सनातन क्या है? सनातन धर्म और हिन्दू धर्म का ऐतहासिक विवेचन

सनातन क्या है?सनातन धर्म और हिन्दू धर्म का ऐतहासिक विवेचन 
                                                  :  डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा 

सनातन एक जीवन पद्धति है ।सनातन की यात्रा मन की यात्रा है न कि बाहर की।सनातन का शाब्दिक अर्थ शाश्वत या सदा बना रहने वाला।यह दो शब्दों सत और तत् शब्दों के युग्मन से बना है जिसका मतलब यह और वह से भी लगाया जाता है।सनातन परम्परा एक अति प्राचीनतम धार्मिक और सांस्कृतिक परम्परा है,जो हजारों वर्षों में ऋषियों,मुनियों,तपस्वियों,श्रुतिओं,वेदों ,उपनिषदों,पुराणों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों से गुजरती हुई धीरे धीरे विकसित हुई।
सनातन का मानना है कि ईश्वर आत्मा मोक्ष ये सभी पूर्ण और ध्रुव सत्य हैं।ब्रह्म ही सर्वोच्च वास्तविकता है जो हर चीजों के पीछे अन्तर्निहित दिव्य सत्ता है।अतः सनातन का न आदि है और न अंत।यह अनादि काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता रहेगा।गीता के अनुसार सनातन धर्म वह धर्म है जो सदैव बना रहता है।यह धर्म जीवन जीने का तरीक़ा सिखाता है,यह आचार संहिता है जो नैतिकता पर आधारित है।इसमें आत्मा और परमात्मा दोनों को सनातन माना गया है।सनातन धर्म जीवन जीने की प्रेरणा देता है।यह धर्म सही और गलत का विचार कर,अपने कर्मों और कर्तव्यों का पालन करने का मार्ग दर्शन करता है।
सनातन धर्म मानवता के लिए एक जाति,एक धर्म और एक ईश्वर का सिद्धांत प्रतिपादित करता है।
अब आइये! हिन्दू धर्म क्या है;उसे समझने का प्रयास करें।सर्व प्रथम हिन्दू कौन ?इसे जाने।जैन धर्मावलंबियों का एक ग्रंथ”कल्पद्रुम”है जिसमें हिन्दू शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-हीनं दुष्यति इति हिन्दू:,अर्थात् जो हीनता और अज्ञानता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं।
सर्व प्रथम ११रहवीं शताब्दी में अलबरूनी नामक प्रसिद्ध विचारक धर्मज्ञ और फ़ारसी का विद्वान लेखक ने हिन्दू शब्द का प्रयोग किया था।कुछ मनीषी इसे इण्डो आर्यन और संस्कृत शब्द सिन्धु से बना हुआ मानते हैं।हिन्दू धर्म वैदिक वर्णाश्रम धर्म माना गया है जो कर्म,पुनर्जन्म,मोक्ष,ईश्वर और बहुदेववाद पर आधारित धर्म है।जिसमें विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है।इसमें ईश्वर के विभिन्न अवतारों जैसे ब्रह्मा विष्णु महेश गणेश दुर्गा कृष्ण राम भगवान विश्वकर्मा आदि की पूजा की जाती है।इसमें विभिन्न पूजा पद्धतियों और अनुष्ठानों का पालन किया जाता है।हिन्दू धर्म आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म साक्षात्कार पर जोर देता है;जिसमें कर्म पुनर्जन्म मोक्ष को बखूबी परिभाषित और   व्याख्यायित किया गया है।इसमें कर्मों के आधार पर जन्म निर्धारित होता है।वेद शास्त्र धार्मिक व दार्शनिक सिद्धांत और तीर्थ स्थलों की महत्ता पर भी ध्यान दिया जाता है।
