चश्मा है तो, जीवंत ज़िंदगी बर्ना....... : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा

चश्मा है तो, जीवंत ज़िंदगी बर्ना....... : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा
मित्रों! कहते हैं कि आँखें हैं तो जहान है, परन्तु मैं तो कहता हूँ यदि चश्मा ही नहीं तो दुनिया ही, बेजान है। जरा सोंचें ! यदि चश्मा ही नहीं, तो दिखेगा क्या? इसलिए लाठी से चश्मे का स्थान सर्वोपरि है। भैया! सचमुच इस अवस्था में बिना चश्मा के तो जीवन ही मृतप्राय है। कहते भी हैं कि यदि वृद्धावस्था में आँख व ठेहुन ठीक से काम करे तो जीवन, अंतिम समय में भी ठीक से गुजर ही जाता है। पहले तो भाई साहब चश्मे   वृद्ध जनों की आँखों की शोभा बढ़ाते थे, आज तो नन्हें मुन्ने बच्चों, बालक युवा अधेड़ जवान बड़े बूढ़ों किसको नहीं, अपने आग़ोश में ले रखा है, हे भगवान! हम सब आज किस काल खण्ड में किस प्रदूषित माहौल में रह रहें हैं, जिसे देखिए उनकी ही दृष्टि दोष, जिधर देखिए उधर इसकी माया,पूरे जहां में दिखे इसकी साया। ख़ैर,,,,,अब किया भी क्या जा सकता है। जीवन है तो दृष्टि दोष को, तो काफ़ूर करने का उपक्रम तो करना ही पड़ेगा?
साथियों! बड़ी विचित्र है  चश्मों की दुनिया मेरा भी पाला इससे रिटायरमेंट के बाद पड़ ही गया, जैसे सर के बाल कम होना शुरू हुए, वैसे ही आँखों की रोशनी भी,,,,,,। एक दिन वैसे ही मैं अपने परिवार के साथ अपने विज़न (दृष्टि) पर चर्चा परिचर्चा  कर ही रहा था, कि मेरे बड़े सुपुत्र ने कहा कि अब पापा आप को, आधुनिक चश्मा बनवाना पड़ेगा। कल चलिए,आप को टाइटन घड़ी चश्मा स्टोर की एक हैदराबाद की प्रसिद्ध दुकान लिए चलते हैं और एक मॉडर्न चश्मा आप को नसीब कराते है। पहले तो मैंने, नाक नुक किया , परन्तु पुत्र के विशेषानुरोध पर स्टोर  जाने को तैयार हो ही गया। जनाब आप विश्वास नहीं करेंगे हम अपने पूरे कुनबे के साथ स्विफ्ट कार से बाइज्जत टाइटन घड़ी/चश्मा दुकान पर तशरीफ़ ला ही दिये। स्टोर मलिक का चाकर शीशे का दरवाज़ा खोला ही था कि हम परिवारी जन दुकान के अन्दर घुस ही गए।घुसते ही स्टोर के केयर टेकर ने सवाल दागा,सर आपको कौन सी घड़ी चाहिये।मैंने झुझुलाते हुए कहा अरे! मोबाइल के इस अत्याधुनिक युग में अब घड़ी कौन पहनता है ?बरखुर्दार।घड़ी नहीं ,चश्मा दिखाइए जनाब!
