एक होकर हम चलें
(कविता)
एक होकर जब चलेंगे,सबमें जगेगी तब चेतना।
एक दिन उज्ज्वल भविष्य होगा सभी यह देखना
हम न कुल से हो अलग,न हो हमारी राहें जुदा।
कौम वही आगे बढ़ा ,हिम्मत रही जिसमें सदा।।
कैसे हो सब भाइयों में,समझदारी और एकता।
सदमार्ग से वो ही भटकते,जो नहीं ख़ुद चेतता।।
अपने कुल की संस्कृति को सब लगाये यूँ गले।
दूर करके आपसी मतभेद व सब शिकवे गिले।।
प्रकृति ने सबको बनाया,हमको यहाँ छोटा बढ़ा।
क्यों सदा यह प्रश्न करते बेवजह होकर खड़ा।।
संगठन से जुड़कर ही,हम पेश करते है मिसाल।
हम सृजनशील कौम हैं,इस धरा के भोले लाल।।
लक्ष्य पाते हम सदा ही,धीर बनकर हो सफल।
दुश्मनों की चाल भी हो,नष्ट भ्रष्ट और विफल।।
ध्यान बस एकता पर,कमियाँ अपनी लायें नहीं।
जो भी हो गम्भीर मसले,बैठकर सुलझाए सभी।।
कुल सदा शिक्षित बने,श्रम से कौशल का प्रबंध।
उन्नति प्रगति मिलती रहेगी,हौसले रखना बुलन्द।।
रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा, वाराणसी
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संपादकीय