अब आइये दोनों धर्मों का ऐतहासिक विवेचन करें।मित्रों सनातन और हिन्दू धर्म का विकास कई चरणों में सम्पन्न हुआ है अतः दोनों का विवेचन एक जटिल और विस्तृत विषय है,तथापि इसका अनुशीलन यहाँ बहुत जरूरी है।
सनातन जो कभी न शुरू हुआ न जो कभी ख़त्म होगा।साथियों प्राचीन समय में जब लोग कृषि और व्यापार कर रहे थे तो सभी का जुड़ाव प्रकृति से था लोग प्रकृति की पूजा करते थे।जब कोई मंदिर नहीं थे न कोई हिन्दू था न कोई मुस्लिम सिख ईसाई ही था जब कोई जाति व्यवस्था नहीं थी,किसी भगवान की परकल्पना न थी तत्समय लोग सरोवरों,नदियों की पूजा,पहाड़ों की पूजा,सूर्य और चन्द्रमा की पूजा जल की पूजा किया करते थे। सनातन को समझने के लिए हमें आज से 5000 वर्ष पहले जाना होगा। जब सत्य केवल प्रकृति के नियम ही थे।शेष कुछ नहीं था।इसीलिए सनातन को बनाने वाला कोई नहीं है वह तो शाश्वत प्रकृति के नियम हैं वही तो सनातन है।सर्वप्रथम 1500 BC में कुछ खाना बदोश जातियाँ जिन्हें आर्य कहा गया जो रूस,कज़ाकिस्तान,उजवेकिस्तान मध्य एशिया से आये और उन्होंने अपने जीवन शैली में प्रकृति की पूजा शुरू की ।लोग सूरज निकलते देखते थे,चाँद निकलते देखते थे,हवा चल रही है,उसे महसूस करते थे,जल का अस्तित्व था और इसी कारण सर्वप्रथम प्रकृति की ही पूजा शुरू हुई थी।
इसके बाद ऋषियों,महर्षियों,ब्रह्मर्षियों ने श्रुति से लोगों को उपदेश देना शुरू किया लोग सुनकर कुछ बातें जीवन में धारण करना शुरू किए और अपने जीवन को उन उपदेशों से कृतार्थ करने लगे जैसे ऋषियों की वेद वाणी थी सत्य बोलो,चोरी न करो,किसी जीव की हत्या न करो।एक ब्रह्म ही सभी में व्याप्त है उसी की उपासना करो आदि आदि यही सनातन है जो प्रकृति के नियम है वही सनातन है जो सदैव से रहा है और अनन्त काल तक रहेगा।
इसके बाद श्रुति उपदेश को संकलित कर वेदों की रचना शुरू हुई।सर्व प्रथम ऋग्वेद अस्तित्व में आया जो ब्रह्माण्ड और जीवन के रहस्य पर लिखा गया,जिसमें सिर्फ स्तुतियाँ ही हैं केवल देवता मानकर स्तुतियाँ की गई हैं।वह इन्द्र,सोम,रुद्र,ब्राह्मणस्पति,विश्वकर्मा,प्रजापति,अग्नि,वरुण आदि की गायी गई हैं।इसके बाद यजुर्वेद की रचना हुई जिसमें यज्ञ और हवन की विधि व्यवस्था बताई गई। सामवेद में संगीत और मंत्रों की चर्चाएँ की गई है या यूँ कहे कि वह उस पर आधारित है।इसके बाद अथर्ववेद आया,जिसमें जीवन जीने के नियम और औषधियों का वर्णन मिलता है।
मित्रों वेद कालीन समय में कर्म आधारित व्यवस्था थी।ऋग्वेद का दसवें मंडल का नब्बेवाँ सूक्त का बारहवाँ श्लोक मंत्र जो पुरुष सूक्त का है इस बात का प्रमाण है।उस समय वर्ण बदलना सम्भव था इसका प्रमाण बाल्मिकी और विश्वामित्र मुनि हैं।उस समय वेदों का ज्ञान सिर्फ ब्राह्मण वर्ण को था।उस समय कोई मूर्ति पूजा नहीं थी और यज्ञ किए जाते थे,बलि प्रथा थी।
