विश्वकर्मा समाज सामाजिक रूप से सशक्त, समृद्ध और समुन्नत कैसे हो
: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सामाजिक विकास को समझने से पहले आइये!देखें समाज होता क्या है?साधारणतया दल,झुंड,समूह,गिरोह को एक समाज का नाम दिया जाता है।मानव पारस्परिक लाभ के निमित्त जो कृत्रिम उपाय करता है,वह समाज कहलाता है । वैसे समाज एक से ज़्यादा लोगों के समूहों से मिलकर बना एक बड़ा समूह होता है,जिसे समाज कहते हैं, जिसमें व्यक्ति मानवीय क्रिया कलाप करते हैं।एक समाज में सम्बंध, सहयोग,परस्पर प्रेम, संघर्ष, सद्भाव, न्याय, समानता, आत्म निर्भरता तथा एक तय सामाजिक प्रतिमान होते हैं।
समाज एक उद्देश्य पूर्ण समूह होता है,जो किसी क्षेत्र में बनता है और उसके सदस्य एकत्व और अपनत्व में बँधें होते हैं। जैसे आर्य समाज,सत्संग समाज, विश्वकर्मा समाज, व्यापारी समाज आदि।
मित्रों! बात हो रही है, अपना विश्वकर्मा समाज सामाजिक रूप से सशक्त, समृद्ध और समुन्नत कैसे हो,देखिए कोई भी समाज बिना गुणों के, बिना संस्कार के, बिना कौशल के, बिना श्रम के और बिना रोजगार/आर्थिक विकास और बिना संगठित हुए समुन्नत नहीं हो सकता।इसके लिए हमें विश्वकर्मा समाज को सर्वप्रथम अपने घरों का माहौल संस्कार युक्त बनाना पड़ेगा, जिसमें सर्वप्रथम अपने कुल के आराध्य देव की स्थापना, उनका नियमित पूजन,जिससे अपनी संतानें अपने कुल के देवता के महात्म्य को समझें और उनमें बचपन से ही अपने बड़ों का सम्मान करने और आध्यात्मिक बनने के गुण विकसित हों। मैं इसलिए यह लिख रहा हूँ कि आप यदि घर में एक आदर्श प्रतिमान नहीं बनायेंगे तो बच्चा शिक्षित तो होगा परन्तु संस्कारित नहीं हो पाएगा। संस्कार क्या है?
संस्कार बच्चों में बड़ों में गुणों का आधान करा देना ही संस्कार है।आप जरा सोचें जन्म से ही बच्चों में संस्कार नहीं आते उन्हें सिखाना पड़ता है और इसमें तीन लोगों का सबसे बड़ा योगदान होता है जिसमें सबसे पहला स्थान माँ का है। माएं चाहे तो बच्चे को साहसी बना दें। डरपोक बना दें,या उन्हें चोर, डकैत या सन्त बना दें।यदि बच्चा कहीं से दस रुपए लाता है और माँ यह न पूछे कि तुमने इसे कहा से प्राप्त किया तो बच्चा यदि उसे कहीं से चुरा कर लाया होगा तो माँ उसे नहीं डाटेगी तो कालान्तर में उस बच्चे में चोरी के ही गुण विकसित होंगे।दूसरा स्थान पिता का होता है वह भी बच्चों को अनेकानेक गुण बचपन से सिखाता है और तीसरा स्थान गुरुओं का होता है। मित्रों कभी कभी तो बच्चे जितना शिक्षकों की बात को तरजीह देते उतना माता पिता की बातों का नहीं देते।तो समाज में यही तीन बदलाव ला सकते हैं।
दूसरी चीज बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान दें।यदि बच्चों का स्वास्थ्य नहीं ठीक होगा तो वे अच्छी प्रकार से नहीं पढ़ पाते न समझ पाते हैं। तीसरी उन्हें स्वच्छता के महत्व को बताए। चौथी उन्हें अच्छी शिक्षा देने का अवश्य प्रबन्ध करें चाहे माँ बाप को भले ही आर्थिक तंगी झेलनी पड़े। पेट काटना पड़े।जमीन जायज़ाद बेचनी पढ़े।
