उज्ज्वल कुल हमारा

उज्ज्वल कुल हमारा 
सखे! यह उज्ज्वल कुल हमारा।
परिवारों सम जुड़े सदा हम सबको मिले सहारा।, ,,,सखॆ 
         हम समाज से नाता जोड़े।।
        आपस की कटुता को छोड़ें।
सेवा और समर्पण से ही चमके भाग्य हमारा।……. सखे
       हर एक से बात करें हम।
       कष्ट सभी के दूर करें हम।।
शिक्षित बनें,हम अपने कुल के, हो संकल्प हमारा…सखे
        मन को हम बस साफ़ रखें।
        तन को भी हम स्वस्थ्य रखें।।
हम वंशज ऋषियों के प्यारे,चमके बन ध्रुव तारा…  सखे
     सुबह उठेंगे और योग केरेंगे।
     सभी बिमारी ख़ुद दूर करेंगे।।
आपस में मिलने जुलने से,बोझ उतरता सारा…….  सखे
      अपने कुल को संबल देना।
       बदले में यश हमको लेना।।
सच्चे मन से सेवा सबकी, बदले वर्तुल सारा…….   सखे
      मेहनत क़ौम हमे सब कहते।
      लेकिन हम क्यों पिछड़े रहते।।
अनुशीलन करना है हमको,गिरे न सुख का पारा……सखे
     जीवन को है सफल बनाना।
     चरित्र अपना उत्कृष्ट बनाना।।
रखना है विचार अति उज्ज्वल,बने व्यक्तित्व सहारा….सखे
      छोड़े व्यसन गंदगी सारी।
      खुश भी रहें बाप महतारी।।
पूजन हो बस सृष्टि देव की,होगा जीवन न्यारा……। .सखे
                   
 रचनाकार : डॉ दयाराम विश्वकर्मा
        सुन्दरपुर वाराणसी

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