माँ मुझे विश्राम दें
मैं अज्ञानी, मूर्ख, नादान,
अपने चरणों में स्थान दें।
थक गया इस स्वार्थी जहां में,
माँ मुझे विश्राम दें।
घना अंधेरा जीवन में छाया,
सूझे नहीं मुझे कोई राह।
कैसे और किस प्रकार बचूँ मैं,
शरण तेरी मिले ,बस यही चाह।
आशीष प्रदान करके हे माता,
सुख, शांति मुझे अविराम दें।
माँ मुझे विश्राम दें।
भक्ति में गुजरे जीवन मेरा,
यही स्वप्न साकार करो माँ।
बहुत कष्ट पाए हैं अब तक,
इस पापी का उद्धार करो माँ।
ममता की साक्षात देवी तू,
माँ वात्सल्य मुझे तमाम दें।
माँ मुझे विश्राम दें।
कवि- चंद्रकांत पांडेय,
मुंबई / महाराष्ट्र,
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संपादकीय/ बसंत पंचमी