उपभोक्तावादी संस्कृति में मानवता का वैरी होता मनुष्य : डॉ डी आर विश्वकर्मा
इस चर अचर सृष्टि में मानव चिंतन शक्ति से युक्त प्राणी है,और कर्म योनि को ग्रहण करता है।मानव मनन शील प्राणी भी है जो विचार पूर्वक कार्य करता है।सम्यक विचार पूर्वक कार्य करने वाले को ही सही मायने में मनुष्य कहते हैं।हमारे वेद भी “मनुर्भव:”होने का संदेश देते हैं।हमारे आर्ष ग्रंथों में भी मानव बनने का उल्लेख आता है।अति प्राचीन वेद ऋग्वेद(09/63/04)में वर्णित है कि”कृण्वंन्तो विश्वमार्यम”यानि विश्व के सभी लोगों को श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभाव वाले बनाओ।इतना ही नहीं;हमारे आर्ष ऋषियों ने कहा है कि”अयम निज:परो वेति गणना लघु चेतशाम,
उदार चरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।”कहने का अर्थ यह मेरा है,वह तेरा है,यह सोच तो क्षुद्र बुद्धि के लोगों की होती है।उदार चरित्र वाले मनुष्य के लिए तो यह पूरी धरा ही कुटुम्ब के समान होती है।आचार्य शंकर ने कहा है”जन्तूनाम नर जन्म दुर्लभम्”मतलब नर तन पाना दुर्लभ माना जाता है।वही आचार्य तुलसी ने भी रामचरित मानस में लिखा है।”बड़े भाग्य मानुष तन पावा,सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा।”सारांश में कहा जाय तो देवता गण भी मानव होने के लिए तरसते हैं।
निरुक्त (3/7) में मनुष्य का अर्थ”मत्वा कर्माणी सिव्यति “मनुष्य वही है जो मनन चिंतन कर कार्य करे।
मनुष्य: कस्मात् मत्वा कर्माणी सिव्यति।
कहने का तात्पर्य मनुष्य वही है,जो सम्यक चिंतन मनन के साथ कार्य सम्पादित करे।
एक अच्छा मनुष्य कर्तव्यनिष्ठ,विनम्र,चरित्रवान,परिश्रमी,उदार ईमानदार,निष्पक्ष,करुणामय,दयालु,सहयोगी,सकारात्मक सोच का होता है।वह दूसरों की मदद करने वाला,बड़े बुजुर्गों की सेवा करने वाला,बुरे वक्त में ,लोगों की सहायता करने वाला होता है।
कुछ मनीषियों ने अच्छे मनुष्यों में निम्नांकित नैतिक गुणों का उल्लेख किया है।
1-सहानुभूति,दूसरों की समस्याओं को समझने और उनकी मदद करने की इच्छा रखता है।
2-ईमानदारी-कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी निष्ठा व ईमानदारी रखता है ।
3-दयालु,दूसरों के प्रति करुणामय व दयालु होता है।
4-क्षमा,दूसरों की गलतियों को क्षमा कर देता है ।
5-संतुलन,अपने कर्म विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण रखता है।
6-दूसरों के प्रति सम्मान की भावना रखता है ।
7-सकारात्मक सोच के साथ कार्य करने वाला होता है।
8-सहयोग-दूसरों के साथ सहयोग करने एवम् कार्य करने हेतु तैयार रहता है ।
9-समानुभूति-दूसरों के कष्टों को देखकर द्रवित होता है और भावनाओं को समझने का प्रयास करता है।
10-विनम्रता -वह विनम्र रहकर कार्य करता है और उदारता का परिचय देता है।
11-अनुग्रह -विना किसी स्वार्थ के,उपकार के,लोगों पर उपकार करता है।
अच्छे मनुष्य में चिंतनशीलता,त्याग की भावना,उदारता,सद्भाव,दयालुता,रचनात्मक एवं सकारात्मक सोच विद्यमान रहता है।
शास्त्रों में एक अच्छे इंसान के गुण बताए गए हैं कि वह मनुष्य,जो लोगों के कल्याण हेतु प्रार्थना करता है।अपने सामर्थ्य के अनुसार समाज सेवा करता है।सत्य भाषण करता है।उदारता दिखाता है।दूसरों का सम्मान करता है।पवित्र आचरण और पवित्र विचारों वाला होता है।वह नेक दिल इंसान कहा जाता है।
यजुर्वेद 36/18 में वर्णित है कि”मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे “यानि हम सबको मित्र की स्नेहसनी आखों के समान सभी को देखना चाहिए।
परन्तु आज इंसान संवाच: नहीं;विवाच: हो गए है।मतलब हम संवादी नहीं विवादी हो गए हैं।हम ईश्वर के कुसंतान,जघन्य संतान,अयोग्य संतान और विद्रोही संतान हो चुके हैं,तभी तो आज समाज अशांत एवं अस्थिर हो रहा हैं।
आज उपभोक्तावादी संस्कृति से भी हमारी सामाजिक नींव कमजोर हुई है।सामाजिक मूल्यों,आस्थाओं,परम्पराओं की जड़े हिल चुकी हैं।समाज में वर्गों की दूरी बढ़ती जा रही है।जीवन स्तर का बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है।सामाजिक सरोकार में कमी आ रही है।समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति ख़राब हो रही है।आज युवा,धर्म और जीवन मूल्यों के बजाय ;वस्तुओं के इर्द-गिर्द केन्द्रित होते जा रहे हैं।आज सर्वत्र अत्याचार,अनाचार,पापाचार का वातावरण देखने को मिल रहा है।लोग उत्पादों का सुख प्राप्त करना चाहते है।उपभोक्ता वाद ने अनेकानेक सामाजिक मूल्यों का अवमूल्यन किया है।आज स्त्री को भी हम उपभोग की सामग्री मानने लगे हैं।लोगों ने त्यागी जीवन जीने से तौबा कर लिया है।केवल अपना भला आज का मनुष्य देख रहा है।लोगों में मनुष्यता,मानवता नामक चीज देखने को नहीं मिल रही है।सामाजिक सम्बंधों में दरार पड़ रही है।परिवार के अस्तित्व पर खतरा मडराने लगा है।आज की पीढ़ियाँ;विदेशी कल्चर को आत्म सात करने को बेचैन दिख रही हैं।हमारी सांस्कृतिक विरासत हाथ से निकल रही है।ऐसी परिस्थिति में हम सबका अपरिहार्य दायित्व बनता है कि हम अपने बच्चों को संस्कारित करें उन्हें अच्छे होने के गुण सिखाए और अपनी संस्कृति की पहचान दिलाए।तभी हम अपने परिवार समाज व देश को इस विकट परिस्थिति से बचा पाने में समर्थ हो सकेंगे।
लेखक : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा, सुन्दरपुर - वाराणसी -05
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संपादकीय/ उपभोक्ता वादी