रचनाकार
(कविता)
रचनाकार लोक जगत में
है समाज हितकारी।
शब्दों का वह ब्रह्मा होता,
शब्दों से उसकी यारी।।
नित,और सतत चिंतन से,
सर्जन करता जग कारी।
ज्ञान लोक में उसकी रचना,
गंगा सम है उपकारी।।
गढ़ मठ तोड़े फोड़े वह,
ले ज्ञान शक्ति का साधन।
कमजोरों में जान फूँकता,
करे शक्ति आराधन।।
मंचों पर वह ज्योतिकांत बन,
करता कभी ठिठोली।
उसकी नाभि शक्ति पुंज है,
मुख नि:सृत वह बोली।।
भाषा का वह पूजक होता,
शक्ति सिद्ध अधिकारी।
प्रत्युपन्नमति है उसका,
दिव्य शक्ति अवतारी।।
शब्दों के ख़ुद संयोजन से,
वाणी को वह साजे।
मधुर कंठ से गीत सुनाकर,
मंचों पर वह राजे।।
रचनाएँ उसकी चमकाती
और परिष्कृत करती।
ज्ञान मान सम्मान बढ़ाती,
जोश हृदय में भरती।।
माँ की गुप्त पश्यंति प्रभा,
से जग में वह छा जाता।
इसीलिए वह कविर्मनिषी,
स्वयम्भू भी कहलाता।।
रचनाकार:डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर वाराणसी
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संपादकीय (कविता)