बात हो रही थी विश्वकर्मा समाज को समुन्नत बनाने की तो साथियों किसी भी समाज को उन्नति के शिखर पर ले जाने का कार्य शिक्षा, संस्कार, स्वास्थ्य, कौशल विकास व रोजगार के साथ आर्थिक विकास ही अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करते हैं।तो सर्वप्रथम हमें अपने समाज के शिक्षा पर ध्यान देना होगा इसके लिए प्रत्येक शहर नगर महा नगरों में अपने समाज के बच्चों के लिए शिक्षा संवर्धन कोष की स्थापना बहुत जरूरी है जिससे कमजोर व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ाई हेतु पर्याप्त आर्थिक सहायता मिल सके । अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना अपने में संस्कारित जीवन जीने के गुणों को विकसित करना; जिसमे परिश्रमी होना, किसी प्रकार का नशा न करना (क्योंकि नशा, नाश की जड़ होती है) और अपने अन्दर अनेकानेक गुण और कौशल का विकास करना होगा।
इसके लिए हम सभी को सर्वप्रथम संगठित होना होगा।दूसरा अपने समाज के विकास की योजनाएं बनाना और तीसरा उसके मूल्यांकन की समय समय पर व्यवस्था करनी होगी।
मित्रों!आज हमारे समाज के कई संगठन बने हैं, परन्तु कहीं न कहीं वे माइक, माला और सम्मान पर टिके नजर आते हैं, इसमें व्यापक बदलाव की जरूरत है।जैसे प्रत्येक जिले में कार्यरत संगठनों का महासंघ बनें और इसमें प्रत्येक संगठन के दो दो पदाधिकारियों को सम्मलित करते हुए महासंघ बनायें जाए। जिसमें नियमानुसार पदाधिकारियों का चयन उनकी योग्यता के आधार पर सर्व सम्मति से हो, आज अपने समाज में कुकरमुत्ते की तरह संघ संगठन बन रहें हैं जिसमें अपनी अपनी ढपली अपना राग की कहावत चरितार्थ हो रही है और नतीजा वही ढाक के तीन पात। साबित हो रहा है,तो कैसे विश्वकर्मा समाज समुन्नत होगा।
अब आइए! हम अपने गाँव गिराव में विश्वकर्मा समाज को मजबूत करने के बाबत बात करें। नगर पंचायत,शहर, महानगरों में तो कई कई मोर्चा, समितियाँ, संघ, ट्रस्ट, संगठन संचालित हैं परन्तु जो हमारा समाज 95%
गाँवों में निवासरत हैं उन्हें संगठित करने पर हमारे समाज के अगुआ ध्यान नहीं दे पा रहें हैं, जिससे गाँव में अपने समाज की स्थिति ठीक नहीं हो पा रही है। इसके लिए गाँवों में भी विश्वकर्मा समितियाँ, समूह बनें ।बाकायदे उसका पंजीकरण हो और वही लोग सर्वमान्य ढंग से लोगों की समस्याओं को हल करने में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। इससे अपने समाज की उन्नति में चार चाँद लगेगा। गाँव में यदि कोई विश्वकर्मा मंदिर या धर्मशाला हो तो उसका इस्तेमाल सामाजिक कार्यों के लिए सहर्ष किया जाए। जैसे छोटे बच्चों के लिए बाल सभायें, खेलकूद का आयोजन, सुललित काव्य पाठ,चित्र कला प्रतियोगिताएँ, चार्ट मॉडल प्रतियोगिता, रंगोली निर्माण,भाषण प्रतियोगिता इत्यादि।यही पर अपने समुदाय की छोटी मोटी समस्याओं विवादों के हल और समाधान भी ढूढ़ें जा सकते हैं। किसी विवाद के समाधान हेतु किसी पक्ष में अहंकार नहीं होना चाहिए और त्याग की भावना जरूरी है। सभी अपने ही भाई हैं,ऐसी समझ विकसित करने की आवश्यकता है। हमें सामूहिक रूप से सरकार से सृष्टि कर्ता भगवान विश्वकर्मा जी के नाम पर मार्ग, चौराहें, पार्क, संस्थान, खोलने की पुरजोर माँग भी करनी चाहिए; ताकि अपने समाज का नाम आम लोगों में भी फैले और विश्वकर्मा समाज की गरिमा में वृद्धि हो सके। सामाजिक एकजुटता दिखाने के लिए सम्मेलन, महासम्मेलन, चिंतन शिविर भी समय समय पर आयोजित किए जाने की भी आवश्यकता है और वर्ष में पड़ने वाले विश्वकर्मा जयंती, अवतरण दिवस, प्राकट्य महोत्सव के दिन विशाल यात्रा रैली भी निकाली जानी चाहिए।
: Doctor Dayaram Vishwakarma
Retired District Development Officer
Varanasi.
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