बड़े प्रेम से उसने चश्मों के रेंज का दीदार अपने स्टोर में घुमाकर घुमाकर कराया और एक एक कर हमलोगों को पूरी बात समझाया। कहा श्रीमान!आप प्रगतिशील लेंस के चश्में बनवाइये।आइये! पहले अपने विज़न का मेरे लैब में टेस्ट कराइए।चश्मा यदि ठीक चाहिये तो दृष्टि परीक्षण ज़रूरी बला है।जिसे सभी कराते ही हैं, तो भला हम किस खेत की मूली हैं।
परीक्षण कक्ष में मैं पहुँच कर आराम से बैठ गया,चश्मे का अनुभवी टेक्निशियन मेरे मलिन होती आँख की रोशनी का पॉइंट्स कई लेंस मेरे आँखों पर विशेष फ्रेम में लगा लगा कर चेक करने लगा हर लेन्स के बाद पूछता,,,,,, अब पहले से ठीक दिख रहा या पहले वाले से स्पष्ट दिख रहा था,वह बार बार यही प्रक्रिया कई बार दुहराकर मुझे एक स्क्रीन पर लगे सभी अक्षरों को पढ़ने को कहा। मैंने उन अक्षरों को सही तरीक़े से पढ़ दिया।सघन जँचोपरांत उसने मेरे आँख का विज़न पॉइंट्स 6/6 की दृष्टि माप बताया।मैंने टेक्निशियन से थोड़ा विस्तार से समझाने को कहा,,,,,, तो उसने कहा श्रीमान आप 6 मीटर की दूरी से वही देख सकते है जो एक औसत व्यक्ति भी उसी दूरी से देखता है।आप को जीरो पॉवर का ही चश्मा उचित होगा।
अब हम सभी परीक्षण कक्ष से बाहर चश्मे के स्टोर तक आ गये,स्टोर केयर टेकर ने अब हम सभी को अनेकानेक वैरायटी के चश्मों का दर्शन कराना शुरू किया। उसने सर्वप्रथम चश्मों के फ्रेम के सन्दर्भ में बताया समझाया कि फ्रेम आज कल तीन तरह के बने आते हैं एक तो एसिटेट के, दूसरा टाइटैनियम के और तीसरा स्टेनलेस स्टील के और रंगों की बात की जाये तो फ्रेम ब्लैक, सिल्वर, मैजेंटा, पिंक, रोजब्राउन अथवा जेड कलर के  हमारे यहाँ बहुतायद उपलब्ध है।चेहरे के बनावट व नाक की साइज के अनुसार भी वायरफ़्रेम,रिमलेस फ्रेम,लो ब्रिज फिट फ्रेम,फ़ुल रीम्ड फ्रेम,सेमी रिमलेस फ्रेम भी मेरी दुकान पर मिल जायेंगे,यह सुनकर, सभी की निगाहें अब खूबसूरत फ्रेम की तलाश आरम्भ कर चुकी थी, कि एक ब्लैक रंग फ्रेम का चश्मा पसन्द की परिधि में आ ही गया और इस प्रकार रंग की कहानी समाप्त हो गई।
विज़न पॉइंट,फ्रेम के पश्चात् अब हम लोगो का अभियान लेन्स के बाबत जानकारी जुटाने की तरफ़ आकर्षित हुई।
स्टोर के केयर टेकर से जिज्ञासा प्रकट करने पर उसने चश्मों के लेन्स की कहानी कहते हुए हम परिवारी जन को लेन्स की दुनिया में ले जाते हुए कहने लगा कि आज कल आधुनिक युग में विभिन्न प्रकार के लेन्स युक्त चश्मे हमारे स्टोर पर मिल जायेगें जैसे प्रगतिशील लेन्स वाला चश्मा निकट दूर और मध्यवर्ती दृष्टि सुधार के लिए,टोरिक लेन्स वाला, दृष्टि वैषम्य में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।प्रिज्म लेन्स के चश्मों से दोहरी दृष्टि को ठीक करने के लिए बनाया गया है, जिसे डिप्लोपिया भी पुकारते हैं।बाइफ़ोकल लेन्स के चश्मों में दो नुस्ख़े या आवर्धन होते हैं, इससे अलग अलग दूरी पर स्पष्ट देखने के लिए चश्मा बदलने की ज़रूरत नहीं होती।फिर आगे बढ़ते हुए स्टोर केयर टेकर द्वारा सिंगल विज़न लेन्स के चश्मे की ख़ासियत बताते हुए हम सबको समझाया ,कि सिंगल लेन्स वाले चश्मे मल्टीफ़ोकल व बाइफ़ोकल लेन्स वाले चश्मों से सस्ते होते हैं और आसानी से हर जगह उपलब्ध हो जाते हैं।अब तो ट्राइफ़ोकल लेन्स के भी चश्मे भी बहुतायद बाज़ार में मिलते हैं ,जो उन लोगों की दृष्टि सुधार करते हैं जिन्हें निकट दूर और मध्यवर्ती दूरी पर देखने में परेशानी होती है।
हमारे सुपुत्र ने ब्लैक कलर वाला प्रोग्रेसिव लेन्स वाला चश्मे पर मुझसे हामी भरवाकर बिल वाले काउंटर पर भुगतान हेतु
पहुँच गये,अपने क्रेडिट कार्ड से 12750/- का भुगतान कर भी दिया।पास खड़ी मेरी पत्नी ने पूछ ही दिया इस चश्मे पर कितने साल की गारण्टी है?
