हाँ ! मैं स्त्री हूँ

हाँ  !  मैं स्त्री हूँ 
          (फोटो साभार गूगल)

कमजोर नहीं आजकल हम स्त्रियाँ , 
लगभग हर क्षेत्र में आती प्रथम हैं। 
साहस, ज्ञान , धैर्य  की प्रतीक हम, 
अबला नहीं  सबला, सक्षम हैं। 

अवसर मिले हमें समाज में बराबरी का, 
सुखद परिणाम हर हाल में मिलेगा। 
निर्णयों में आजादी भरपूर मिल पाए तो, 
मुखड़ा हमारा प्रसन्नता से क्यों नहीं खिलेगा? 

ज्ञान का प्रत्येक क्षेत्र अब कहाँ अगम्य हमें, 
शासक, प्रशासक, निर्देशक , अधिकारी हैं। 
उच्च पदों पर आसीन , सफलता की स्तंभ हम, 
भाईयों की प्यारी , मातु -पिता की दुलारी हैं। 

हर रूप में कर्तव्यनिष्ठ हम सब, 
हमें अपना सम्मान मिलना चाहिए। 
पूर्व में पूजित रही हूँ, आज भी हूँ,
नहीं कभी भी, अपमान मिलना चाहिए। 

कवि- चंद्रकांत पांडेय, 
मुंबई / महाराष्ट्र 

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