लगभग 1200BC तक यज्ञ और हवन जटिल हो गया लोग इससे ऊबने लगे तो यही वह समय आया जब लोग देवताओं का प्रतीक मूर्तियां बनाने शुरू किए और मूर्ति पूजा का श्री गणेश हुआ।आत्मा,मोक्ष,ब्रह्म का दर्शन भी जब लोगों को समझ से परे लगने लगा तो उपनिषदों और पुराणों की रचना की गई।जिसमें विष्णु पुराण,भागवत पुराण,नारद पुराण,ब्राह्मण पुराण,मार्कण्डेय पुराण, भविष्य पुराण,शिव पुराण,अग्नि पुराण,स्कन्द पुराण आदि की रचना हुई;जिससे लोग आसानी से धर्म आधारित पुरानी कथाओं को चाव से पढ़ने और समझने लगे,और इन्हीं पुराणों,उपनिषदों के द्वारा भगवान को जन्म दिया गया।भगवान का मानवीकरण शुरू हुआ,यही वह काल था जब भक्ति भी अस्तित्व में आयी और यही से सनातन को नया कलेवर मिलना प्रारम्भ हुआ।इसके पश्चात त्रि मूर्ति ब्रह्मा,विष्णु,महेश की परिकल्पना साकार हुई,क्योंकि वेदों में कहीं नहीं इन,त्रि मूर्तियों की चर्चा है।इसी बीच दो समाज सुधारकों का जन्म हुआ बुद्ध और महावीर का।इन समाज सुधारकों ने बलि प्रथा,मूर्ति पूजा,कर्म काण्ड,पाखण्डवाद,अन्धविश्वास की आलोचना की।लोगों में बुद्ध और महावीर स्वामी का दर्शन लोक प्रिय होने लगा जिससे ब्राह्मण वर्ण बौध और जैन धर्म का विरोध करने लगा।इतना ही नहीं भगवान बुद्ध को विष्णु का दसवाँ अवतार भी कह कर पुकारने लगा।
लगभग 1700 वर्ष पूर्व गुप्त काल के दौरान सनातन और हिन्दू धर्म को संजीवनी मिलना शुरू हुआ जब उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर और देव गण का दशावतार मंदिर बना।इससे देव,देवी पूजा,मंदिर पूजा की अच्छी शुरुआत हुई।
गुप्त काल में बौध मंदिरों मठों को मिलने वाला राज्य अनुदान समाप्त हो गया और 1100BC में अरबों तुर्कों मुगलों ने सनातन धर्म को हिन्दू धर्म कहना प्रारम्भ किया।15रहवीं शताब्दी में जाति प्रथा इतनी हावी हो गई थी कि इसी दौरान भक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई और अंधविश्वास और पाखण्डवाद को चुनौती मिली।
क्योंकि भक्ति आंदोलन के समर्थकों का कहना था कि श्रद्धा और प्रेम से ही भगवान तक पहुँचा जा सकता है।दक्षिण भारत में अलवार और नयनार सन्तों ने विष्णु और शिव के लिए भजन गाए।
जब 12रहवीं से 17रहवीं शताब्दी तक उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन चरम पर था तो सूर,कबीर,तुलसी,मीरा,रसखान इत्यादि कवियों ने भगवान कृष्ण व राम को पुरुषोत्तम मानकर उनके प्रेम में गीत लिखे और गाये।कबीर ने तो पाखण्डवाद पर जोरदार हमला बोलते हुए लिखा कि-माला फेरत युग गया,फिरा न मन का फेर।कर का मन का डारि दे,मन का मन का फेर।।

लेखक:पूर्व जिला विकास अधिकारी,कई राज्य स्तरीय सम्मानों से विभूषित वरिष्ठ साहित्यकार,ऑल इण्डिया रेडियो का नियमित वार्ताकार, कई पुस्तकों का प्रणयन कर्ता,शिक्षाविद,मोटिवेशनल स्पीकर,वरिष्ठ प्रशिक्षक है,जिसके नाम से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के शोध छात्रों को डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा बेस्ट पेपर अवार्ड भी प्रदान किया जाता है।

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