वीरानों के बागवां (काव्य संग्रह) पुस्तक की समीक्षा
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ब्राह्मण परिवार में जन्मी श्रीमती ममता तिवारी जी काव्य क्षेत्र और साहित्यकारों में एक मूर्धन्य नाम है । आदरणीया अनेक लेखन विधाओं की स्वामिनी है । मुक्तक, गीत, ग़ज़ल,दोहा, कविता, और भी अन्य विधाओं में आपके लेखनी को महारथ हासिल है ।दसवीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान ही आपने एक कविता के रुप में अपनी पहली रचना लिखी । अध्ययन के दौरान भी आपकी लेखनी अविश्राम चलती रही।
कोरोना काल के दौरान आप अपनी कलम को धार देती रहीं, फिर तो जो अनवरत इनकी क़लम चलती रही वो आज तक जारी है । कल एक कार्यक्रम सत्या होप टाक(काशी meet बनारसिया)के दौरान आपका एक काव्य संग्रह मुझे प्राप्त हुआ । "वीरानों का बागवां" नामक काव्य संग्रह आपने अपने पिता को सप्रेम समर्पित किया है । ऐसे तो आपके कई सांझा संकलन और कविताएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती है । आपकी एकल प्रकाशित पुस्तक में - गीत वीथिका,सजल हुं और ग़ज़ल भी मुख्य है । इस काव्य की धारा "वीरानों के बागवां " में हमें मां शारदे को समर्पित वंदना और भगवान कृष्ण को समर्पित कुछ रचनाएं बहुत उत्कृष्ट लगी ।प्रेम को ध्यान में रखकर गीत , मुक्तक और सामाजिक परिदृश्य पर लिखीं कविताएं आपके लेखन की विशिष्टता को दर्शाती हैं। पढ़कर लगता है मानो रचनाओं की छोटी छोटी दरिया बह रहीं हैं ।" वीरानों के बागवां"की कुछ रचनाएं जैसे -मुश्किल, ब्राह्मण, अपनी खोल में गुम मानव, प्रेमचंद,सजन,गवाज, नटखट नंदलाल और धोखा जैसी अनेक रचनाओं का संग्रह है,जो की कवित्री के मन के उत्कृष्ट लेखन और मन के भाव को दर्शाता है।
उक्त काव्य संग्रह की एक रचना जिसकी कुछ पंक्तियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया।
,"कम आंक न शून्यन मोल यहां,सून शून्य महामहिमा से भरा"
इन्ही पंक्तियों के साथ आदरणीया को बहुत बहुत शुभकामनाएं देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना करतीं हुं
रंजना पांडेय मुक्ता, मिर्जापुर
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संपादकीय/ पुस्तक समीक्षा