परिवार, परिवारों में विघटन और आधुनिकता के दौर में विखंडित होते परिवार, अनुशीलन और संक्षिप्त विश्लेषण : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा

परिवार, परिवारों में विघटन और आधुनिकता के दौर में विखंडित होते परिवार, अनुशीलन और संक्षिप्त विश्लेषण : डॉक्टर दयाराम विश्वकर्मा                        
मानव समाज की मौलिक इकाई परिवार ही है; जिसमें सहकार, सुमति और सद्भावना देखने को मिलती है।किसी घर में एक साथ रहना, परिवार नहीं कहलाता बल्कि एक साथ जीना एक दूसरों को समझना और एक दूसरे की परवाह करना ही परिवार कहलाता है। परिवार एक ऐसी जीवंत संस्था है,जहाँ रक्त सम्बन्ध और आत्मीयता से लोग जुड़े होते हैं;जिसमें प्रेम,एकता और विश्वास की गहरी छाप दृष्टगोचित होती है। परिवार से बड़ी कोई आस्था नहीं क्योंकि इसी से समाज,देश और विश्व का कल्याण संभव होता है। परिवार की भावना में ही मनवाता के सभी संस्कारों को एक माले की तरह पिरोया जा सकता है।
प्राणी जन्म से लेकर मृत्यु तक सांसारिक संवेदनाओं का अनुभव परिवार से प्राप्त करता है। इसीलिए हमारे मनीषियों ने परिवार को समाज की पहली और सबसे महत्वपूर्ण इकाई माना है। कुछ विद्वानों ने परिवार को व्यक्ति के जीवन की प्रथम पाठशाला कहा है। परिवार का अर्थ,व्यक्ति के चारों तरफ़ एक सुरक्षित घेरा,जो जीवन के कठिन दिनों में हम सभी के साथ खड़ा रहता है।
हमारे वेदों और पौराणिक आख्यानों में भी परिवार के सन्दर्भ में कई 
आख्यानों की चर्चा की गई है।
अथर्व वेद 3/30/2 में निम्न श्लोक वर्णित है।
अनुव्रतः पितु:पुत्रो माता भवतु सम्मना:।
जाया पत्ये मधुमतीं वाचम् वदतु शांतिवाम् ।।
जिसका अर्थ पिता के प्रति पुत्र निष्ठावान हों, माता के साथ पुत्र एक मन वाला हो,पत्नी पति से मधुर तथा कोमल शब्द और वाणी बोले।
जैनेन्द्र जी का कहना है कि परिवार मर्यादाओं से बनता है जिसमें परस्पर कर्तव्य और अनुशासन होता है।
वही परिवार संस्कार युक्त होते हैं जहाँ बुजुर्ग संस्कार देने वाले होते हैं। परन्तु आज हम आधुनिक एवं उपभोक्तावादी संस्कृति में हम सभी आत्म व स्वकेंद्रित होते जा रहे हैं।आज के परिवेश में परिवार सिर्फ़ संकुचित संबंधों का अवशेष बनता जा रहा है। अब परिवार जैसी संस्था पर भी संकट के बादल मडराने लगे हैं।विदेशी संस्कृतियों में अब लोग बच्चे पैदा करने से कतराने लगे है तो आप महसूस कर सकते हैं कि परिवार जैसी पावन संस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
पहले परिवारों में एक मुखिया होता था जो सबकी देख रेख करता था जिसके पास परिवार की सत्ता (अथॉरिटी) होती थी उसके निर्णय से ही परिवार संचालित हुआ करता था।उसकी बदौलत परिवार के सभी सदस्यों को एक सुरक्षा कवच (सिक्योरिटी) प्राप्त रहती थी।जब मुखिया बीमार होता था,तो परिवार के सभी लोग उसकी सेवा शुश्रूषा में इकट्ठे होते थे और उसकी देखभाल करते थे। परिवार में उद्देश्यों की समानता के आधार पर एकजुटता देखने को मिलती थी जिसे सॉलिडेरिटी के नाम से भी जाना जाता है। यही संयुक्त परिवार की अवधारणा होती थी परन्तु आज संयुक्त परिवार टूटते ही जा रहें हैं और एकाकी परिवार में बदलते जा रहें हैं। एकाकी परिवार को ही न्यूक्लियर फ़ैमिली कहते हैं जिसमें माता पिता और बच्चे समाहित होते हैं।
आज परिवार में विघटन तेज़ी से बढ़ रहा है। सर्वप्रथम तो विघटन क्या है उस पर विचार करें।व्यक्तिगत परिवारों को बाधित करने की घटना को पारिवारिक विघटन कहते हैं।उन विघटन के कारणों पर हम यदि ध्यान केंद्रित करें तो इसमें तमाम कारक देखने को मिलेंगे जो परिवारों के विघटन हेतु उत्तरदायी हैं।

