आइए पढ़ते हैं कवि चंद्रकांत पांडेय जी द्वारा लिखा - कुछ मुक्तक
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वहशी दरिंदों को रोकना जरूरी है।
बीच चौराहे उन्हें ठोकना जरूरी है।
फ़र्ज़ अदायगी से काम चलेगा नहीं,
इन्हें मौत के मुँह झोंकना जरूरी है।
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प्रत्येक शहर में अब तो आग है।
हर जगह बलात्कारी नाग है।
बहन, बेटियाँ कब तक असुरक्षित,
कहाँ सुरक्षा का जलता चिराग है।
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जिंदगी गई लौटकर न आएगी।
दरिंदों तेरी रूह चैन न पाएगी।
कानून कसेगा तेरे गले में फंदा,
करनी तुझे खून के आँसू रुलाएगी।
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बेटी एक झटके में चली जाती है।
कली कभी फूल नहीं बन पाती है।
इसका समाधान सभी खोजो यारों,
ज़ालिम दुनियां इन्हें क्यों सताती है।
कवि- चंद्रकांत पांडेय,
मुंबई / महाराष्ट्र
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कुछ मुक्तक/ संपादकीय