अखण्ड भारत से भारत तक : एक विहंगावलोकन
लेखक-
डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
“भासृ दीप्तौ” धातु से भारत शब्द की उत्पत्ति हुई है,जिसका अर्थ होता है ज्ञान या प्रकाश में रत रहने वाला।भा+रत को कुछ विद्वानों ने ज्ञान रूपी प्रकाश में लगा हुआ या आंतरिक प्रकाश में लीन रहनेवाला कहकर पुकारा है।भारत को भारत वर्ष,जम्बूद्वीप,भारत खण्ड,आर्यावर्त,हिंदुस्थान,हिन्द,अलहिन्द,ग्यागर,फ़ग्युल,तियानझू,होडू आदि अन्य नामों से भी पुकारा जाता है।प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव के बड़े पुत्र भरत जो चक्रवर्ती सम्राट थे, के नाम पर ही इस देश का नाम भारत वर्ष पड़ा है।भारत का प्राचीन नाम अजनाभ वर्ष था,जो जैन तीर्थंकर ऋषभ देव के पिता नाभिराय के समय उनके नाम पर था।अजनाभ का मतलब अज माने माता या भूमि,नाभ माने नाभिराय वर्ष या समय।
भारत देश विविधताओं से परिपूर्ण एक ख़ूबसूरत देश है। अनादि अतीत वर्तमान और चिरन्तन भविष्य की कालजयी संस्कृति का यह देश पुजारी रहा है।यहाँ 100 से ज़्यादा भाषाएँ और 1700 से ज़्यादा बोलियाँ बोली जाती हैं।दुनियाँ का हर संप्रदाय यहाँ निवास करता है। प्राचीन काल में भारत अखण्ड,अविभाज्य एक दृढ़ राष्ट्र रहा है जो हिमालय से लेकर हिन्द महासागर तक ईरान से लेकर इंडोनेशिया तक फैला हुआ था।1857में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किलोमीटर था जो घटकर वर्तमान में 33 लाख वर्ग किलोमीटर ही रह गया है।वेदों पुराणों में जिस भारत देश का वर्णन मिलता है,वह आसिंधु यानि सिंधुपर्यन्त अखण्ड भारत ही है।वहाँ भारत देश की व्याख्या निम्नांकित शब्दों में की गयी है,जो भारत का एकात्मक चित्र प्रस्तुत करता है।
उत्तरम् यत्समुद्रस्य, हिमद्रैश्चैव दक्षिणम।
वर्षम् तद् भारतम् नाम,भारती यत्र सन्तति:।।
भारत देश में निम्न सप्त पुरियाँ,भारत देश के मर्मस्थल उसकी सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र बिंदु रहीं हैं।
अयोध्या,मथुरा,माया काशी,काँची,अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव, सप्तैता मोक्ष दायिका:।।
बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र में,भारत:खण्ड:सूत्र की अनुवृत्ति में आने वाले निम्न सूत्र अखण्ड भारत के विस्तार का वर्णन करता है।
सहस्र योजना बदरिका-सेत्वंता
द्वारीकादि पुरुषोत्तम सालग्रामान्ता सप्त शतयोजना।
तत्रापि रैवतक-विन्ध्य-सह्य-महेन्द्र-मलय-श्रीपर्वत-परियात्रा सप्त कुलाचला:।।
अर्थात् बदरी केदार से लेकर रामेश्वर तक 1000 योजन लम्बा तथा द्वारिका से लेकर पुरी तक 700 योजन चौड़ा देश भारत वर्ष है।रैवतकादि मुख्य सात पर्वत तथा गंगा,सरस्वती आदि मुख्य सात नदियाँ हैं,जो इसकी शोभा बढ़ाती रहीं हैं।
भारत का शिरोमुकुट हिमालय है,जो सभी पर्वतों का पति होने के कारण गिरिराज कहलाता है।सूर्य के 12 मंदिर,गाणपत्यों के अष्ट विनायक,शैवों के बारह ज्योतिर्लिंग,शाक्तों के 51 शक्तिपीठ तथा वैष्णवों के अगणित तीर्थ क्षेत्र सम्पूर्ण भारत में बिखरे पड़े हैं।बौद्ध,जैन,सिख तथा विभिन्न सन्तों को आचार्य मानकर चलने वाले छोटे मोटे पन्थ भी एक देशीय न होकर सर्वदेशीय दृष्टिकोण लेकर चलते हैं तथा भारत का कण कण उनके लिए वंदनीय है।ऋग्वेद में भारत के लिए कई मंत्रों का जिक्र है,जिसमें निम्न मुख्य है।
त्वम् नो असि भारतग्ने विशाभिरुक्षभि: अष्टापदी भिराहुतः-ऋग्वेद 2/7/5
सामवेद में भारत के लिए इस मंत्र का वर्णन किया है।
उद्गने भारत द्युमदजस्त्रेण दविद्युतत्।
शोचा वि भाह्यजर।। सामवेद 6/16/45
कुछ मनीषियों ने भारत की अर्चना उसे एक जीवंत इकाई मानकर की है।आइए उस पर दृष्टि पात करें।
आचार्य सोमनाथ वेदालंकार-हे भारत शरीर का भरण पोषण करने वाले (अजर) अविनाशी(अग्ने)जीवात्मन!