स्टोर केयर टेकर ने कहा मैडम! फ़ैशन के इस जमाने में गारण्टी की बात बेमानी है,फिर भी हम 02 वर्ष की गारण्टी सिर्फ़ लेन्स पर देते है।
आँख की दृष्टि बढ़ाने वाले खूबसूरत उपकरण यानि चश्मे के साथ हम सभी अपने आवासित रूम पर आ ही गए। चश्मा ख़रीद कर हम लोगों को तीर्थ यात्रा समाप्ति जैसी आनंदानुभूति हुई।कुछ माह हैदराबाद में रहने के पश्चात अपने राम सपरिवार काशी की पावन धरा पर हवाई यात्रा कर पहुँच आये।अब हर रोज़ वही चश्मा लगाकर,पार्क में सुबह टहलने, प्राणायाम करने, निकल जाया करते।साथियों मित्रों को अपने खूबसूरत
चश्मे का हुलिया बताते नहीं अघाते।परन्तु  ना जाने किसकी बुरी नज़र लगी कि एक दिन मेरे प्यारे चश्मे से मेरा सम्बन्ध टूट गया, हुआ यह कि एक दिवस मैं पार्क के चबूतरे से प्राणायाम कर बिना चश्मा लिए सीधे घर आ धमका।स्नान ध्यान से निवृत होने के पश्चात, जब चश्मा खोजने लगा तो चश्मा घर में नदारद।अब मैं तुरन्त हैरान परेशान सर के बग़ल दौड़ते हुए पार्क आया,वहाँ उपस्थित महानुभावों से चर्चा कि आप सभी ने मेरे प्रिय चश्मे को देखा? किसी ने कुछ नहीं बताया। मैं हार मानकर, हैरान परेशान अपने आशियाने पर आया ही था कि पत्नी ने ताबड़तोड़ कई प्रश्न दागते हुए कहा, कहाँ गए थे,जब चश्मे की गुमशुदगी की बात प्रकाश में आयी तो,पत्नी व छोटे बेटे ने कहना शुरू किया पापा जब आप अपने चश्मे की सुरक्षा नहीं कर सकते तो आगे क्या?
घर का ख़ुशनुमा वातावरण एकाएक मौसम की तरह बदल गया और चश्मे का खोना मेरे परिवार में अंधड़ बवंडर ला डाला।
ख़ैर! ऊपर वाले की रहमत से कुछ दिवस पश्चात चश्मे के गुम होने का दर्द समाप्त हुआ,तो मैंने भी अपनी  इच्छा
शक्ति का आह्वान करते हुए अपने चश्मे को ढूढ़ निकालने
का व्रत मानो ले लिया।
अब मैं दूसरे दिन पार्क के अपने सभी साथियों को अपने प्यारे चश्मे की गुमशुदगी की दुखद सूचना प्रसारित करने लगा,आस पास के दुकानदारों तक को मेरे गुम हुए क़ीमती चश्मे की सूचना पहुँच गई, परन्तु मेरा अजिज़ चश्मा नहीं मिला।
समय चक्र यूँ ही चलता रहा,पार्क में हर रोज़ कोई न कोई साथी संगाति मेरे खोये चश्मे का ज़िक्र कर ही देता, लेकिन व्यापक पैमाने पर पूछा पूछी के बावजूद प्यारा चश्मा हाथ न लगा।
एक दिवस मौर्या जी जो पार्क में मेरे से लगभग 05 मीटर की दूरी पर बेल वृक्ष के नीचे, व्यायाम करने आया करते थे ,के कान तक मेरे चश्मे की बात पहुँची ही थी कि उन्होंने तपाक से कहा अरे! एक अच्छा चश्मा कुछ माह पहले मुझे पार्क से ही दो बच्चों की छीना झपटी के कारण हाथ लग गया ।दरअसल वे बच्चे मौर्या जी से बताये कि अंकल, किसी का चश्मा यही पड़ा था। 
वही हम दोनों एक दूसरे से छीन रहे हैं । मौर्या जी ने समझदारी दिखाते हुए, चश्मा अपने घर ले जाकर रख दिये ,और वे बीमार हो गये,, जब ठीक हुए तो बच्चों के यहाँ फिर दिल्ली चले गए।
लगभग चार माह के उपरांत जब वे पुनः पार्क में आने लगे, तो चश्मे की बात सुनकर वे मुझसे कहे भाई साहब आप का खोया चश्मा मेरे पास है।
दूसरे दिन जब मेरा चश्मा मुझे वापस मिला तो मानो मेरे सुख की मुरझायी लता फिर से पनप गई।वही चश्मा मेरे
मुखमण्डल में हर रोज़ चार चाँद लगाने लगा है।

लेखक: कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित वरिष्ठ साहित्यकार है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने