पूजा, प्रार्थना, उपासना, तप, साधना एवं सिद्धि क्या है? चिकित्सा विज्ञान के शोध से इनके क्या- क्या लाभ : डॉ डी आर विश्वकर्मा

पूजा, प्रार्थना, उपासना, तप, साधना एवं सिद्धि क्या है? चिकित्सा विज्ञान के शोध से इनके क्या- क्या लाभ : डॉ डी आर विश्वकर्मा                                      
आइये !सर्वप्रथम पूजा क्या है? पर ध्यान दें। पूजा निरुक्त या व्युत्पत्ति विज्ञान के अनुसार एक प्रकार का अनुष्ठान है, जो सभी जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों में की जाती है। पूजा की उत्पत्ति “पूज “ शब्द से होती है, जिसका मतलब सेवा करना,सम्मान करना, इकत्रित करना या साथ लाना होता है। पूजा उपासक और पूज्य के बीच एक प्रगाढ़ सम्बंध स्थापित करती है;जिससे भक्त और देवी देवताओं के मध्य एक अन्तरंग शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, लौकिक और प्रतीकात्मक भाव उत्पन्न होता है। 
 शिव पुराण के अनुसार पूजा शब्द दो संस्कृत शब्दों “पुह “और “जयते “शब्द से मिलकर बना है। पुह का अर्थ भोग के फल की प्राप्ति और जयते का मतलब कुछ पैदा होना से लगाया जाता है। यह धार्मिक कृत्य मनोकामनाओं को पूर्ण करने, भौतिक सुख की प्राप्ति और देवी देवताओं के समक्ष समर्पण दिखाने हेतु किया जाता है;जो ईश्वर के प्रति प्रेम विश्वास और आस्था को दर्शाता है। पूजा समृद्धि आशीर्वाद कल्याण या वरदान के लिए किया जाता है, इसके तमाम लाभों में मन शान्त होता है।सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। सुख व समृद्धि मिलती है।मन और आत्म शुद्ध होने लगता है। नकारात्मकता विदा हो जाती है और देवत्व की प्राप्ति क्रमशः होने लगती है।
पूजा कई प्रकार की होती है जिसमें पंचोपचार, अष्टोपचार, दशमोपचार, षोडशोपचार ,द्वातृंशोपचार, चतुषष्टिपचार, एको द्वात्रिंचोपचार, मानसोपचार इत्यादि ढंग से सम्पादित की जाती है।
अब आइये, प्रार्थना पर दृष्टिपात करें।प्रार्थना, प्र+अर्थ से मिलकर बना है जिसका मतलब पूर्ण तल्लीनता के साथ निवेदन करना; जिसमें प्रेम, आवेदन एवं विश्वास समाहित होता है।भक्ति के आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने हेतु प्रार्थना एक महत्वपूर्ण साधन है। प्रार्थना के माध्यम से व्यक्ति अपनी निर्बलता व्यक्त करता है,तथा देवी देवताओं ईश्वर और अदृश्य शक्ति की शरण में जाकर उससे सहायता की विनती करता है।प्रार्थना करने से हमें अपने सीमित मन तथा बुद्धि से निकल कर उच्चतर विश्व मन तथा विश्व बुद्धि से सम्पर्क करने में सहायता मिलती है।प्रार्थना के लिए हम सबको शुद्ध होना जरूरी है।इसका अर्थ नहाने धोने से नहीं बल्कि आत्म तत्व की पवित्रता,मन की पवित्रता,हृदय की पवित्रता से लगाया जाता है ।आत्मतत्व ही शरीर में ईश्वर का लघु रूप है ;जिसे बिना पवित्र रखे प्रार्थना स्वीकार नहीं होती।उस अदृश्य शक्ति से प्रार्थना का मतलब हाथ नहीं बल्कि हृदय विशाल करने की आवश्यकता है।
उपासना शब्द तीन शब्द के मिलन से बनता है,उप आस् और अन से निर्मित होता है।जिसका मतलब सेवा,परिचर्चा,शुश्रूषा से भी लगाया जाता है।
उपासक,उपास्य और उपासना में उपासक,उपासना करने वाला अर्थात् दीर्घ कालपर्यंत उपास्य के स्वरूप गुणादि में चित्त वृत्ति का सतत प्रवाह करने वाले को कहा जाता है।यद्यपि देखा जाय तो सर्वत्र आत्मा ही उपास्य है।इसके अतिरिक्त कोई न उपास्य है न कोई उपासक।उपासना में आराध्य देव की महिमा व उनके गुणों का गायन होता है।
तप जिस प्रकार व्यायाम से व्यक्ति अपने शरीर को ताकतवर बनाता है;ठीक उसी प्रकार तप से आत्मा ताकतवर बनती है।साफ़ होती है,जिसे आध्यात्म में निर्जरा कहते हैं ।शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि “तपसा वै लोकं जयति”अर्थात् तप से संसार पर विजय पायी जा सकती है।मनुस्मृतिकार का मत है कि दुनिया में जो कुछ भी दुष्प्राप्य है,वह सब तप से पाया जा सकता है।भगीरथ के तप से ही गंगा का धरा पर अवतरण हुआ।इसका मतलब जो दुस्तर है,जो दुराप्र है,जो दुर्गम है,जो दुष्कर है;वह सब तप से प्राप्त किया जा सकता है।तप से ही ब्रह्म को जाना जा सकता है।
“तपसा ब्रह्म विजीज्ञासस्व”कहा गया है।वशिष्ठ,विश्वामित्र, भृगु,अंगिरा, परशुराम,व्यास आदि अनेक ब्रह्मर्षियों के तपोबल के आख्यान हमारे पौराणिक साहित्य में भरे पड़े हैं।
अब साधना क्या होती है?उसपर प्रकाश डालते हैं।साधना का अर्थ जो साध लिया अपने मन को और अपने शरीर को अनुशासित कर लिया वही साधना है।साधना एक प्रकार का आध्यात्मिक अभ्यास है;जिसमें आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से अभ्यास किया जाता है। जिससे असंभव काम भी सम्भव हो जाता है।साधना में पूजा, योग,ध्यान,उपवास, तपस्या,मंत्र जाप,यज्ञ,शरीर की इच्छाओं का दमन या तांत्रिक क्रियाएं की जाती हैं।
आख़िर में सिद्धि पर भी चर्चा करने से ही इन तमाम बातों की इति श्री होगी।सिद्धि का शाब्दिक अर्थ पूर्णता,प्राप्ति और सफलता से लगाया जाता है।कार्य में असामान्य कुशलता और क्षमता हासिल करना है।सिद्धि एक प्रकार की आध्यात्मिक उपलब्धि है,जिसमें साधक आत्म ज्ञान आत्म शांति और आत्म विकास प्राप्त करता है।सिद्धि प्राप्त होने पर शरीर हल्का होने लगता है।रोगों से मुक्ति ,विषयासक्ति से निवृत्ति,उज्ज्वलता,स्वर में मधुरता,शरीर में सुगंध,मलमूत्र का कम होना आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं।हमारे मनीषियों ने कुल 16 प्रकार की सिद्धियों की चर्चा की है जिसमें वाक् सिद्धि,दिव्य दृष्टि,प्रज्ञा सिद्धि,दूर श्रवण सिद्धि,जल गमन सिद्धि,वायु गमन सिद्धि,अदृश्यकरण सिद्धि,विषोका सिद्धि,देवक्रियानुदर्न सिद्धि,काया कल्पसिद्धि,सम्मोहन सिद्धि,गुरुत्व सिद्धि,पूर्ण पुरुषत्व सिद्धि,सर्वगुण सम्पन्न सिद्धि,इच्छामृत्यु सिद्धि,अनुर्मी सिद्धि।
अंत में चिकित्सा विज्ञान के शोधों से पूजा पाठ के क्या लाभ होते हैं,उन पर ध्यान केंद्रित करें।ईश्वर व भगवान के नाम स्मरण से क्या क्या लाभ होता है;इस पर अब तक लगभग 500 पेपर्स प्रकाशित हुए हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़िडेल्फिया और पेल्सेवेनिया के प्रोफ़ेसर डॉक्टर एंड्रु न्यू वर्ग और डॉक्टर एच जी क्यू ने एक साइको न्यूरो सॉफ्टवेर बनाया है और अपने रिसर्च में बच्चों,नौजवानों,और 60 वर्ष से ऊपर के लोगों को सामिल किया और पाया है कि भगवान के नाम को 10-12 मिनट नित्य स्मरण से 15-20%याददाश्त बढ़ सकती है।20-25%इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।20% बफर कैपेसिटी बढ़ती है,जिससे हार,असफलता और बाधा,रुकावट से होने वाली हानि का असर कम होता है।व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता 20%बढ़ जाती है।व्यक्ति किसी कठिन परिस्थितियों को बड़े आसानी से हैंडल करने के योग्य बनाता है।यह पूरी तरह से सिद्ध हो चुका है कि पूजा पाठ व भगवान के नाम स्मरण के उपर्युक्त लाभ होतें हैं।
लेखक:पूर्व जिला विकास अधिकारी,कई पुस्तकों का लेखक,कई राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार,ऑल इण्डिया रेडियो का नियमित वार्ताकार,वरिष्ठ प्रशिक्षक,मोटिवेशनल स्पीकर और शिक्षाविद् है जिसके नाम से शिक्षा संकाय बी एच यू में शोध छात्रों को डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा बेस्ट पेपर अवार्ड दिया जाता है।

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