मुस्कान ( कविता)
मुस्कान मानव को उपहार ,
कुदरत ने दिया सुहाना ।
यही मधुरिम मुस्कान ही तो ,
कर लेती सबको दीवाना ।
बच्चे की सुंदर मुस्कान ,
सारी पीड़ा झट हर लेती ।
रूपसी की एक ही मुस्कान ,
प्रेम की पूरी कथा कह देती ।
काश मुश्किलें भी देखकर ,
फूलों जैसे हम मुसकाते ।
कांटों से घिर कर भी ,
नहीं जरा सा भी घबराते ।
हवा के तेज थपेड़े हों ,
पुष्प जरा भी ना डर जाएं ।
सूर्य की तेज धूप में भी ,
हंसे और खूब मुसकाएं ।
जहाँ भी उनके कदम पड़ें ,
सुंदर खुशबू बिछ जाती ।
सौंदर्य उनकी देख - देख ,
दृष्टि उधर ही खिंच जाती ।
नहीं किसी से बैर भाव ,
फूलों को रखते देखा ।
हर मौसम में एक सरीखा ,
सदा उन्हें मुस्काते देखा ।
कवि चंद्रकांत पांडेय,
मुंबई ( महाराष्ट्र )
.
Tags:
संपादकीय/ कविता/ मुस्कान