श्रीराम की चरण पादुका
अचानक ननिहाल से अयोध्या आने पर,
भरत को पिता का पता चला स्वर्ग गमन।
बहुतअसहज,अत्यंत कष्टकर प्रतीत हुआ,
व्यथित मन,विह्वल तन,अश्रु सिंचित नयन।
ज्ञात हुआ पिता के दारुण कष्ट का कारण,
निज जननी के प्रति मन आक्रोशित हुआ।
चौदह वर्ष वन गमन राम का सुनकर तुरंत,
माता कैकेई के ऊपर दिल आंदोलित हुआ।
पिता अंत्येष्टि से निवृत होकर भरत,
भाई श्रीराम को लेने सबके सहित चले।
राजसिंहासन की किंचित इच्छा न मुझे,
दास मैं उनके समक्ष,उन्होंने ये वचन कहे।
"पिता वचन पालन कुल मर्यादा मेरी,"
"भरत ! रघुकुल रीति निभाना होगा।"
"अपनी चरण - पादुका दे दें भईया,
मुझे सिंहासन पर रख,राज्य चलाना होगा।"
कवि- चंद्रकांत पांडेय
मुंबई / महाराष्ट्र,
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संपादकीय (कविता)