स्वास्थ्य,शिक्षा,संस्कार व रोजगार:घर,परिवार के उन्नति का आधार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
भ्राता श्री व बहनों !
स्वास्थ्य हमारे जीवन का महत्वपूर्ण आयाम होता है।यह हमारे शारीरिक,मानसिक और सामाजिक तन्तु का संतुलन होता है,जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।सर्वप्रथम हम सभी को अपने और अपने परिवार और बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।कहते भी है कि” पहला सुख निरोगी काया”आप समझ ही गए होंगें कि स्वास्थ्य हमारे व परिवार और समाज के लिए कितना अहम है।
“कुमार संभव “नामक ग्रन्थ में कालिदास ने लिखा है “शरीर माद्य यम खलु धर्म साधनम” यानि इस शरीर से ही हम सभी,भौतिक क्रियाएँ सम्पादित करते है अतः इसे निरोगी रखना हम सभी का अपरिहार्य दायित्व है।मनीषियों ने यह भी कहा है कि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मस्तिष्क निवास करता है।वास्तव में यदि कोई बच्चा बीमार है तो वह कैसे अपनी सही ढंग से पढ़ाई कर पाएगा और वह कैसे अपना करियर बना पाएगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहा है कि “स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक,मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति है,न कि केवल बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति”इस पर हमे ध्यान देना चाहिए।
अब हम सभी शिक्षा के महत्व पर ध्यान देंगे और समझेंगे कि शिक्षा क्यों सभी के लिए महत्वपूर्ण है।
शिक्षा मानवीय संवेदना का ऐसा श्रृंगार है जो मानव में विवेक,ज्ञान ,समझ और समर्पण की भावना विकसित करती है ।शिक्षा से ही मानवीय सम्पदा में वृद्धि होती है और प्रत्येक क्षेत्र में समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।शिक्षा के महत्व को तो हम सभी जानते ही है कि शिक्षा ही व्यक्ति की तीसरी नेत्र समझी जाती है।बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने कहा है कि “शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पियेगा वह दहाड़ेगा “अन्य विद्वानों ने शिक्षा को भविष्य निर्माण के लिए और अज्ञान व अविद्या के विनाश हेतु अत्यंत ही उपयोगी माना है।कहते भी हैं कि
शिक्षा,मानव जीवन का वह श्रृंगार है जो उसे सत्यम शिवम् सुंदरम् से अभिसिंचित करती है।
शिक्षा संगत व संस्कार के महत्व को रेखांकित करते हुए वॉटसन नाम के एक मनोवैज्ञानिक ने कहा है,,,,,
Give me a child I can make him dictor lawyer and dacoit also.
शिक्षा से ही व्यक्ति अपने हित व अहित की बातें सोचने लगता है।परन्तु समाज में लोग केवल शिक्षा पा लेने को नौकरी से ही जोड़कर देखने लगे है।कारण यही है कि लोग शिक्षित होकर केवल नौकरी पाने की चाहत रखते है और उच्च शिक्षा पर ध्यान नहीं देते। खैर आज शिक्षा को भी इतना मँहगा किया जा रहा है कि कमजोर तबके के गरीब छात्र उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते,फिर भी उन बच्चों को तो अवश्य ही उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है,क्योंकि शिक्षा कभी बेकार नहीं जाती।
मैं अपने जीवन का उदाहरण देना चाहूँगा,कि मैंने लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश की,राज्य /प्रवर अधीनस्थ परीक्षा पास कर खण्ड विकास अधिकारी हो चुका था फिर भी मैंने डॉक्ट्रेट करने की इच्छा नहीं छोड़ी और डॉक्ट्रेट की उपाधि लेकर ही दम लिया।
आज बड़े फ़क्र से मैं अपने नाम के आगे डॉक्टर की उपाधि लगाता हूँ और समाज में जगह जगह सम्मान का हकदार होता हूँ।अतः मित्रो!पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती आप नौकरी में रहते हुए भी यदि अभीप्सा है तो आप उच्च शिक्षा अर्जित कर सकते हैं।आइये संस्कार के महत्व को जाने व समझें ।
