धर्म,आध्यात्म,दर्शन की मनोरम मंजूषा,पुरियों में सिरमौर काशी
डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
भारत की जनभावना की प्रतीक पतित पावनी माँ गंगा के तट पर अवस्थित काशी की उत्पत्ति “काश “धातु से हुई,जिसका अर्थ होता है प्रकाशमान,प्रकाशित करना।इसीलिए मनीषिगण कहते है कि “काशयति प्रकाशयति इदम सर्वम इति काशी “मतलब जो सबको प्रकाशित करे,उसे काशी कहते हैं।काशी प्राचीन काल से आध्यात्म धर्म दर्शन व सभ्यता और संस्कृति के विकास का केंद्र रही है।यह नगरी अपने अंतराल में देश के धार्मिक,पौराणिक,आध्यात्मिक इतिहास को छिपाये हुए है ।जब एथेंस के बारे में सोचा नहीं गया था,जब मिस्र का अस्तित्व नहीं था और रोम की कल्पना तक नहीं की गयी थी।इस नगर की स्थापना हज़ारों वर्षों पहले सप्तऋषियों ने की,जब वे कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिले व उनसे दीक्षा लेने के बाद काशी पधारे।कहते हैं कि काशी,धरती से ३३ फीट ऊँची है और प्रलयकाल में भी यह छत्राकार प्रकाशमान विराजमान रहती है,जो विनष्ट नहीं होती।इसे ब्रह्म स्वरूप माना जाता है जिसके कण कण में भगवान शिव का वास माना है।इसीलिए कहा जाता है-
“काश्यते शने काश्यते शुभते सदा इति काशी।”
काशी के बारे में यह भी लिखा गया है कि-
असारे खलु संसारे सारमेतच्चतुष्टयम।
काश्याम वास:सताम संगो गंगांभ:शम्भु सेवनम् ।।
काशी वास,सन्त महात्माओं की संगति,तप और साधना से जो गति योगेश्वरों और मुनीश्वरों को नहीं प्राप्त होती,वह काशी वास से संभव हो जाती है।चार सारभूत बातें काशी में उपलब्ध हैं पहला गंगा जल,दूसरा सत्पुरुषों का संग तीसरा भगवान शिव का पूजन और चौथा काशी प्रवास।
मान्यता है कि यह काशी इंसानों को ब्रह्मांड से जोड़ती है ।यहाँ ५४ मन्दिर शिव के और ५४ शक्ति पीठ के केंद्र हैं।काशी में ही अंकगणित की खोज हुई।अति प्राचीन नगरी जो सर्व विद्या की राजधानी रही है जहाँ ज्ञान,विज्ञान,संगीत,कला व व्यापार का केंद्र रहा।जहाँ रेशमी वस्त्र और सुगन्धित द्रव्यों का भी व्यापार हुआ करता था।
काशी का महत्व हर युग में रहा है।यहाँ विभिन्न सम्प्रदायों जैसे-वैष्णव,गाणपत्य,सौर्य सम्प्रदाय भी पुष्पित व पल्लवित हुए।श्रमण परम्परा के दो प्रमुख धर्म भी बौध और जैन धर्म के लिए भी काशी का स्थान विशिष्ट रहा है।जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर पार्श्व नाथ जी,जो काशीराज अश्वसेन के पुत्र थे,यही पैदा हुए।जिनका काल ८०० ईसा पूर्व माना जाता है।ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है “काशिरित्ते..... आप इव काशिना संगृभिता:।
पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान के रूप में भी जाना रहा है।विंदुमाधव मंदिर भी यहाँ विद्यमान है ।
काशी हर पंथों की वाटिका भी मानी जाती रही है।यह नगरी सभी धर्म के अनुयायियों के लिए प्रकाश स्तम्भ के रूप में भी विख्यात है।काशी की आध्यात्मिक यात्रा आत्म खोज व आध्यात्मिक विकास की यात्रा रही है।यही कारण है कि सात समंदर पार से भी यहाँ प्रति वर्ष हज़ारों विदेशी सैलानी यहाँ घूमने आते रहें हैं।गंगा में स्नान करने से आत्मिक शुद्धि व नवीनीकरण की भावना बढ़ती है।स्कन्द पुराण में स्वतन्त्र रूप से काशी के महात्म्य पर काशी खण्ड के रूप में अध्याय लिखा गया है ।यहाँ भगवान विश्वकर्मा ने स्वम् सर्वप्रथम आदि विश्वेश्वर लिंग की स्थापना की।कालान्तर में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण हुआ।काशी को मोक्षदायिनी पुरी के रूप में मान्यता मिली है।यह सप्त पुरियों में सिरमौर मानी गई है।सप्त पुरियों में अयोध्या,मथुरा,माया,काशी,कांची,अवंतिकाऔर द्वारिका पुरी की गणना की जाती है।इन में काशी को विशेष माना जाता रहा है।कहते हैं कि भगवान विष्णु स्वम् भगवान शिव की आराधना करने यहाँ पधारे थे,जिससे यह क्षेत्र द्रविभूत हो गया।शिव की सायुज्यता उन्हें प्राप्त हुई।इस जीवंत नगरी में माँ अन्नपूर्णा भी विराजमान है जो किसी को भूखा सोने नहीं देंती।भगवान शिव की कृपा इस अवमुक्ति क्षेत्र में उन्हें प्राप्त होता है,जो भी यहाँ भक्ति भाव से आता है।
