देव तुल्य हैं पिता हमारे
दुःख सहकर सुख तुमनें बाँटा।
पग में चाहे चुभा हो काँटा।
इतना कोई कर क्या पाता,
प्यार समर्थन रोज़ दिखाता।
बच्चों के जीवन खातिर तुम,
कष्ट सहे हैं सारे।
देव तुल्य हैं पिता हमारे ।।
ग़लत राह पर कोई जाए।
अनुशासन से डाट पिलाए।
प्रेम की मूरत भले हो माँयें।
सच्ची राह तुम्ही दिखलाए।।
जीवन चलता सभी गृहों में,
तेरे आज सहारे
देव तुल्य हैं पिता हमारे ।।
बच्चों के सपनों की आशा।
जीवन की बन ख़ुद परिभाषा।
पूरी किया सभी अभिलाषा,
मन से देकर दीली दिलाशा।
तेरा साया जब हटता है,
बच्चे फिरते मारे मारे
देव तुल्य हैं पिता हमारे।।
घर सचमुच है ख़्वाब तुम्हारा।
आँगन गृह का महके सारा।
सीख प्रशिक्षण चलता न्यारा।
कुनबे का बस तुम्हीं सहारा।
घर के तुम प्रकाश पुंज हो,
सब सुख के उजियारे
देव तुल्य हैं पिता हमारे।।
पढ़ने को तुमने है डाटा ।
अच्छी बात तुम्हें है भाता ।
सपने पूरे होकर आता ।
तोड़ दिया जब तुमने नाता ।।
स्वर्ग मिले तेरी सेवा पर,
बनकर रहें दुलारे
देव तुल्य हैं पिता हमारे ।।
अब तो तेरी ढली उमर है।
चिंताओं से झुकी कमर है।
यौवन ने भी नाता तोड़ा,
दृश्य रोशनी,साथ है छोड़ा ।
वृद्धा आश्रम में कुछ भेजें,
पढ़े लिखे हत्यारे
देव तुल्य हैं पिता हमारे ।।
रचनाकार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर वाराणसी
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