लालच बुरी बला

    
       लालच बुरी बला 

दुनियाँ  मे   युगों   से  आज   तक , 
हुआ    ना    इससे   कोई   भला  । 
बिल्कुल    सत्य    कहा  लोगों  ने , 
लालच     है     एक    बुरी   बला । 

धन , जमीन , इज़्ज़त ,शोहरत  की , 
नहीं    कोई   एक   निश्चित   रेखा । 
सदा     मोह     बढ़ता   ही   जाता ,
धन    हेतु   अनर्गल   करते  देखा । 

कितने   लोग  लालच   में  आकर  , 
अनैतिक   कार्य  भी   करते  रहते । 
मानवता      के    दुश्मन    बनकर , 
नीति  की  जगह अनीति ही  करते । 

चोरी  ,  बेईमानी  , धोखा  भी  देते , 
कानून   का   भी  करते  उल्लंघन । 
मानव    होकर  भी   दानव  सदृश , 
तोड़ते      हर   मर्यादा   सीमांकन । 

विकास   करना    बहुत    जरूरी  , 
इंसानियत    का   भी   रहे   ध्यान । 
पर   लालच  करना  बुरी  बला  है , 
याद  इसे  अवश्य   रखे   इनसान । 

कवि चंद्रकांत पांडेय, स्वरचित / मौलिक 
मुंबई  ( महाराष्ट्र  )

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