पंचोपचार विधि से भगवान विश्वकर्मा की पूजा कैसे करें? डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा

पंचोपचार विधि से भगवान विश्वकर्मा की पूजा कैसे करें?     डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा 
धार्मिक कृत्यों को सम्पादित करने की एक विशिष्ट विधि होती है,जिसे पूजा कहते हैं।समय और परिस्थितियों के अनुसार पूजा की छोटी विधि एवं बड़ी विधियों का प्रविधान किया गया है।छोटी विधि में पंचोपचार विधि और बड़ी विधि में दशोपचार, षोडशोपचार, द्वात्रिनशोपचार,चतुषष्टिपचार,एकोद्वात्रिनशोपचार,मानसोपचार आदि विधियों का वर्णन किया गया है।इसमें सरल सुगम एवं प्रचलित विधियों में पंचोपचार व षोडशोपचार विधि ही मानी जाती है।
पंचोपचार पूजा विधि में गंध, पुष्प, धूप,दीप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है।इन पाँच कर्तव्यों को करने से ही इसे पंचोपचार पूजा विधि कहते हैं।
अब आइये ! भगवान विश्वकर्मा की पंचोपचार विधि से पूजा के विधान पर चर्चा करें।मेरे कुल के भ्राता श्री व बहनों मैं आप सबको बताना चाहता हूँ कि सभी देवताओं के नाम को धारण करने वाले परम पुरुष आदि ब्रह्म,विश्व ब्रह्माण्ड के वास्तुकार,एक मात्र सर्वोच्च शक्ति,महादेव,भगवान विश्वकर्मा ही हैं,जिन्हें सभी वेदों ने स्वीकार किया है।
देवीभागवत में वर्णित है कि कल्प वृक्ष के समान सभी की इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए ब्रह्मा ने महामती श्री विश्वकर्मा भगवान की आराधना की है।संसार में जो अमूर्त रचनात्मक सृजन शक्ति है वही भगवान विश्वकर्मा की शक्ति है इसीलिए भगवान विश्वकर्मा को “परमात्मा परात्पर:”कहा गया है।
भगवान विश्वकर्मा की पंचोपचार पूजा करने से पहले उनको भाव पूर्ण ढंग से उनका आवाहन कीजिए और संभव हो तो इस मंत्र को बोले- 
आगच्छ भगवान विश्वकर्मा,स्थाने चारुस्थिरो भव।
यावत्वम् पूजा करिष्यामि तावत्वम् सन्निधौ भव ।।
कामना करें कि हे प्रभो आप अपने परिवार सहित आयुधों के साथ शक्ति सहित मेरी पूजा में उपस्थित रहें।
दूसरी प्रक्रिया उन्हें आसन देने की सम्पादित की जाती है,जिसमें भगवान को आसन दिया जाता है।यदि धातु की मूर्ति हो तो उसे साफ़ सुथरे आसन पर विराजमान करें।यदि फोटो है तो भी आसन पर रख कर स्नान कराने का विधान करें।धातु की मूर्ति को गंगा जल या शुद्ध जल से स्नान करावें।स्नान उष्णोदक अच्छा माना गया है।यदि फोटो है तो आप पुष्प या कुश दूर्वा अथवा आम्र पल्लव को जल से अभिसिंचित कर केवल हल्का सा जल छिड़क दें और मन में भाव रखें कि आप प्रभु को स्नान करा रहे हैं ।
स्नान कराने के पश्चात पूजा की सभी सामग्रियों पर और अपने ऊपर भी निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए जल छिड़कें 
ॐ अपवित्रो पवित्रो वा सर्वावस्था गतोऽपि वा।
य: स्मरेत पुंडरीकाक्षम स बाह्याभ्यंतर: शुचि ।।
अब पंचोपचार का कर्तव्य शुरू करें।
१  गंध-गंध में चंदन केशर रोचन आदि अष्ट गंध में जो भी उपलब्ध हो को अनामिका अंगुलि से भगवान विश्वकर्मा को लगायें।इसके बाद रोली व अक्षत लगायें।
२  पुष्प-पुष्प चढ़ाते समय ध्यान रखें कि पुष्प मस्तक पर न चढ़ाये पुष्प हमेशा चरणों में अर्पित किया जाता है।यदि माला हो तो माला चढ़ा दें।
पुष्प व माला चढ़ाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें 
विश्वकर्मन नमस्तुभ्यम् जगद्राक्षापरायण।
प्रकृति पुं स्वरूपाय,सर्व प्रकृति मुर्तये ।।
३  धूप-भगवान विश्वकर्मा को धूप निवेदित करें कदापि अगरबत्ती न दिखायें क्योंकि शास्त्रों में बास जलाना अशुभ माना जाता है।धूप दिखाते समय निम्न मंत्र बोलें 
अमंगल विनाशाय,सर्व मंगल दायिने 
सर्व लोक विनिर्मात्रे साक्षिणे जगतां नमः।।
४  दीप-भूव:स्व: कहते हुए दीपक जलायें और निम्न मंत्र को कहें।
शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्यं सुख सम्पदाम।
शत्रु बुद्धि विनाशाय,दीप ज्योतये नमस्तुते ।।
५  नैवेद्य-मिश्री इलायची दाना लड्डू पेड़ा इत्यादि नैवेद्य में होता है जिसमें कम से कम एक मीठा अवश्य होना चाहिए।नैवेद्य चढ़ाने से पहले उसे ढक कर रखना चाहिए और जल लेकर दाहिने से शुरू करते हुए एक मंडल बनाकर छिड़क देना चाहिए,पुनः इसे भगवान विश्वकर्मा जी को अर्पित करें।और साथ ही निम्न मंत्र का उच्चारण करें ।
त्वदियम वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पयेत।
गृहाण सन्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वरम् ।।
अब अंत में,भगवान विश्वकर्मा की आरती कपूर से करें क्योंकि कपूर में सात्विकता होती है।बिना आरती के पूजा अधूरी रहती है।
यद्यपि आरती पंचोपचार विधि में नहीं आती;फिर भी अगर आरती भी कर लें तो सोने पर सुहागा हो जाएगा।आरती की थाल तीन बार दाहिने से धूमाये और बायें हाथ से घंटी बजाना चाहिए।आरती भगवान के हर अंगों प्रत्यंगों की,की जाती है।
सबसे अंत में प्रभु से ज्ञात अज्ञात त्रुटियों व चूक हेतु क्षमा प्रार्थना निम्न मंत्र बोलते हुए भगवान विश्वकर्मा परम ब्रह्म से करें।
आवाहनम् न जानामि,न जानामि विसर्जनम्।
पूजाम चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरम् ।।
क्षमा माँगने के बाद भगवान विश्वकर्मा से कामना करें कि हे प्रभो आप मेरे अन्तःकरण में विराजमान होकर मेरे सभी कष्टों,दुर्गुणों,दुर्व्यसनों को दूर करें साथ ही मेरे सभी मनोरथों को पूर्ण कर मुझे सन्मार्ग पर ले चलें।

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