पंच कोशात्मक काशी का भू भाग माना गया है।जो भू पर स्थित होकर भी भू से अलग प्रक्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।यहाँ मरणोत्तर मोक्ष की कामना के लिए भी लोग प्रवास करते है।मुमुक्षु भवन जो अस्सी पर है,जहाँ विभिन्न प्रांतों से लोग आकर प्रवास करते हैं।कहा जाता है-काश्यां मरणां मुक्ति,यानि काशी में प्राण त्याग करने पर,मुक्ति मिलती है यैसी लोगों की धारणा है।आज भी कहते है-जो कबीरा काशी मरे,रामही कौन निहोरा।यह भी जनश्रुति है- जासु नाम बल शंकर काशी,देत सबही को गति अविनाशी। काशी में भगवान शिव का भाव चरित यहाँ की गलियों वीथिकाओं में व्याप्त है जो भक्ति की पावन मधुरता को बिखराती है।यहाँ के वासियों में सर्वेश्वर,त्रिभुवनपति,भूतवाहन भोले नाथ की महिमा सभी की भाव चेतना और भाव समाधि में आज भी विद्यमान है।
आइये!इस नगर के नामकरण पर थोड़ी चर्चा की जाए।पहले इसको आनन्दवन कहते थे जब भगवान शिव स्वम् यहाँ निवास करते थे।इसे रुद्रवास और अवमुक्ति क्षेत्र भी पुकारा जाता है।पुनः इसको काशी कह कर पुकारा जाने लगा।काशी का इतिहास कम से कम 8वीं शती ईसापूर्व से निरंतरता में आज तक विद्यमान है,जो इस नगर को दुनिया के अन्य नगरों से विशिष्ट बनाता है कि काशी की जीवन दृष्टि और संस्कृति अपने समन्यात्मक विचारों के कारण विशेष है।मत्स्य पुराण (180/68)के अनुसार इसका नाम कभी अलर्कपुरी था।अलर्क,काशी के प्रतापी राजा थे,उन्ही के नाम पर इसे अलर्कपुरी भी कहा गया।भगवान बुद्ध के समय यह नगर कोसल जनपद के अन्तर्गत आता था ।बाद में इसका नाम बृहद चरण कहलाया।जब बन्नार नाम का राजा यहाँ राज्य करता था तो इसे बनारस के नाम से पुकारा जाने लगा।बनारस के सन्दर्भ में एक शायर लिखता है।
कतरा कतरा जिस जगह का पारस है।
शहर वह कोई और नहीं,अपना बनारस है।
इसके बाद इस नगर का नाम महाजनपद भी पड़ा था।
कालान्तर में यहाँ दो नदियाँ बहती थी वरुणा और अस्सी इसी लिए इन दो नदियों के बीच के भूभाग को वाराणसी कहा जाने लगा जो अब प्रचलित है।इसे आनन्द कानन ,महाश्मशान,रुद्रावास,काशिका,तप:स्थली,मुक्तिभूमि,शिवपुरी,त्रिपुरारी नगरी,विश्वनाथ नगरी,आदि नामों से भी पुकारा जाता है ।
विद्वत परम्परा की यह अकेली नगरी है जहाँ विश्व विश्रुत विद्वान यहाँ पैदा हुए और इस नगर में आए।समूची दुनिया को धर्म ज्ञान का उपदेश देने वाली नगरी को भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली होने का भी गौरव प्राप्त है।यहाँ विभिन्न धर्म सम्प्रदाय के लोगों ने ज्ञान की ज्योति जलाए रखी यहाँ उत्तर वाहिनी माँ गंगा की अविरल धारा में युगों युगों की जीवन गाथा,सभ्यता संस्कृति संस्कार का ज्वलंत उदाहरण पेश किया है।यहाँ अनेक सन्त महात्माओं विद्वानों और विभूतियों ने काशी के यशभाल पर अपनी कीर्ति का तिलक लगाया है जिसमे सन्त तुलसी,सन्त कबीर,उनके गुरु रामानन्द,रैदास,आदि शंकराचार्य तथा ३५० वर्षों से अधिक भक्तों को अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित करने वाले तैलंग स्वामी जिसे सचल विश्वनाथ भी कहा जाता था भी पंचगंगा घाट पर कभी विराजमान हुआ करते थे।वे गंगा माँ के भी अनन्य भक्त थे और जो भी माँ से मागते वह उन्हें प्राप्त हो जाया करता था।उन्हीं के समकालीन गृहस्थ योगी राज लहड़ी महाशय भी काशी की तंग गलियों में निवासरत रहे हैं।
नज़ीर बनारसी साहब लिखते हैं-
मिलता है निगाहों को सुकून हृदय को आराम,
क्या प्रेम है,क्या प्यार,बनारस की गली में ।
हर सन्त के,साधु के,ऋषि और मुनि के,
सपने हुए साकार बनारस की गली में ।।