पुरियों में सिरमौर है, काशी
(कविता)
पुरियों में सिरमौर है काशी।
हर हर बम बम बोले वासी ।।
यह है शांति मुक्ति का द्वार।
महिमा इसकी अपरम्पार ।।
मोक्ष की भूमि है कहलाती।
तप:स्थली जानी जाती ।।
देव दीपावली गंगा पूजा ।
काशी जैसा नगर न दूजा।।
शिव की महिमा का संचार।
अविरल गंगा की जल धार ।।
मिलता हर मुश्किल का हल ।
गंगा का अति पावन जल ।।
यहाँ भ्रमण से आता अनुभव।
सुबह सबेरे पंक्षी कलरव ।।
सन्तों की है अनन्त शृंखला।
धर्म आध्यात्म की है मेखला।।
इसीलिए यह पूजी जाती।
सैलानियों के मन को भाति ।।
हुए यहाँ विश्रुत विद्वान ।
करते रहे सबका सम्मान।।
मरणोत्तर मोक्ष के नाते ।
बसने लोग यहाँ पर आते ।।
भोले शंकर हैं अविनाशी ।
स्वर्ग से न्यारी अपनी काशी ।।
जर्रा-जर्रा जहाँ का पारस।
कहते इसको अभी बनारस।।
सभी भाव व रस की ख़ान ।
अपनी काशी रही महान ।।
रचनाकार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर - वाराणसी