अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष कविता
नारी तो वन्दित है जग में,
हर घर की है, दिव्य प्रकाश।
उसके बिना तो घर सूना है,
विखराती, हर घर उजास ।।
नारी है, तो मूल्य जीवित है,
बर्ना, तो हर घर उदास।।
संस्कार की, वाहिका होती,
हर युग को, देती प्रकाश।।
प्रेम दया ममता करुणा की,
फैलाती है, नित सुवास।।
हर गृह की वह शोभा होती,
गृहणी बन करती प्रवास ।।
आँगन का उपवन है गमके,
जब है गृह, उसका निवास।।
नर की नारी, सहचरी होती,
कार्य करे वह बिन अवकाश ।।
ईश्वर की प्रतिरूप कहीं पर,
बन महकाये, गृह आवास ।।
रचनाकार : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा, (विज्ञ)
सुन्दरपुर वाराणसी- 05