तुम(द्युमत)शोभनीय रूप से(अजस्त्रेण)अविच्छिन्न तेज से(दविद्युतत्)अतिशय चमकते हुए(उत्शोच) उत्साहित होवो,(विभाहि)विशेष यशस्वी हो ओ।।
पंडित हरिशरण सिद्धालंकार-हे प्रभो आप का उपासक बनता हुआ मैं भी अग्नि-आगे बढ़ने वाला बनूँ, भारत-भरण करने वाला न कि नाश करने वाला होऊँ, द्युमत-अपने जीवन को ज्योतिर्मय बनाने का उद्योग करूँ।अजस्त्रेण द विद्युतत्-निरन्तर ज्योति का प्रसार करने वाला होऊँ, आपकी उपासना मुझे संसार के प्रलोभनों में फ़सने से बचाए तथा मेरा जीवन आप की ज्योति से ज्योतिर्मय हो उठे।
स्वामी ब्रह्म मुनि परिव्राजक- (भारत-अजर-अग्ने) हे भरण कर्ता जरारहित- अमर परमात्मन! तू (अजस्त्रेण द्युमत) निरन्तर वर्तमान प्रकाश वाले तेज से (द विद्युतत्) प्रकाशित हुआ (उत्शोच-विभाहि) उज्ज्वलित हो, साक्षात् हो और हमें विभासित कर तेजस्वी बना।
अब आइए देंखें कि कौन कौन से देश किन वर्षों में भारत से अलग
होते गये अफ़गानिस्थान 1876 में जो उपगण स्थान एक शैव देश गांधार जो महाभारत का हिस्सा था अलग हुआ।नेपाल जो देवघर नाम से जाना जाता था वर्ष 1904 में भारत से पृथक हुआ।1906 में भूटान भारत से अलग हुआ और 1907 में तिब्बत के बाद 1935 में श्रीलंका भारत से पृथक हुआ। म्यांमार (वर्मा) जो ब्रह्मदेश के नाम से भी पुकारा जाता था वर्ष 1937 में हमसे अलग हुआ।पाकिस्तान सन् 1947 में हमसे अलग होकर एक स्वतन्त्र देश बना, जिससे भारत जो पहले अखण्ड भारत था वह धीरे धीरे वर्तमान स्वरूप में आ गया।
लेखक : पूर्व ज़िला विकास अधिकारी, मोटिवेशनल स्पीकर, कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित वरिष्ठ साहित्यकार, कई पुस्तकों के लेखक, शिक्षाविद्, ऑल इंडिया रेडियो वाराणसी के नियमित वार्ताकार, ज़िला ग्राम्य विकास विभाग के नामित वरिष्ठ प्रशिक्षक के रूप में चर्चित व्यक्तित्व के धनी हैं, जिनके नाम से शिक्षा संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, कमच्छा-वाराणसी में शोध छात्रों को बेस्ट पेपर अवार्ड भी दिया जाता है।
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संपादकीय/ लेख