महिलाओं के सशक्तिकरण में सावित्रीबाई फुले का महत्वपूर्ण योगदान रहा है : डॉ. गीता देवी हिमधर

महिलाओं के सशक्तिकरण में सावित्रीबाई फुले का महत्वपूर्ण योगदान रहा है : डॉ. गीता देवी हिमधर
महिलाओं के सशक्तिकरण में सावित्रीबाई फुले का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सावित्रीबाई फुले समाज सेविका, समाज सुधारक, कवियत्री एवं कुशल अध्यापिका थीं।सावित्रीबाई फुले का महिलाओं हेतु विद्यालय खोलने का उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार, आत्मनिर्भर बनाना एवं समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाना था।
      भारत की प्रथम शिक्षिका माता सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम खनदोजी  और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्रीबाई का विवाह 9वर्ष की उम्र में पुणे के रहने वाले समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के साथ हुआ था। विवाह के बाद अपने पति के सहयोग से सावित्रीबाई फुले ने पढ़ना लिखना सीखा और अंततः दोनों ने मिलकर वर्ष 1848 में पुणे में भिड़ेवाडा नामक स्थान पर लड़कियों के लिए भारत का पहला विद्यालय खोला। उन्होंने मजदूरों के लिए रात्रि कालीन स्कूल खोला था। महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 1852 में "महिला सेवा मंडल" खोला था। उन्होंने देश के पहले किसान स्कूल की भी स्थापना की थी। वर्ष 1852 में उन्होंने दलित बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने कन्या शिशु हत्या को रोकने के लिए प्रभावी पहल की थी, इसके लिए उन्होंने न सिर्फ अभियान चलाया बल्कि नवजात कन्या शिशुओं के लिए आश्रम भी खोले ताकि उनकी रक्षा की जा सके।
आज देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले की जयंती है। जिन्होंने पहले खुद अपने पति ज्योतिबा फुले से पढ़ाई की उसके बाद दूसरी लड़कियों को पढाने के लिए स्कूल खोलकर पढाने लगी।क्रांति ज्योति सावित्री फुले के बिना देश की शिक्षा और सामाजिक उत्थान के बाद अधूरी है।
      क्रांति ज्योति सावित्री बाई फुले जब बालिकाओं को पढाने के लिए विद्यालय जाती थीं, तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर आदि फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी और विद्यालय पहुंच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थी। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए काम किया। सावित्रीबाई फुले ने सती प्रथा, छुआछूत बाल विवाह जैसी कुरीतियों का विरोध किया। वह एक कवियत्री भी थी। उन्होंने "काव्य फूले" और "बावनकशी सुबोध रत्नाकर" काव्य संग्रह लिखे। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। उनकी कविताएं भले ही मराठी में लिखी गई थी, किंतु उन्होंने मानवतावाद स्वतंत्रता समानता भाईचारा तर्कवाद और दूसरों के बीच शिक्षा के महत्व जैसे मूल्यों की पूरे देश में वकालत की। उनके द्वारा स्थापित संस्था सत्यशोधक समाज ने वर्ष 1876 और वर्ष 1879 के
अकाल में अन्न सत्र चलाया, और अन्न इकट्ठा करके आश्रम में रहने वाले 2000 से अधिक बच्चों को खाना खिलाने की व्यवस्था की।
       क्रांति ज्योति सावित्री फुले का विचार था कि - 
   *एक सशक्त और शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है। इसलिए तुम्हारा भी शिक्षा का अधिकार होना चाहिए।  
    *कब तक तुम गुलामी की बेड़ीयो में जकड़ी रहोगी उठो और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करो।
     *स्त्रियां केवल घर और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनी है, वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती हैं।
     *जाओ जाकर पढ़ो लिखो बनो आत्मनिर्भर बनो मेहनती बनो।
   *काम करो और ज्ञान इकट्ठा करो, ज्ञान के बिना सब खो जाता है। इसलिए खाली न बैठो और जाकर शिक्षा लो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है इसलिए सीखो और जाति के बंधन को तोड़ो।
    *कोई तुम्हें कमजोर समझे इससे पहले तुम्हें शिक्षा के स्तर को समझना होगा।
     आज भी सावित्रीबाई फुले सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने दलित वंचितों के लिए अपने घर का कुआं खोल दिया था। सावित्रीबाई फुले को भारत के नारीवादी आंदोलन की अग्रणी माना जाता है। उन्होंने जाति और लिंग के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव और अनुचित व्यवहार को खत्म करने का प्रयास किया।
   क्षेत्र में फैले प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीजों की सेवा करती थी। उन्हें चिकित्सालय पहुंचती थी। प्लेग प्रभावित बच्चों को उन्होंने अपने पीठ पर उठा कर चिकित्सालय पहुंचाती और सेवा करती। जिससे इनको भी बीमारी लग गया, और इसी कारण 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हुई।
     नमन करें हम सावित्रीबाई फुले को,
 जिसने नारी शिक्षा की अलख जगाई।
 अज्ञानता का अंधकार दूर कर,
 उसने ज्ञान की ज्योति जलाई।

      डॉ. गीता देवी हिमधर 
   राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता (संस्कृत )
शा. उ. मा. वि. फरसवानी

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