नश्वर संसार-
कुछ भी स्थायी नही यहाँ पर ,
यह तो है नश्वर संसार ।
माया, ममता सब यही रहेगी ,
छूटेगा सारा घर द्वार ।
सुंदर तन , चंचल मन ,
विपुल धन भी यही रहेगा ।
रिश्ते नाते , भाई बंधु ,
साथ में कोई कहाँ चलेगा ?
कर लो अपनी करनी ऐसी ,
लोग करें तुम्हें भी याद ।
मधुर और प्रिय ही बोलो ,
जीवन तो बस सुंदर ख्वाब ।
रह जायेगी केवल करनी ,
बोली गई प्यार की बोली ।
सद्कर्म की प्यारी खेती ,
परोपकार की रीति जो घोली ।
जिनके चलने से धरा सहमती ,
वे भी केवल अब इतिहास ।
शोहरत , वैभव , नौकर चाकर ,
नहीं रह गया कुछ भी पास ।
आज धरा पर वही अमर ,
उनकी ही अमर कहानी ।
गायी जाती उनकी करनी ,
अमर है उनकी निशानी ।
जिसने पर पीड़ा को अपनी समझा,
जग को समझा अपना ।
संपूर्ण समाज को अपना जाना ,
खुद को केवल ईश्वर रचना ।
आज नही तो कल ही जाना ,
विश्व मुशाफिर खाने से ।
चाहे उम्र बीत जाने पर ,
या किसी ना किसी बहाने से ।
खुद तो आए रोते - रोते ,
जब जाओ तब जग रोये ।
काटोगे तो वही अंत में ,
जो कुछ जीवन में बोये ।
कवि- चंद्रकांत पांडेय,
मुंबई ( महाराष्ट्र )
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