माँ शैलपुत्री - प्रथम स्वरूप

माँ शैलपुत्री - प्रथम स्वरूप
नवरात्रि  के  प्रथम  दिवस  पर , 
शैलपुत्री   का    करते   पूजन । 
इस व्रतकथा के श्रवण मात्र से , 
सुख समृद्धि का होता आगमन। 

इस  आराधना   से  भक्त   को , 
पत्थर   सी   स्थिरता   मिलती । 
रह अडिग लक्ष्य  प्राप्ति संभव , 
जीवन   में   खुशहाली   रहती । 

कलश   स्वरूप   गणपति  जी , 
पुराणों     में    मिलता   वर्णन । 
इसीलिए  कलश स्थापित  कर , 
कलश  पूजते  सभी  भक्तगण । 

सती  पिता दक्ष  ने  यज्ञ  किया , 
बेटी और शिव को नहीं बुलाया । 
बिना निमंत्रण तैयार  सती  को  , 
न जाने को  भोले  ने समझाया । 

माता  सती  आज्ञा ले  शिव की ,
मायके  हेतु  की  तुरंत  प्रस्थान । 
निमंत्रित  नहीं   किए  जाने  से  , 
मिला    नहीं    उचित   सम्मान । 

तब क्षोभ और  ग्लानि में आकर , 
खुद  को   यज्ञ  में  किया  हवन । 
मिली  सूचना   जब   भोले  को  , 
यज्ञ    विध्वंस     हुआ   तत्क्षण । 

हिमालय    गृह   पुत्री   रूप  में  , 
सती   ने    फिर   जन्म    लिया । 
नामकरण  हुआ  फिर  शैलपुत्री , 
पृथ्वीलोक    ने    पूजन   किया । 

कवि- चंद्रकांत पांडेय,
मुंबई, महाराष्ट्र,

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