हृदय बड़ा अनमोल (कविता)

हृदय बड़ा अनमोल 
       (कविता) 
आओ हृदय, विशाल बनाए,
प्रेम अंक से, गले लगाएं।

जारी रखता, रक्त प्रवाह, 
अंग प्रत्यंग हैं साक्षी, गवाह ।

रक्त प्रवाह, करे विनियमित 
रक्त चाप भी, करे नियंत्रित ।

बिना रुके, यह करता काम,
ऊर्जा मिलती, आठो याम ।

हृदय में, ईश्वर का है वास, 
सबको पर, कहाँ आभास।

करुणा प्रेम ममत्व जगाता,
पूरी मानवता संग नाता।

हृदय विराजे, प्रेम भावना, 
जीवन की ज्योत, सद्भावना ।

भाव प्रवणता, इसमें बसती,
बुद्धि को, बस तर्क सूझती ।

हृदय से, जीता जिसने यार,
जीवन उसका, सदा बहार।

बटा हुआ यह, चार खण्ड में, 
दो आलिंद व दो निलय में ।

पोषक तत्त्व व रक्त प्रदाता, 
थकना इसको, नहीं है भाता।

रुक जाए, यदि इसका काम, 
जीवन का बस, काम तमाम ।।

सर्जक : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा 
          सुन्दरपुर,वाराणसी-05

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने