संपादकीय / कविता

नज़रों का खेल (कविता)

नज़रों का खेल मेरी नज़रों को अपनी नज़रों से एक नज़र तो देख।  यूँ नज़रअंदाज करने की नज़रों से नज़र…

विश्व गुरु हम होवें कैसे? (कविता)

विश्व गुरु हम होवें कैसे?            (कविता) घर समाज में फैली कटुता, पहले जैसा प्यार नहीं। कैसे ख…

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