दीपावली महोत्सव 31 अक्टूबर को शास्त्र सम्मत है --- डॉ देव नारायण पाठक
अहमदाबाद, गुजरात के लब्ध प्रतिष्ठ ज्योतिर्विद् डॉ देव नारायण पाठक ने बताया कि धनतेरस और दीपावली प्रदोष व्यापिनी पर्व है। काली पूजन मध्य रात्रि में ही होती है। मध्य रात्रि में अमावस्या का होना अनिवार्य है।
31 अक्टूबर को अपराह्न 3:13 से 1 नवंबर की शाम 5:13 बजे तक अमावस्या इस वर्ष त्रयोदशी 29 अक्टूबर को पूर्वाह्न 11:00 बजे से 30 अक्टूबर को अपराह्न 1: 04 बजे तक है. अमावस्या 31 अक्टूबर को अपराह्न 3:12 से एक नवंबर की संध्या 5:13 बजे तक है। 31 अक्टूबर की मध्य रात्रि में अमावस्या रहने के कारण 29 अक्टूबर को धनतेरस और 31 अक्टूबर को दीपावली और काली पूजा मानना शास्त्र सम्मत है। 31अक्टूबर को सम्पूर्ण रात्रि अमावस्या है, लक्ष्मी पूजा के लिए वृष और सिंह लग्न का शुभ मुहूर्त इसी दिन मिलेगा । धर्म शास्त्रों के अनुसार प्रदोष काल और अर्द्धरात्रि दोनों में अमावस्या होने से 31 अक्टूबर को ही दीपावली मानना उचित है। श्रीमद्भागवत पुराण के अष्टम स्कन्द के अष्टम अध्याय के अष्टम श्लोक में कहा गया है कि --
ततश्चाविरभूत साक्षात् रमा भगवतपरा।
रञ्जयन्ती दिश: कान्त्या विद्युत् सौदामिनी यथा।।
अर्थात -- शोभा की मूर्ति भगवती स्वयं लक्ष्मी जी प्रकट हुई। वे भगवान के लिए शक्ति है।उनकी विजली के समान चमकीली छटा से दिशाएं जगमगा उठी। अमावस्या की रात्रि में ही भगवती लक्ष्मी प्रकट हुई थी। देवी महाकाली की तन्त्र साधना तथा अन्य मन्त्र की सिद्धि अमावस्या तिथि में होती है,इन सभी कारणों से 31 नवम्बर को ही दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत है।
दूसरा तर्क यह है कि
निर्णय सिन्धु में कहा गया है कि -- न नन्दा होलिका श्रेष्ठा, न नन्दा पितृप्रेषणम्।
न नन्दा यां दशहरा च,
न नन्दा दीपमालिका।।
अर्थात नन्दा यानी प्रतिपदा, षष्ठी एवं एकादशी नन्दा तिथि कहलाती है। इसलिए नन्दा तिथि में होलिका, पितृ विसर्जन, दशहरा तथा दीपावली नहीं मनाना चाहिए।
तीसरा तर्क यह है कि --
दीपावली में रात्रि जागरण का विधान है और निर्णय सिन्धु में कहा गया है कि ---
अर्द्धरात्रौ भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्।
अतः स्वलंकृता लिप्ता दीपैर्जाग्रज्जनोत्सव:।।
अर्थात कार्तिक अमावस्या की रात्रि में घरों में आश्रय लेने के लिए अर्द्धरात्रि में लक्ष्मी का प्रवेश होता है। अतः अपने घर एवं आंगन को स्वच्छ वनाये रखना चाहिए।
जहां तक उदयातिथि को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है तो उसके सम्बन्ध में शास्त्रों में कहा गया है कि -- यां तिथि समलम्प्राप्य उदयं याति भास्कर :।
सा तिथि सकला ज्ञेया दानाध्ययन कर्मसु।। अर्थात उदयातिथि केवल दान, अध्ययन तथा श्राद्ध आदि कर्मों में देखा जाता है,सर्वत्र नहीं।
सूर्य सिद्धांत से कभी भ्रम पैदा नही हुआ। हमारे देश में त्योहार की तिथि का निर्धारण धर्मशास्त्री सूर्य सिद्धांत के आधार पर करते हैं। उसके अनुसार कभी कोई भ्रम पैदा नहीं हुआ। इस बार भी दीपावली को लेकर कोई भ्रम नहीं था। इस पर विवाद दृक गणित (खगोलीय गणना करने की एक पारंपरिक पद्धति) से तैयार किए गए पंचांगों ने किया है। जो पंचांग नासा की गणनाओं को फॉलो करते हैं, उन्होंने भ्रमित किया है।
सूर्य सिद्धांत वैदिक ज्योतिष की नींव रखता है। इसमें कुंडली बनाने के लिए सभी मापदंड और माप मौजूद हैं।
द्रिक सिद्धांत या ग्रंथ सूर्य सिद्धांत का आधुनिक संस्करण है, जिसमें ग्रहों की स्थिति खगोलीय आंकड़ों से ली गई है।
अतः द्रिक सिद्धान्त केवल कुंडली बनाने के लिए सटीक है।
युग आदि के संदर्भ में समय की परिभाषा के लिए सूर्य सिद्धांत उत्कृष्ट है।
सूर्य या द्रिक कुंडली पर आधारित भविष्यवाणियां ग्रहों की विभिन्न स्थिति, अयनांश की अशुद्धि और वास्तविक खगोलीय स्थिति मान के कारण भिन्न-भिन्न होंगी।
इसलिए पर्व निर्णय के लिए विद्वानों को सूर्य सिद्धांत के अनुसार निर्मित पंचांगों, धर्मशास्त्रों, निर्णय सिन्धु,धर्म सिन्धु इत्यादि को ही प्रमाण मानना चाहिए।
शास्त्रों में कहा गया है कि--
को च श्रेष्ठोsस्ति प्रश्नेsस्मिन् सिद्धांत व्यवहारयो:।
व्यवहारयो: हि संग्राह्यं जीवोंके सदा जनै:।।
सूर्य एवं गुरु की गति के कारण ही तिथियों में परिवर्तन होने के कारण ही तिथि वृद्धि एवं तिथि क्षय होता है। हमें दीपावली पर्व को परम्परया मनाना चाहिए। निर्णय रूप से ह्रृषीकेश पंचांग शास्त्रीयता और परम्परा दोनों का निर्वाह कर रहा है,एतदर्थ 31.11.2024 तदनुसार वार गुरुवार को दीपावली मनाया जाना चाहिए।
समाचार व विज्ञापन के लिए संपर्क करें। WhatsApp No. 9935694130
Tags:
संपादकीय / दीपावली 2024