जय माँ कालरात्रि- ( सातवां रूप )
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शारदीय नवरात्र का , दिन सातवां आज ,
माँ का यह स्वरूप , वीरता, साहस का राज ।
आओ, आज करें, माँ कालरात्रि की आराधना ,
अधूरी ना रहेगी ,किसी के जीवन में ,कोई कामना ।
अति शीघ्र प्रसन्न होती माँ, भक्तों की पुकार से ,
हृदय की अति कोमल माँ , सुनती मनुहार से ।
रक्षा किया माँ ने , शुंभ निशुंभ अत्याचार से ,
मानकर आदेश शिव का, बचाया दुष्टों के संहार से।
भक्तों को भयहीन बनाती,शुभंकारी जाना जाता ,
काया रात्रि अंधकार सम, प्रलयंकारी माना जाता ।
केश माँ के अस्त व्यस्त, गले शोभित विद्युत माला ,
गर्दभ सवारी माँ की , भुजा गड़ासा , वज्रवाला ।
शेष भुजाएँ माँ की , वरमुद्रा, अभयमुद्रा वाली ,
दैत्यों का कर संहार , माँ सृष्टि बचानेवाली ।
करें आरती माँ की , प्यारी माँ सब कष्ट मिटावे ,
आई विपदा आज मनुज पर ,माँ शीघ्र ही बचावें ।
कवि- चंद्रकांत पांडेय,
मुंबई / महाराष्ट्र
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संपादकीय