सच्चा धर्म
धर्म के नाम पर जो लड़ते हैं,
महामूर्ख अज्ञानी ।
धर्म नहीं इजाज़त देता,
करने को मनमानी ।।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
ये तो धर्म नहीं है ।
इनको जानो संप्रदाय
एक मानव धर्म सही है ।।
पूजा और अजान तुम्हारा
यह भी धर्म नहीं है ।
परहित की सोचे ; बंदा,
समझो धर्म वही है ।।
पीड़ा देकर प्राणी को,
बनते हो मौलवी-ज्ञानी।
अनबोलते,निरीह जीवों
की करते हो कुर्बानी।।
जीव जन्तु का क़त्ल करो,
और इसको कहते पाक।
तिर्यक योनि में पैदा होते,
अल्लाह का,यही है श्राप ।।
सबकी रक्षा करता जो,
जो सबको गले लगाता।
धर्म जिसे हम धारण करते,
वही धर्म कहलाता ।।
धर्माचरण से जो भी भाई,
राह पकड़कर चलते ।
धर्म ही आकर रक्षा करता,
यही सुधीजन कहते ।।
सच्चा धर्म वही होता है,
जो विश्व बंधुत्व फैलाता।
यह उपहार,ऋषि मुनियों का,
मानवता को उपजाता ।।
एक बार इस दुनिया को
धर्म विहीन कर देना।
कलबो जिगर में इंसानियत,
बस ईश्वर,तुम भर देना ।।
रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर वाराणसी-05
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