झूठ क्या है? किन अवसरों पर झूठ बोलना पाप नहीं? झूठ से बचने के उपाय : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा
झूठ बोलना हमारे सामाजिक व्यवहार में स्वीकार नहीं माना जाता ।झूठ एक ज्ञात असत्य होता है,जिसे सत्य के रूप में व्यक्त किया जाता है।झूठ को “वाक्छल या असत्यता “भी कहते हैं।यह किसी को धोखा देने,गुमराह करने और किसी से पहले से बताए बिना,कथन है,जो वास्तविक स्थिति के विपरीत भ्रामक दावा होता है,जिसका उद्देश्य दूसरे को सच मान लेने पर,मजबूर करता है।इसमें मिथ्या भाषण,गोल मोल जबाब,असत्य बचन,बेईमानी का आरोप आदि आता है।यद्यपि झूठ एक जटिल और बहुस्तरीय अवधारणा है;जो विभिन्न संदर्भों में अलग अलग अर्थ रखती है।
लोग दो अर्थों में झूठ बोलते हैं।एक धोखा देने के इरादे से और दूसरा भ्रामक एवं ग़लत धारणा बनाने हेतु।जिसमें तथ्य या इरादे के बारे में अविश्वसनीय बयान देना या निष्ठाहीन वादा करना है।झूठ,ग़लत धारणा देने के लिए अभिप्रेत है।झूठ एक बयान या दावा है,जो सत्य नहीं होता और जिसे जानबूझकर ग़लत या भ्रामक तरीक़े से प्रस्तुत किया जाता है।
झूठ बोलने के सबसे आम कारणों में से बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए सजा व शर्मिंदगी से बचना प्राथमिक प्रेरणा होती है,कभी कभी दूसरों को होने वाले नुकसान से बचाना भी झूठ बोलने का कारण होता है।
लोग झूठ कई प्रकार के बोलते हैं,जिसमें जानबूझकर ग़लत बोलना,ग़लत जानकारी देने को सक्रिय झूठ कहते हैं।जब कोई बंदा सच भी न बताए और झूठ भी न बोले इसे निष्क्रिय झूठ कहते हैं।आंशिक झूठ में कुछ हद तक सच बोलना और महत्वपूर्ण जानकारी छुपाना आंशिक झूठ की श्रेणी में आता है।
साथियों!लोग कई कारणों से झूठ बोलते हैं,किसी को ख़ुश करने के लिए स्वार्थवश लोग झूठ बोलते हैं;जिससे उनका फ़ायदा छिपा होता है।यानि कुछ लाभ पाने की इच्छा से,कुछ लोग डर वश,किसी सजा और नतीजे से बचने के लिए झूठ बोलते हैं।कुछ लोग शर्मिंदगी से बचने और आत्मसम्मान की रक्षा एवं अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए भी झूठ का सहारा लेते हैं।
हमारे मनीषियों और विद्वानों ने कुल छ प्रकार के झूठ बताए हैं।जिसमें स्व उन्मुख लाभकारी झूठ-अपने लिए सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने हेतु जो झूठ है।वह इस श्रेणी में आता है।उदाहरण जैसे मिली हुई धनराशि को स्वम् का बताना।
दूसरा स्व उन्मुख सुरक्षात्मक झूठ-खुद के लिए नुकसान से बचने हेतु जो झूठ बोला जाता है।वह इस श्रेणी में आता है।
तीसरा दूसरों के हित में बोला जाने वाला झूठ जैसे-सहकर्मियों के बीमार होने का समर्थन किसी पर्वेक्षक के समक्ष करना।
चौथा दूसरों को ध्यान में रखकर सुरक्षात्मक झूठ-जैसे माता पिता को चिंता से बचाने के लिए बोला जाने वाला झूठ,इसमें शुमार होता है।
पाँचवे प्रकार का झूठ बेहतर ग्रेड पाने के लिए बोला जाता है।
छठें प्रकार का झूठ सुरक्षात्मक झूठ होता है,जो ख़ुद और दूसरों को होने वाले नुक़सान को रोकने के लिए बोला जाता है।
