खुशी मोहताज नहीं वस्तु की।
एक वस्तु देती किसी को खुशी,
तो वहीं वस्तु जब होती किसी ओर के पास,
जरूरी नहीं उसके चेहरे पर भी हो एक मुस्कान,
मान्यता का भ्रम जो फैला है मन में,
मिलेगी अगर मुझे ये वस्तु,
तो शायद हो जाऊ मैं पहले से,
इस तरह कर लेते हैं मन अपने को, निर्भर एक वस्तु या एक पदार्थ पर,
चलते हैं फिर होकर अधीन उसके,
आते ना जाने कितने ही विचार मन अपने में,
परिस्थितियों पर रखेंगे जब कभी खुद को,
आसान नहीं होने देगी ये फिर जीवन अपना,
मुस्कुराने की महक रहे अगर हमेशा ताजा ताजा जीवन अपने में,
तो खुद को आदि ना होने दो किसी वस्तु या पदार्थ पर।
रचनाकार - डॉक्टर मयंक राजपाल
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संपादकीय/ रचना