महिलाओं के उत्थान और सुरक्षा के लिए हर नारी को जागरूक करना आवश्यक है : डॉ. गीता देवी हिमधर
बिजली चमकती है तो,
आकाश बदल देती है।
आंधी उठती है तो,
दिन-रात बदल देती है।
जब गरजती है नारी शक्ति,
तो इतिहास बदल देती है।
हर वर्ष 8 मार्च का दिन दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को महिलाओं की आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक तमाम उपलब्धियां के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। साथ ही उन्हें यह एहसास कराया जाता है कि वह हमारे लिए कितनी खास है। महिला दिवस पर उन महिलाओं के साहस को सम्मानित करना चाहिए, जो हमारे आसपास रहती हैं और अपने-अपने तरीके से रोजाना संघर्ष करके स्थितियां बदल रही हैं। आज हर क्षेत्र में महिलाओं की उपलब्धियां भरा हुआ है। यहां तक की अब आर्मी नेवी और इंडियन एयर फोर्स की हर ब्रांच में महिलाओं की तैनाती हो रही है। यह दिन इन्हीं उपलब्धियां को सलाम करने का दिन है। इसके अलावा महिला दिवस मनाने का मकसद महिलाओं के अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाना भी है, ताकि उन्हें उनका हक मिल सके और वह पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके।
आज महिलाएं आत्मनिर्भर बन गई है। यह बात सही है की महिलाएं हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं लेकिन यह भी कटु सत्य है कि आज भी कई जगहों पर उन्हें लैंगिक असमानता भेदभाव झेलना पड़ता है। शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर रोजगार तक पुरुषों और महिलाओं के बीच एक गहरी खाई नजर आती है। कन्या भ्रूण हत्या के मामले आज भी आते हैं। महिला के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। ज्यादातर स्त्रियों को परिवार में फैसला लेने का अधिकार और आजादी नहीं मिल पाई है। ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि महिलाओं की स्थिति समाज में बेहतर बनाने को लेकर प्रयासरत रहने का संकल्प लें।
महिलाओं के उत्थान और सुरक्षा के लिए हर नारी को जागरूक करना आवश्यक है। जिस तरह से परिवार की गाड़ी दोनों पहियों के बल पर ही आगे बढ़ती है इस तरह से देश दुनिया का रथ भी नर नारी दोनों के सहयोग से ही खींच सकेगा। दुनिया समावेशी विकास के पद पर आगे बढ़ेगी तभी महिला दिवस मनाने की सार्थकता भी है। वैचारिक रूप से हम भले ही बराबरी की तमाम बातें कर लें, लेकिन जब तक व्यावहारिक रूप से महिला और पुरुषों में समानता नहीं आएगी तब तक निर्भया जैसे कांडों से बच पाना मुश्किल है। एक तरफ तो हम नारी सशक्तिकरण व सम्मान की बात करते हैं, वहीं आज के समय नारियों के प्रति अत्याचार बढ़ रहा है। आज महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर तो हो रही हैं, उसके बावजूद अंधविश्वास व पाखंड के चंगुल से बाहर निकल नहीं पा रही हैं। बल्कि और बढ़ावा दे रही हैं। जिस संविधान ने हम नारियों को बराबरी का हक अधिकार दिया है,जिसके बदौलत आज छोटे बड़े हर क्षेत्र में नौकरी कर रही हैं। विभिन्न समिति बनाकर आगे बढ़ रही हैं सम्मान प्राप्त कर रही हैं, उस भारतीय संविधान के बारे में जानना नहीं चाहती है। मैं नमन करती हूं भारत की प्रथम महिला शिक्षिका वीरांगना सावित्री बाई फुले जी को जिन्होंने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ हम नारियों के लिए सबसे पहले विद्यालय खोला। अनेकों कष्ट सहकर पढ़ाने का कार्य किया। महिलाओं को हर क्षेत्र से मजबूत बनाया। समाज सेविका और कवियत्री भी थीं। मैं आप सभी से निवेदन करती हूं कि तमाम उपलब्धियां प्राप्त करने वाली प्रथम महिलाओं के संघर्ष को जानें समझें। अपने शक्ति को पहचाने और दूसरे नारी को आगे बढ़ाने में सहयोग करें।
नारी सशक्तिकरण से ही राष्ट्र की उन्नति संभव है।
- डॉ. गीता देवी हिमधर
कोरबा, छत्तीसगढ़
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संपादकीय/ लेख