अब आइये !झूठ बोलने के क्या क्या परिणाम होते हैं।झूठ बोलने से लोगों में विश्वास की कमी होने लगती है।रिश्ते बिगड़ने लगते हैं।मानव जीवन भ्रष्ट होने लगता है।अपराध बोध महसूस होता है।मानसिक तनाव भी उत्पन्न होने लगता है।लोगों का नैतिक पतन होने के कारण चारित्रिक पतन भी शुरू होता है।लोगों के झूठ बोलने से कभी कभी लोगों को चोट पहुँचती हैं और झूठ बोलने वाले व्यक्ति के परिवार को दुःख और परेशानियों का भी सामना करना पड़ जाता है।
झूठ बोलने वाला पहले असहज महसूस करता है।वह आँखे चुराता है।बार बार पलकें झपकाता है।चेहरे पर तनाव,झूठ बोलने के समय चेहरे पर देखा जा सकता है।झूठ बोलने वाला अपने हाँथो को मलता है और कभी कभी पैर भी हिलाता है।
हमारे शास्त्र,किन अवसरों पर झूठ बोलने को पाप नहीं मानते आइए ! उस पर भी हम सब ध्यान केंद्रित करें।
1-परिहास युक्त बचन बोलने से पाप नहीं लगता।
2-विवाह के समय हँसी ठिठोली के अवसर पर बोले जाने वाले झूठ,पाप की श्रेणी में नहीं आते।
3-जब किसी का प्राण संकट में हो उस समय का झूठ पाप की श्रेणी में नहीं आता।
4-सर्वस्व का अपहरण होते वक्त बोला जाने वाला झूठ से पाप नहीं लगता।
5-स्त्री प्रसंग के साथ पति का बचन भी झूठ नहीं होता।
न नर्मयुक्तम बचनम हिनस्ति,
न स्त्रीशु राजन्न विवाहकाले ।
प्राणात्यये सर्वधनापहारे,
पंचानृतान्याहुर पातकानि ।।
अब आइये! झूठ बोलने से बचने के उपाय पर चर्चा की जाय।सर्वप्रथम हम सभी को सत्य बोलने का अभ्यासी होना चाहिए।इसके लिए सदा सत्य बोलने की आदत बनानी चाहिए।जीवन के मूल्यों को धारण करने से भी सदाचरण की सीख मिलती है; जिससे व्यक्ति झूठ बोलना पाप समझने लगता है।हमे प्रतिदिन सोने से पहले दिन में बोले गए झूठ का विश्लेषण करने की आदत डालनी होगी, जिससे हमे ज्ञात होता है कि आज हम कहाँ कहाँ झूठ बोले।
इस प्रकार के विश्लेषण के पश्चात स्वतः प्रेरणा मिलने लगती है कि झूठ से विरत रहा जाए।झूठ बोलने से व्यक्ति को पाप का भागी बनाना ही पड़ता है, जिससे उसे पारिवारिक कष्ट भी आने लगता है।अतः दृढ़ संकल्पित होकर हम सभी को सत्य बोलने का प्रयास शुरू करना चाहिए। बच्चों को गलती होने पर यदि बच्चा सत्य सत्य घटना का जिक्र करे तो उसे कोई सजा नहीं देने की आदत अभिभावकों को बनानी चाहिए, जिससे बच्चे घर से ही सत्यवादी बनने की तरफ़ उन्नमुख हो सकते हैं ।स्कूल्स में भी बच्चों के ईमानदारी को और सत्य बोलने पर गुरुजनों को पुरस्कृत करना चाहिए, ताकि बच्चे स्कूल में भी सत्य बोलने के अभ्यासी बनें ।
लेखक:पूर्व जिला विकास अधिकारी, कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित वरिष्ठ साहित्यकार, ऑल इण्डिया रेडियो का नियमित वार्ताकार, मोटिवेशनल स्पीकर,वरिष्ठ प्रशिक्षक,कई पुस्तकों का प्रणयन कर्ता,शिक्षाविद है ;जिसके नाम पर शिक्षा संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शोध छात्रों को डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा बेस्ट पेपर अवार्ड भी दिया जाता है।
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संपादकीय/ झूठ क्या है?