंता,,,,,हैं,
विश्वकर्मा प्रभु! नियंता।।
नव उन्मेष,है पाया जग ने,
सब अभियंत्रण शक्ति।
उसकी कृपा मात्र से आती,
साधक,सभी में भक्ति।।
अपने कुल का भी रखवाला,एक मात्र कुलवंता,,,,,हैं विश्वकर्मा प्रभु !नियंता।।
सभी पुरियों को ही बनाया,
एक से बढ़कर न्यारी।
वैदिक युग से रथ निर्मित कर,
यज्ञ वेदी की,की तैयारी।।
उसी प्रभु से जग रोशन है,वही सभी का भगवंता,,,,,है विश्वकर्मा प्रभु !नियंता।।
जग को सुख सुविधाएँ देकर,
बना महा उपकारी।
उसके निर्माणों से सज्जित,
देवों की,सभी सवारी।।
उनसे उपकृत सभी देव जन,जिसकी शक्ति अनंता,,,,,हैं
विश्वकर्मा प्रभु! नियंता।।
सभी तरह के आविष्कार का,
रहा वही है स्वामी।
देव दनुज ने पायी शक्ति,
बनकर के अनुगामी।।
उसी के निर्मित अस्त्र शस्त्र से, बने देव अरिहंता,,,,,हैं
विश्वकर्मा प्रभु !नियंता।।
रचनाकार:डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा, वाराणसी
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