विश्वकर्मा कुल की शैक्षिक व सामाजिक प्रगति कैसे?

विश्वकर्मा कुल की शैक्षिक व सामाजिक प्रगति कैसे? 

 लेखक- डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा 
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मित्रो! विश्वकर्मा कुल की गणना यांत्रिक गुणों की संपन्नता के कारण होती है।आदि काल से यह कुल एक सम्पन्न कुल के रूप में जाना जाता रहा है।वैदिक काल में लगभग ७३२००० गुरुकुल जो संचालित थे उनमे मेटलर्जी(धातु कर्म शास्त्र)की भी शिक्षा दी जाती थी उनके आचार्य विश्वकर्मा वंशीय ही हुआ करते थे क्योंकि धातुकर्म का ज्ञान विश्वकर्मा वंशीय ऋषियों को ही था।देवताओं की रक्षा व तत्कालीन युग में लोग अपनी सुरक्षा हेतु भगवान विश्वकर्मा व उनके वंशजों के ही पास पहुँच कर उनसे अपने रक्षा की गुहार लगाते थे व यथोचित अस्त्र प्राप्त करते थे।आदि काल से यह कुल अपने यांत्रिक,तकनीकी ज्ञान व कौशल के कारण अनेकानेक अस्त्र शस्त्र व आयुधों के निर्माण में पारंगत रहा,जिससे इस कुल के लोग आर्थिक रूप से काफ़ी सम्पन्न रहे।इस समाज की बदौलत ही देश की आर्थिक प्रगति होती रही ।देश की जीडीपी भी इन्हीं कारीगरों के समानों की बिक्री से आकलित होती थी,और देश सोने की चिड़िया कहलाता था।पूर्व में जितने भी उद्योग धंधे गाँव गिराव में भी चलते थे तथा दुनियाँ में कल कारखाने होते थे उनमे यांत्रिक व मशीनरी ज्ञान रखने वाले विश्वकर्मा कुल के ही कारीगर हुआ करते थे।समय बदला जगह जगह तकनीकी ज्ञान विज्ञान के शिक्षा केंद्र खुले और ज्ञान का विस्तार अन्य कुल में परिव्याप्त होने लगा फलस्वरूप अन्य पंथों सम्प्रदायों व जातियों के लोग शिक्षित होकर उस ज्ञान से  अपनी जीविका नौकरी आदि का प्रबन्ध करने लगे।तकनीकी शिक्षा पर अधिकार धीरे धीरे अन्य जातियों का भी होने लगा।आज के इस औद्योगिक व मशीनी युग में तो कौशल ज्ञान पर सभी का समान अधिकार हो गया है जिससे अपने कुल का भी कार्य व पैतृक काम धंधों को अब अनेक जातियों ने अपना लिया।आज विश्वकर्मा कुल के पांचों भाइयों के व्यवसायों पर अन्य जातियों का भी वर्चस्व दिखने लगा है।अब लौहकार,ताम्रकार,काष्टकार,स्वर्णकार व शिल्पकार कोई जाति विशेष के लोग ही नहीं बन रहें हैं बल्कि पूर्व जमाने के जाति गत व्यवसायों पर अन्य जाति के लोग भी काविज होते जा रहे हैं जिससे आज विश्वकर्मा समाज दिनों दिन आर्थिक स्तर पर कमजोर होने लगा है।इस स्थिति को देखकर हमें अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने का प्रबन्ध करना पड़ेगा अन्यथा हम दिनो दिन और आर्थिक रूप से कमजोर होते चले जाएँगे।शिक्षा 
को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपने सामाजिक संगठनों को सर्वप्रथम बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से हर जिलों में शिक्षा संवर्धन कोष की स्थापना करनी चाहिए और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को मदद देकर उन्हें शिक्षित करने में पूरी ताकत लगानी होगी।यदि वस्तियों में कोई विश्वकर्मा मंदिर है तो वहाँ छोटे बच्चों की बाल सभाएँ आयोजित कर उन्हें शिक्षा के महत्व को उनके जेहन में जागृत करना पड़ेगा।