पर्यावरण स्वच्छता
(कविता)
पंच महाभूतों से निर्मित, जीव जन्तुओं का संसार।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार ।।
हरे भरे वृक्षों को हमने, काटें और बनाई सड़कें।
जलवायु परिवर्तन से, मौसम से, अब सब भड़कें।।
रोग रहित, सुखमय जीवन अब, कैसे हो साकार
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार ।।
विनिर्माण मोटर गाड़ी का, रुक जाए न हो प्रयोग।
ईश्वर ने दो पैर दिए हैं, इनका करो खूब उपयोग ।।
हम विनाश की ओर अग्रसर, आज प्रगति का सार
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार ।।
जल जब शुद्ध नहीं होगा तो, फैलेगी बीमारी ।
कुसमय में ही मर जायेंगी, पीढ़ी अपनी सारी।।
स्वच्छ हवा अब न नसीब में, लोगों की भरमार।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार ।।
मिट्टी हुई बीमार आज, बस खूब रसायन डालें।
कैसे स्वास्थ्य सुरक्षित होगा, पड़ता नहीं है पाले।।
कीट रसायन, पेस्टीसाइड का, बहुविध हो अवतार ।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार।।
आज सभी बाज़ार को जाते, लेकर ख़ाली हाथ।
सिंगल यूज प्लास्टिक लाते, सामानों के साथ।।
कंकरीट के जंगल अब तो, मिट्टी के सेहत पर भार।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार।।
पेप्सी कोला फ़ास्ट फ़ूड पर, पलता शहरी जीवन।
सेहत इससे बिगड़ रहा है, स्वस्थ्य बचे न तन मन ।।
फ़ास्ट फ़ूड से तौबा कर, इसको कहते विष अवतार।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार।।
विविध रसायन, धूल, शोर व विकिरण बने प्रदूषक।
प्राण दायिनी हवा हुई अब, कुसमय मृत्यु की सूचक।।
पापाचार व अनाचार से, दूषित आज जगत व्यवहार।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार ।।
पर्यावरण है,परि आवरण, इसको कहते पर्यावास ।
जीव,वायु,जल, स्थलमंडल, जो परिवेश हमारे पास।।
धरती पर,चहुँदिश फैला, जैव विविधता का आगार।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार ।।
वृक्षारोपण, जल संचयन, कचरे का, हम करें प्रबंधन ।
पटाखों से मुक्त दिवाली, घरपरिवार करे अब मंथन ।।
माँ पृथ्वी के जीवों खातिर, त्यागे सब जन मांसाहार ।
पर्यावरण स्वच्छता ही है, जीवन जीने का आधार ।।
रचनाकार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर वाराणसी