अनमोल जीवन (कविता)
अनमोल मिला जीवन क्यों व्यर्थ गंवाते हो,
अपने हाथ से ही निज गेह जलाते हो ।
खुद ही गलत करते तो विचार नहीं करते,
वक़्त बीतने पर फिर क्यों पछताते हो ।
यह दुर्लभ जीवन तो प्रभु का अमूल्य वरदान,
महापुरुष भी करते इस जीवन का सम्मान।
बड़े पुण्य प्रतापों से यह जीवन मिला हुआ,
समाज,देश, विश्व हेतु उपयोग करें श्रीमान।
ईश्वर भी कभी - कभी जब स्वर्ग में होते हैं,
एक जैसा जीवन जीकर आनंद खोते हैं।
धरती की सुंदरता के अवलोकनार्थ,
सपत्नीक वर्षों तक भूलोक में होते हैं।
सदुपयोग करें देव दुर्लभ अपने जीवन का,
मदद कीजिए विकास हेतु निज यौवन का।
सुंदर अवसर सृजित करें जन कल्याण के लिए,
मौका न कहीं चूक जाएं आदर्श सृजन का ।
कवि- चंद्रकांत पाण्डेय,
मुंबई, महाराष्ट्र,
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