रात्रि कालीन कक्षाएँ भी शुरू की जा सकती हैं ।बच्चों के विकास हेतु विविध आयोजन भी शुरू करने होंगें जिससे अपने कुल के बच्चों का शुरू से सर्वांगीण विकास हो सके।शिक्षा संवर्धन कोष से बच्चों को सैनिक स्कूल,नवोदय विद्यालय,अटल आवासीय  एवम् अन्य अच्छे शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु शॉर्ट टर्म के प्रशिक्षण भी चलाकर बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के योग्य बनाया जा सकता है ।समाज के धनिक लोगों को अपने योगदान से महानगरों में विश्वकर्मा धर्मशाला या विश्वकर्मा निःशुल्क आवासीय भवनों का निर्माण करने का प्रबन्ध करना होगा,ताकि अपने जाति के कमजोर बच्चे ऐसे स्थानों पर आवासित होकर महानगरों में अध्ययन कर सकें और प्रतियोगी परीक्षाएं भी रुक कर दे सकें।मुझे ज्ञात हुआ है कि अब बहुत से लोग अपने कुल के बच्चों को,जो प्रतियोगी परीक्षा हेतु अन्य जनपदों में जा रहें हैं उन्हें विश्वकर्मा समाज के लोग जिनके पास ठहरने की अतिरिक्त व्यवस्था है,गेस्ट हाउस हैं,वे निःशुल्क कमरे दे रहे है,जो अपने कुल के ग़रीब बच्चों के भविष्य निर्माण हेतु एक शुभ संकेत है। वाराणसी जनपद में गठित अखिल भारतीय विश्वकर्मा ट्रस्ट के प्रबंधक श्री शशिधर पंच गौण जी द्वारा पांचाल शांति कुंज की भी स्थापना की गयी है जिसमें समाज के लोग वाराणसी भ्रमण यहाँ रुक कर नॉमिनल चार्ज में ठहर कर अपना कार्य सम्पादित कर सकते हैं ।छात्र भी रुक कर प्रतियोगी परीक्षा दे सकते हैं।लखनऊ में डॉक्टर नूतन जी द्वारा अपने कुल के बच्चों को मेडिकल प्रवेश हेतु निःशुल्क कोचिंग की व्यवस्था की गयी है,जिससे कई छात्रों को मेडिकल में प्रवेश मिला है,जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक है।
समाजिक प्रगति हेतु हम अब ज़्यादा सतर्क हुए है,बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर जी भी तीन चीजों पर ज़्यादा ध्यान देने की वकालत करते थे।पहले शिक्षित बनो,संगठित रहो और संघर्ष करो।यह सूत्र सभी कमजोर तबकों के लिए संजीवनी का काम करता है।
आज हमारा विश्वकर्मा समाज भी जगा है,परन्तु उस अनुपात में नहीं जितना अन्य जातियों जैसे पटेल,यादव,जाट में जागरूकता देखने को मिल रही है| अपने कुल के बच्चे छोटी मोटी नौकरी को बस प्राप्त करने अथवा डॉक्टरी या इंजीनियरिंग की ओर ही आकर्षित हैं|आज अपने कुल के बच्चे हायर एजुकेशन की तरफ़ अग्रसर कम दिख रहें हैं।कृषि विज्ञान जो आज की तारीख़ में अच्छी नौकरी देने वाला विभाग है में दाखिला लेने वाले अपने समाज के बच्चों की संख्या नगण्य है।वाणिज्य विभाग की ओर तो अपने बच्चे जाने का नाम भी नहीं लेते वे सोचते है कि वाणिज्य पढ़कर क्या होगा,जबकि यह विषय भी नौकरी देने वाला है ।
इसरो(इण्डियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन)भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र एवम् रक्षा अनुसंधान में वैज्ञानिक बनने की सोच भी अपने कुल के बच्चे,पैदा नहीं कर पा रहें हैं।एमबीए बैंकिंग सेवाओं में तो कहीं इक्का दुक्का ही कोई बच्चा चयनित हो पा रहा है।
