शुद्धि, ज्ञान
अंगों प्रत्यंगों की शुद्धि,
होता है स्नान से।
धन धान्य की शुद्धि होवे,
योग्य जनों के दान से।
वर्णों की शुद्धि हो केवल,
यज्ञ शास्त्र के ज्ञान से।
तन मन की शुद्धि होती,
त्याग और बलिदान से।
जल भूमि की शुद्धि होवे,
समय चक्र अवदान से।
गर्भ आदि की शुद्धि होती,
शुभ दिन गर्भाधान से।
कपड़े वस्त्र आदि की शुद्धि,
प्रक्षालन विधि ज्ञान से।
सभी इंद्रियों की शुद्धि,
मन संयम,तज मान से।
आत्म शुद्धि यदि चाहे हम,
शरण गहे भगवान से।।
रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
वाराणसी
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