विश्वकृत तुम हो उपकारी
( कविता)
विश्वकृत तुम,जग सुखकारी।
सुन लो अब,प्रार्थना हमारी ।।
दो संज्ञान,भटकते कुल को
नाव पड़ी,मजधार हमारी ।।
पढ़े लिखे जो,अपने कुल के
दो सदबुद्धि,हो कृपा तुम्हारी।।
तेरी कृपा से,जग उजियारा ।
क्यों इनकी,अभी मति मारी।।
वेद पुराण शास्त्र,सब गायें ।
महिमा सकल,विवेक विचारी।।
नाना पंथ,सम्प्रदाय अवलम्बी ।
शरण अंत में गए तिहारी ।।
सब देवों को,शस्त्र-पूरी दे।
रक्षा की,कृतज्ञता तुम्हारी।।
देवों में तुम महादेव हो ।
जो समझे ना,वही अनाड़ी।।
सबको तुमने दिया ज्ञान है।
अभियांत्रिकी,तकनीक तुम्हारी।।
तुम हो वास्तुकार,इस जग के।
महिमा जग में विदित तुम्हारी।।
हम अवगुणी,अल्प बुद्धि के।
सुन लो प्रभु तुम,हो अवतारी।।
रचनाकार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर- वाराणसी
Tags:
संपादकीय/ कविता