संस्कार द्वारा ही व्यक्ति महान बनता है और अपने कुल परिवार का नाम रोशन करता है।संस्कारों का सर्वाधिक महत्व मानवीय चित्त की शुद्धि के लिए जरूरी होता है।संस्कारों के द्वारा ही व्यक्ति में चरित्र का निर्माण होता है।संस्कार से ही व्यक्ति के आचरण,विचार और व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आता है।संस्कारों के माध्यम से ही व्यक्ति में नैतिकता,अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारी का विकास होता है।कहते हैं कि”जन्मने सर्वे शूद्रा:,संस्कारायते द्विजो भवति।”मतलब साफ़ है कि जन्म के समय सभी शुद्र होते हैं,संस्कार से ही व्यक्तित्व में ब्राह्मणत्व आता है।संस्कार का अर्थ,गुणों का आधान किसी में करा देना ही संस्कार कहलाता है।संस्कार की बदौलत ही भगवान राम ने प्रतापी राजा रावण को मात दी थी।साथियों यह भारत के ऋषियों महर्षियों का संस्कार ही था कि वैदिक काल में यह देश विश्व गुरु था और अन्य देशों को जीवन जीने का मार्ग सिखाता था।कहते हैं कि”फैला यही से ज्ञान का आलोक सब संसार में।जागी यहीं थी,जग रही जो ज्योति अब संसार में ।।” सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा देने वाले हमारे देश के महान ऋषि और महापुरुष ही थे जिन्होंने अपने देश के लिए मान सम्मान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।
संस्कार से ही हमे जीवन मूल्यों को आत्मसात करने की प्रेरणा मिलती है और हम समाज में मूल्यों को स्थान देना सिखते हैं ।आज हम सभी संस्कार विहीनता की ओर तेजी से अग्रसर हैं तो भला घर परिवार और समाज में विघटन कैसे नहीं होगा।आधुनिकता के नाम पर हम संस्कार विहीन शिक्षा,अपने बच्चों को दे रहें हैं।अगर आज शिक्षा में आदर्श होता,नैतिकता होती,धार्मिकता का पुट होता तो बच्चे चलती लड़कियों पर फब्तियाँ न कसते और अपने गुरुजनों को छुरा न घोपते ।कदाचार और पापाचार के कारण ही कितने देश विश्व के मान चित्र से गायब होने की स्थिति में आ चुके हैं।वहाँ इतनी आतंकवादी घटनाएँ और युद्ध की विभीषिका फ़ैल चुकी है कि मानवता नाम की कोई चीज़ ही नहीं बची है।निरपराध बच्चे महिलाओं को क़त्ल के घाट उतारा जा रहा है।अपराध से धरती लहूलुहान हो रही है।अतः अभी भी समय है,जब हम अपने बच्चों को संस्कार युक्त शिक्षा देकर परिवार समाज व देश को विनाश के गर्त में जाने से बचा सकते हैं ।अब आइये रोजगार की महत्ता को समझे और उसके औचित्य पर दृष्टिपात करें ।
रोजगार ही व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता,आत्म सम्मान और भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है।यह केवल व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं बल्कि समग्र अर्थ व्यवस्था के लिए भी जरूरी होता है ।कोई भी देश अपने नागरिकों को रोजगार देकर ही उनके परिवार को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है।रोजगार से ही कोई भी व्यक्ति संपन्नता व प्रसन्नता प्राप्त करता है।एक चिंतक ने कहा है कि रोजगार एक प्राकृतिक चिकित्सक भी होता है,जो व्यक्ति को सुख व प्रसन्नता प्रदाता होता है,,,Employment is a natural physician which gives happiness to the people.
अतः हम कह सकते हैं,कि रोजगार से ही व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और वह अपने जीवन को बेहतर बनाने में और अपने बच्चों की देखभाल करने और उन्हें आगे बढ़ाने में सक्षम होता है ।
लेखक:पूर्व जिला विकास अधिकारी व मोटिवेशनल स्पीकर के साथ साथ कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित वरिष्ठ साहित्यकार,सामाजिक चिंतक व ऑल इंडिया रेडियो के नियमित वार्ताकार व कई पुस्तकों के लेखक व शिक्षाविद हैं।
Tags:
संपादकीय/ शिक्षा