पंक्षी जैसा जीना सीखो
(कविता )
पंक्षी जैसा जीना सीखो,
भोर हुआ ,जग जाओ ।
स्वास्थ्य चाहते ठीक यदि ,
तो,रात में कुछ ना खाओ।।
पंक्षी थोड़ा,ही खाते हैं,
अधिक कभी,न खाते।
पेट भरा तो,दाना पानी,
तुरत छोड़ उड़ जाते।।
सदा रात में,चैन से सोते,
इधर उधर ना जाते ।
दिवस सबेरे श्रम करते,
हैं,कभी नहीं घबराते।।
जल्दी सोना,जल्दी उठना,
गुण को,वही सिखाते।
भूख लगे,तब खाना खाओं,
जीने का, सूत्र बताते ।।
खाना पीना छोड़ ही देते,
जब होते,पंक्षी बीमार ।
हम भी अपनी,शैली बदले
सुखी रहे पूरा परिवार।।
तरह तरह के भोजन से,
ही बढ़तें हैं,अनेकों रोग ।
पक्षी केवल एक आहार से,
जीवन में ,रहते निरोग।।
प्यार से बच्चों को भी,पाले,
सीख भी देतें हैं,भरपूर ।
सुबह चहकते,ही उठते हैं,
दिन भर श्रम,करते जरूर ।।
चाह यदि,लम्बे जीवन की,
भूख लगे,तब खाना।
नियम बनाओ,ऐसा मित्रों,
ठीक समय पर खाना ।।
भोजन नपा तुला करने की,
पंक्षी देते हैं,यह सीख ।
इतना प्रकृति ने बख्शा हमको,
कभी न माँगेंगे,हम भीख ।।
बना संगठन,मजबूती से,
साइबेरिया तक जाते हैं।
अंग्रेजी के,वी-आकर में,
उड़ कर,ऊर्जा पाते हैं ।।
सतत परिश्रम,राह बनाये,
संयम को अपनाओ ।
पंक्षी सम यदि,उड़ना चाहो,
धैर्यवान बन जाओ ।।
रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर - वाराणसी- 05
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