ललित कलाओं से बच्चे ज़्यादा कारुणिक व संवेदनशील होते हैं।ललित कला का क्षेत्र अपने कुल के होनहार छात्रों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है,परन्तु अपने कुल के अभिभावक बच्चों को बीएफए/एमएफए/बैचलर ऑफ़ म्यूज़िक व मास्टर ऑफ़ म्यूज़िक की तरफ़ ले जाने में कतराते हैं वे सोचतें हैं कि हम अपने बच्चों को फाइन आर्ट्स पढ़ाकर क्या करेंगे साथियों ललित कला का क्षेत्र आज काफ़ी पैसा कमाने वाला क्षेत्र बनता जा रहा है ।
अपने कुल के जो भी बच्चे /बच्चियाँ घर बैठे अध्ययन करना चाहते हैं,उन्हें राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज से अथवा इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय दिल्ली से मन पसन्द विधाओं में कोर्स कर सकते हैं जिनके केंद्र कई नगरों में होते हैं जहाँ जाकर फ़ार्म भरने की सुविधा होती है।
युवक/युवतियाँ जो स्नातक/परास्नातक नहीं हो पाये हैं वे भी घर बैठे कम पैसे में शिक्षा अर्जन कर सकते हैं।यदि कोई बहन अच्छी पेंटिंग करती है तो वह एम ए पेंटिंग कर नेट क्वालीफाई कर पेंटिंग में प्रवक्ता बन सकती हैं।फैशन डिजाइनिंग व कार्पेट में भी डिप्लोमा पाठ्यक्रम पूरा कर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है ।
इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय से बीएड/एमएड/पीएच डी भी घर बैठे किया जा सकता है।यहाँ से क्रिएटिव राइटिंग में डिप्लोमा कोर्स के अलावा अनुवादक के भी कोर्स किए जा सकते हैं और अपनी योग्यता को बढ़ाकर एक सुयोग्य नागरिक बना जा सकता है ।कई प्रकार के अन्य कोर्स भी संचालित किये जाते है जिन्हें करके जॉब पाया जा सकता है।
यदि कोई विद्यार्थी केवल इण्टर या हाई स्कूल विज्ञान से पास किया है और उसके घर की स्थिति आगे पढ़ाई कराने की न हो तो ऐसे विद्यार्थी कहीं अच्छे संस्थान से फ़िटर,इलेक्ट्रीशियन,वेल्डर कंप्यूटर डिप्लोमा आदि करके जॉब पा सकते हैं।
जॉब पाने के लिए कौशल विकास केंद्र जो लगभग हर जनपदों में खुले है,वहाँ से भी 600,150 घंटों के शॉर्ट टर्म के कोर्स भी भारत सरकार के निर्देशन में चलाए जाते हैं जहाँ से सर्टिफिकेट प्राप्त कर मेडिकल असिस्टेंट व नर्सिंग में नौकरी अस्पतालों में पायी जा सकती है।यदि कोई छात्र विद्यार्थी नाटक में अभिनय अच्छा कर लेता है तो उसे काशी विद्यापीठ से कुछ माह का नाट्य शास्त्र में डिप्लोमा लेकर फ़िल्म में अपना भाग्य आज़मा चाहिए| इतना ही नहीं आज बहुत सारे जॉब ओरिएंटेड कोर्स चलाए जा रहे हैं बस अपनी अभिरुचि के अनुसार पाठ्यक्रम कर आप अपनी मंजिल प्राप्त कर सकते हैं ।
साथियों !एक कवि की पंक्तियाँ उद्धृत करते हुए मैं अपनी लेखनी को यही विराम दूँगा——
      बहाने में पसीना,जिस किसी को शर्म आती है,
      उसी के द्वार पर सिर्फ़ मुफलिसी,आसूँ बहाती है।
      रुको मत मार्ग में,व्यवधान के उत्पन्न होने से,
      नदी चट्टान से ही लड़ कर,अपना पथ बनाती है ।।

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