प्रत्येक कार्य मे धर्म क्यों आता है? लोग समझते क्यो नही? आओ मिलकर विचार करें।
प्रभु चरणानुरागियो।।
संतो का कथन है कि,
धर्म हमारे अंदर भाव पैदा करता है और भाव से ही शुद्ध एवं निर्मल भक्ति का प्रादुर्भाव होता है। इस अटूट विश्वास के साधनापूर्ण अवस्था मे पहुचने पर भगवान का दिव्य दर्शन होता है।
इसलिए छोटा से बड़ा बनने के लिए भारत जैसे देश मे ईश्वर या धर्म का सहारा लिया जाता है।
ईश्वर वह चेतनमय महाशक्ति है जो धर्म का मूल आधार है। उस महाशक्ति के आलोक मे हर कोई चमकना चाहता है,ब्रम्हांड के सूक्ष्मतम तत्वो से विशाल तत्वो तक को समझना चाहता है।
प्रत्येक व्यक्ति सामान्य जीवन से उठकर श्रेष्ठ जीवन जीना चाहता है।उक्त आस्था विश्वास के कारण धर्म की अनिवार्यता सिद्ध हो जाती है।
धर्म के मूल तत्व है,जो शुभता के प्रतीक है।
जैसे- पूजा- पाठ, सत्संग - कथा, प्रवचन, भजन, संकीर्तन, धार्मिक मेला आदि है।
परिणामस्वरूप प्रत्येक मानव को अपने जीवन मे परोक्ष या अपरोक्ष रूप से धर्म की आवश्यकता महसूस होती रहती है।
🙏🏻जय श्री विश्वकर्मा प्रभु🙏🏻
लेखक- श्री राजेश्वराचार्य जी महाराज।
कथावाचक एवं पीठाधीश्वर।
विश्वकर्मा संस्कृति पीठ, काशी।
वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
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संपादकीय/धर्म पर चर्चा