अपने कुल देवा
सृष्टि सृजक, हे सुख दायक,
हर विश्वकर्मन के, विध्न हरो।
हे कौशल दाता, सुख प्रदाता,
कष्ट सभी के, दूर करो ।।
सुखदाता तुम, भाग्य विधाता,
हंसारूढ़ हो, लगते न्यारे ।
हे बुद्धि प्रदाता, जग विख्याता,
प्रिय वंशी तूँ, जग के तारे।।
हम राह निहारें, नित्य पुकारें,
हर भक्तों की, सुधि लेना।
हम पुष्प चढ़ाते, शीश नवाते,
शुचिभाव सदा, उर भर देना।।
तुम जग पोषक, अन्तर्यामी,
कोई देव नहीं, तुम सम दूजा।
द्युलोक के नायक, सर्व प्रदायक
हम नित्य करें तेरी पूजा ।।
हे सृष्टि सृजक, है सर्वसुलभ,
तेरे पंच भूत की, ये माया ।
जीवों के पोषक, शोक विमोचक
अति सुन्दर है,तेरी काया ।।
हम करते वंदन,जग अभिनंदन,
नित सर्जन करते, हो देवा ।
कुछ हैं अनजाने, किन्तु सयाने,
पर “विज्ञ” करें,अनुदिन सेवा।।
रचनाकार: डॉ डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर, वाराणसी-05
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