आइये उन कारणों का एक- एक कर विश्लेषण करें।
आज के पतन शील समाज में जीवन मूल्यों की कमी के कारण केवल और केवल अपने बच्चों को तरजीह देना, परिवारों में मतभेद, बहस, मनमुटाव, संघर्ष, व्यसन, मानसिक तनाव व आर्थिक तंगी घर में बढ़ती जरूरतों के कारण पैसों का अभाव से परिवार एक दूसरे से अलग हो रहें हैं। परिवारों में जो आपसी एका और समझ होती थी उसका अभाव भी आज परिलक्षित हो रहा है, जिससे आज परिवारों में विघटन दृष्टगोचित है। कुछ और मुख्य कारण हैं जिनमें संवाद की कमी भी आज परिवारों में देखने को मिलती है जिससे लोग एक दूसरे से सही संवाद नहीं कर पाते जिसके फलस्वरूप आज परिवार विलग हो रहें हैं।पारिवारिक मूल्यों का अभाव जिसमें नैतिकता की कमी और शिक्षा के अभाव के कारण भी आज परिवार विघटित हो रहें हैं।
परिवार में युवाओं की नई सोच, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अत्यधिक पाबंदी भी परिवार के विघटन का कारण बन रहा है। सामाजिक कारणों पर यदि ध्यान दें, तो वैश्विक प्रभाव जिसमें विन ब्याह किए आपसी रिलेशन में रहने की कुप्रथा, बिना ब्याह किए बच्चे पैदा करने की विदेशी संस्कृति, शादी अपने मनपसंद करना, अंतर्जातीय करना, शहरीकरण व नगरीयकरण का प्रभाव अपने ही बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की लालसा के कारण गाँव से पलायन के साथ साथ परिवारों से दूर नौकरी करना भी परिवार के टूटने का कारण बन रहा है।
परिवार के विघटन के तमाम कारणों का हमने विचार किया अध्ययन किया।
 अब आइये विखंडित होते परिवारों पर ध्यान केंद्रित करें पहले संयुक्त परिवार के टूटने का कारण पुनः एकाकी होते परिवार पर हम सभी ने अनुशीलन किया आज उससे भी ऊपर विखंडित होते परिवारों के कारणों को समझने का प्रयास करेंगे।आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में मँहगाई के कारण न्यूक्लियर फ़ैमिली में भी टूटन दिखाई दे रही है।पत्नी कहीं और नौकरी कर रही है।पति कहीं और जॉब कर रहा है बच्चे कहीं और सेटिल्ड हैं यह विखंडित परिवार का ही नमूना है।
मित्रो परिवार जैसी पवित्र संस्था पर आज संकट के बादल मँडरा रहे हैं। विदेशी संस्कृति के कारण आज युवा युवतियाँ ज़्यादा उच्छृंखल और स्वतंत्रत होते जा रहे हैं विदेशों में तो परिवार तेज़ी से टूटते जा रहे हैं वहाँ तो लड़कियाँ बिन शादी के माँ बन रही हैं तो अब आप महसूस कर सकते हैं कि पाश्चात्य संस्कृति का कुप्रभाव क्या अन्य देशों पर नहीं पड़ेगा।क्योंकि आज तो इंटरनेट का जमाना है आज के युग में कहीं भी होने वाली घटनाओं का जीवंत सूचनाएं हम घर बैठे प्राप्त कर ले रहें हैं इसमे अच्छी घटनाएं और बुरी घटनाएं भी हैं।संचार क्रांति ने तो आज सचमुच दुनिया को मुट्ठी में क़ैद कर लिया है जिसका परिणाम सर्वत्र हर क्षेत्र में दिखायी दे रहा है और बदलाव की आँधी से सभी प्रभावित हुए हैं।इस परिप्रेक्ष्य में परिवार पर भी उसकी एका पर उसके संतुलन पर बहुत तेजी से परिवर्तन देखने को मिल रहा है।
आज हम सभी,बुद्धिजीवियों,मनीषियों और महापुरुषों के समक्ष परिवार जैसी संस्थाओं को बचाए रखने की ज्वलंत समस्या है,जिस पर गहन चिंतन मनन कर उसकी अहमियत को बचाए रखने की है।
लेखक:पूर्व जिला विकास अधिकारी,मोटिवेशनल स्पीकर,शिक्षाविद,ऑल इण्डिया रेडियो के नियमित वार्ताकार,अखिल भारतीय विश्वकर्मा ट्रस्ट वाराणसी का मुख्य मार्ग दर्शक,विश्वकर्मा चैरिटेबल ट्रस्ट सोनभद्र का संरक्षक,सामाजिक चिंतक,वरिष्ठ साहित्यकार व मुख्य प्रशिक्षक है।

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